उलूक टाइम्स: अगस्त 2012

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

कुछ कर

उधर की
मत सोच
आज इधर
को आ

कुछ अलग
सा कर
माहौल बना

गुलाब एक
सोच में
अपनी ला
खुश्बू भीनी
किताब
में दिखा
स्वाद की
रंगीन फोटो
चल बना
प्यार की
फिलम देख
रिश्तों के
धागे सुलझा

ध्यान मत
अब भटका
उधर होने दे
इधर को आ

अपना अपना
सब को
करने दे
तू अपना
भी करवा

कोई किसी
के लिये
नहीं मर
रहा है
तू भी
मत मर
कुछ अलग
सा तो कर

मधुशाला
की सोच
साकी को
सपने में ला
फूलों के
गिलास बुन
पराग की
मय गिरा

टेड़ा हो जा
हरी हरी
दूब बिछा
लुड़क जा

जब देख
रहा है
सब को
बेहोश
अपने होश
भी कभी
तो उड़ा

उनसे अपना
जैसा करवाने
की छोड़
उनका जैसा
ही हो जा

चैन से
बैठ कर
जुगाली कर
चिढ़ मत
कभी चिढ़ा

चल अपना
आज अलग
तम्बू लगा

कर ना
कुछ अलग
तो कर

उसको
उसका
उधर
करने दे
तू कुछ
इधर
अपना
भी कर ।

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

दो और दो पाँच


दो और दो होता है चार 

किताबों से पढ़ा जाता है 
ब्लैक बोर्ड में लिखा जाता है 

कोई पूछता है तो 
समझाया भी उसे जाता है 
दो और दो हमेशा ही 
चार हो जाता है 

असलियत में 
दो और दो होता है पाँच 

खुद समझा ऎसे ही जाता है
किया भी ऎसा ही जाता है 

मौका ज्यादा अच्छा मिल रहा हो अगर 
तो आठ भी कर लिया जाता है

किताब में कुछ भी लिख देने से 
थोड़ा कुछ हो जाता है 

जमाने की नब्ज भी तो 
कोई चीज हुआ करती है 
उसे भी कुछ समझा जाता है 

उसके साथ चला जाये अगर 
तो रास्ता आसान हो जाता है 

तू भी दो और दो को चार पढ़ 
पर जब करता है तो पाँच कर 

सामने वाला भी वही कर रहा होता है 
उसको प्यार से नमस्कार कर 

चार को दिखा दिया कर 
एक को बचा लिया कर 

सामने वाला समझदार होता है 

उसको दो और दो चार 
समझ में आ जायेगा 
और पाँचवा तेरे लिये बच जायेगा 

'उलूक' किसी को कुछ 
पता भी नहीं चल पायेगा ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

बुधवार, 29 अगस्त 2012

बाबा चमन चुप हो गया

चमन अपने
घरेलू मोर्चे पर
फेल हुआ
सड़क पर
निकल
कर आया
हरकतें जब
दिखीं उसकी
कुछ अजीबोगरीब
चमन से
चमन बाबा
लोगों ने
उसे बनाया
चमन बाबा
की खासियत
उसी को
समझ में
आती है
जिसकी ऊपरी
मंजिल
चमन बाबा
की सोच से
मेल कहीं
थोड़ा सा
खाती है
चमन बाबा
सड़क पर
रोज कहीं
ना कहीं
टकराता है
जब भी कहीं
एक कौआ
उसको नजर
आता है
एक भजन
उसके होंठो पर
चला आता है
चमन हंसता है
चमन मुस्कुराता है
इधर कुछ दिनो से
चमन बाबा
कुछ उदास सा
नजर आता है
ज्यादातर
किसी टी वी की
दुकान पर खड़ा
उसे हर कोई
पाता है
समाचार वो
सुनता है
एक कोने में
खड़ा होकर
और जैसे ही
कहीं उसे
संसद भवन
नजर आता है
चमन अपनी
अंगुली अपने
मुँह के ऊपर
ले आता है
मुड़ता है
और चुपचाप
चला जाता है ।

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

मनमौजी

इधर चुपके से
बिना कुछ
किसी को बताये
जैसे पायलों को
अपनी कोई
हाथ में दबाये
बगल ही से
निकल जाये
अंदाज भी
ना आ पाये
छम छम की
ख्वाहिश में
खोऎ हुऎ
के लिये बस
एक मीठा सा
सपना हो जाये
उधर तन्हाई के
एक सौदागर
के सामने
छ्म्म से
आ जाये
जितना कर
सकती हो
उतना शोर मचाये
अपनी छोड़ कुछ
इधर उधर
की पायलें भी
लाकर बजाये
चूड़ियां छनकाये
काले सफेद को
कुछ ऎसा दिखाये
इंद्रधनुष बिल्कुल
फीका पड़ जाये
कोई प्यार
नहीं पढ़ता उसे
मोहब्बत पढ़ाये
कोई मुहब्बत
है करता
उसे ठेंगा दिखाये
बतायेगी क्या
कभी कुछ
किसी को 
तेरे को ये
सब करना
कौन सिखाये
सब्र की गोली
हम भी बैठे
हैं खाये
खूबसूरत
ऎ जिंदगी
समय ऎसा
शायद कभी
तो आये
थोड़ा सा
ही सही
तू कुछ
सुधर जाये ।

शनिवार, 25 अगस्त 2012

पैर जमीन से उठा बड़ा आदमी हो जा

जब तक
जमीन से
नहीं उठ पायेगा

बड़ा
आदमी तुझे
कोई नहीं बनायेगा

सुन
अगर
बड़ा आदमी

सच्ची
में तू बनना
बहुत ही
ज्यादा चाहता है

तो मेरी
एक सस्ती
आसान सी
सलाह को
क्यों नहीं
अपनाता है

अभी
कहना मान जा
और कल को ही
बडे़ आदमी की
सूची देखने
किसी बडे़ आदमी
के पास चला जा

वैसे
अपना खुद भी
तो सोचा कर कुछ जरा

कब तक
छोटे आदमी
की तरह करेगा मरा मरा

कोशिश कर
पाँव थोड़ा सा सही
जमीन से उठा
हवा में तो कुछ लटका

अब चाहे
इसके लिये
अपना घर बेच जेवर बेच
या फिर जमीन बेच के आ

साईकिल
ही सही
अपने नीचे तो लगा

बस
जमीन से पैर
कुछ ऊपर उठा

हैसियत
इससे ज्यादा की
समझता है अपनी अगर
तो स्कूटर लगा
मोटरसाईकिल लगा

ज्यादा ही
बड़ा होना हो अगर
तो चल
कार ही ला कर के लगा

पर देख
बड़ा आदमी
अब तो हो ही जा

सबसे
बड़ा आदमी
होने की ख्वाहिश
रखता है तू
थोड़ी सी भी अगर
तो ऎसा कर

हवाई जहाज
का टिकट एक मंगवा
उस में बैठ और
पैर छोड़ पूरा का पूरा
हवा में चला जा

सबसे
बडे़ आदमी
की सूची में जाकर
के जुड़जा और
हवा भी खा  ।

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ज्योतिष हो गया अखबार

जन्म पत्री बाँचते हैं
बहुत ही ज्ञानी हैं
पंडित जी का
नहीं कोई सानी है
हर साल आते हैं
मेरे घर पर दो बार
माँगते हैं जन्म पत्री
सबकी हर बार
बताते हैं कुछ भूत
और कुछ भविष्य
वैसे का वैसा ही
जैसा बता गये थे
पिछली बार
आये कल भी
उसी तरह इस बार
पोथी निकाल कर
बैठे महानुभाव
शुरू किया बाँचना
हमेशा की तरह
नक्षत्रों को
सुनाने लगे
वही पुरानी रामायण
सुनते ही पुरानी कथा
जब नहीं रहा गया
पंडित जी से मैने
तब कह ही दिया
गुरू कुछ नई बात भी
कभी कभी बताया करो
जन्मपत्री से भी अगर
कुछ खोद नहीं
पा रहे हो तो
कम से से कम
अखबार तो पढ़ कर
के आया करो
आजकल तो जो
होना है आगे वो
पहले अखबार में
ही आता है
उसके बाद ही
होना है जो तभी
तो हो पाता है
मजे की बात
इसमें ये है
कि  ग्रह नक्षत्र
को भी पता नहीं
चल पाता है
कि अखबार
वालों को
ये सब कौन जा
के बताता है
इसीलिये तो
जो वाकई में
हो रहा है वो
अखबार में
कम ही
जगह पाता है
अखबार से
बढ़िया जन्मपत्री
पंडित अब तू भी
नहीं बाँच पाता है ।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पूरी बात

शर्ट की
कम्पनी
सामने
से ही
पता चल
जाती है
पर
अंडरशर्ट
कौन सी
पहन कर
आता है
कहाँ 
पता 
चल पाता है

अंदर
होती है
एक
पूरी बात
किसी के
पर वो
उसमें से
बहुत
थोडी़ सी
ही क्यों
बताता है

सोचो तो
अगर
इस को
गहराई से
बहुत से
समाधान
छोटा सा
दिमाग
ले कर
सामने
चला
आता है

जैसे
थोड़ी 
थोड़ी
पीने से
होता है
थोड़ा सा
नशा
पूरी
बोतल
पीने से
आदमी
लुढ़क
जाता है

शायद
इसीलिये
पूरी बात
किसी को
कोई नहीं
बताता है

थोड़ा थोड़ा
लिखता है
अंदर की
बात को
सफेद
कागज
पर अगर
कुछ
आड़ी तिरछी
लाइने ही
खींच पाता है

सामने वाला
बिना
चश्मा लगाये
अलग अलग
सबको
पहचान ले
जाता है

पूरी बात
लिखने की
कोशिश
करने से
सफेद
कागज
पूरा ही
काला हो
जाता है

फिर कोई
कुछ भी
नहीं पढ़
पाता है

इसलिये
थोड़ी
सी ही
बात कोई
बताता है

एक
समझदार
कभी भी
पूरी रामायण 
सामने नहीं
लाता है

सामने वाले
को बस
उतना ही
दिखाता है
जितने में
उसे बिना
चश्में के
राम सीता
के साथ
हनुमान भी
नजर आ
जाता है

सामने
वाला जब
इतने से
ही भक्त
बना लिया
जाता है

तो

कोई
बेवकूफी
करके
पूरी
खिचड़ी
सामने
क्यों कर
ले आता है
दाल और
चावल के
कुछ दानों
से जब
किसी का
पेट भर
जाता है ।

रविवार, 19 अगस्त 2012

खबर

बहुत से समाचार
लाता है रोज
सुबह का अखबार
कहाँ हुई कोई घटना
किस का टूटा टखना
मरने मारने की बात
लैला मजनूँ की बारात
कौन किसके साथ भागा
कहाँ पड़ गया है डाका
ज्यादातर खबर होती हैं
देखी हुई होती हैं
और पक्की होती हैं
सौ में पिचानवे
सच ही होती हैं
इन सब में से
मजेदार होती है
वो खबर जो कहीं
तैयार होती है
रात ही रात में बिना
कोई बीज को बोये
सुबह को एक ताड़
का पेड़ होती हैं
इस के लिये पड़ता है
किसी को कुछ
कुछ खुद बताना
चार तरह के लोगों से
चार कोनों में शहर के
एक जोर का ऎसा
भोंपू बजवाना
जिसकी आवाज का हो
किसी को भी सुनाई
में ना आना
जोर का हुआ था शोर
ये बात बस अखबार से ही
पता किसी को चल पाना
या कुछ बंदरों को जैसे
केलों के पेडो़ के
सपने आ जाना
बंदरों के सपनो की बातें
सियारों के सोर्स से
पता चल जाना
इसी बात को
गायों का भी
रम्भा रम्भा
कर सुनाना
पर अलग अलग
अखबार में
केलों के साईज का
अलग अलग हो जाना
बता देती है खबर किस
खेत में उगाई गयी है
मूली के बीच को बोकर
गन्ना बनाई गयी है
पर मूली गन्ने
और बंदर के केले को
किसी को भी
कहाँ खाना होता है
पता ये चल जाता है
कि किस पैंतरेबाज को
खबर पढ़ने वालों को
उल्लू बनाना होता है
बेखबर होते हैं ज्यादातर
खबर पढ़ने वाले भी
उनको कुछ समझ में
कहाँ आना होता है
पेंतरेबाजों को तो अपना
उल्लू कैसे भी सीधा
करवाना ही होता है ।

शनिवार, 18 अगस्त 2012

नागा बाबा

नागा बाबा 
एक
देखे मैंने
नंग धडंग
खडे़ 

एक टी वी 
की दुकान 
के सामने

देखते हुऎ
फ़ैशन
टी वी में
छोटे छोटे
कपड़ों में
माडलों का
कैट वाक

घर में टी वी
कभी भी
मैं नहीं
देखता हूँ
लेकिन
वहाँ
मैं भी तन
कर खड़ा
हो गया

जैसे चल
रहा हो
क्रिकेट मैच
कोई
भारत
पाकिस्तान का

फिर कीड़ा
कुलबुलाया

आम
आदमी
के पेट में
जैसे
पचती नहीं
कोई बात

टी वी को
कम
बाबा को
ज्यादा
देख रहा
था मैं
बहुत
देर तक
लेकिन
रुक
नहीं पाया
पूछ बैठा
बाबा से

बाबा जी
कौन सा
कपड़ा
आपको
पसंद आया

बाबा मुड़ा
मुझे घूरा
थोड़ा डर
भी लगा
लेकिन फिर
मुस्कुराया

पूछा मुझसे
उसने

ये बहुत
देर से
मैं भी
देख रहा हूँ
लेकिन
समझ नहीं
पा रहा था
कि
इनसे ऎसा
कौन है
जो ये
करवा
रहा था

यहाँ तो
हर आदमी
करता है
यही
कैट वाक
वो तो
टी वी में
कहीं नहीं
दिखाया
है जाता

देखते रहो
इनको
निर्विकार
भाव से
समझो
कैट और
कैट वाक
को इनके
और
मुस्कुरालो
तो जग है
जीत
लिया जाता

सभी तो
कर रहे हैं
कैट वाक
यहां
कपड़े अपने
उतार कर

पर कहलाना
नहीं चाहते
बस दिखवाना
चाहते है
अपने को
कैट वाक पर
कपड़े की बात
छोड़ कर

पर कौन
कर सकता
है ऎसा
करता तो
मेरे जैसे
बिना कपड़े
का एक
नागा बाबा
नहीं हो जाता

बच्चा
समझा कर
तू भी मुझ से
कहाँ फिर
कुछ
पूछ पाता

समझ में तेरे
कुछ आया है
तो यहाँ से
चला जा
नहीं तो
तू भी एक
नागा बाबा
बन जा
और मेरे
साथ आजा ।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

ब्लाग है या बाघ है

सपने भी
देखिये ना
कितने अजब
गजब सी चीजें
दिखाते हैं
जो कहीं
नहीं होता
ऎसी अजीब
चीजें पता नहीं
कहाँ कहाँ से
उठा कर लाते हैं
कल रात का
सपना कुछ
कुछ रहा है याद
अब किसी को
कैसे बतायेंं ये
अजीब सी बात
एक शहर जैसा
सपने में कहीं
नजर आ रहा था
घुसते ही
'ब्लाग नगर' का
बडा़ सा बोर्ड
दिखा रहा था
अंदर घुसे तो
जलसे जलूस
इधर उधर
जा रहे थे
ब्लाग काँग्रेस
ब्लाग सपा
जैसे झंडे
लहरा रहे थे
कुछ ब्लागर
कम्यूनिस्ट हैं
करके भी
समझा रहे थे
खेल का मैदान
भी दिखा जहाँ
ब्लाग ब्लाग का
खेल एक खेला
जा रहा था
टिप्पणियों का
होता है स्कोर
उस पर होती है
जीत और हार
ऎसा स्कोरबोर्ड
बता रहा था
हंसी आ रही थी
सुन सुन कर
जब सुना एक
ब्लागर ब्लाग
फिक्सिंग
करवा रहा था
टिप्पणियाँ किसी
ब्लाग की किसी
और को दे
आ रहा था
उसकी रिपोर्ट
करने दूसरा
ब्लागर ब्लाग थाने
में जा रहा था
ब्लाग पुलिस
को लाकर
घटनाक्रम की
एफ आई आर
की पोस्ट की
कापी बना
रहा था
आगे इसके
क्या हुआ
पता ही नहीं
चल पा रहा था
घड़ी का अलार्म
सुबह हो गयी
का बहुत शोर
मचा रहा था
सामने खड़ी
बिस्तरे के
श्रीमती मेरी
पूछ रही थी
मुझसे कि
तू सपने में
बाघ बाघ
जैसा क्यों
चिल्ला रहा था ।

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

भ्रम एक शीशे का घर

हम जब
शरीर
नहीं होते हैं
बस मन
और
शब्द होते हैं

तब लगता है
शायद ज्यादा
सुन्दर और
शरीफ होते हैं

आमने सामने
होते हैं
जल्दी समझ
में आते हैं
सायबर की
दुनियाँ में
कितने
कितने भ्रम
हम फैलाते हैं

पर अपनी
आदत से हम
क्योंकी बाज
नहीं आते हैं
इसलिये अपने
पैतरों में
अपने आप ही
फंस जाते हैं

इशारों इशारो
में रामायण
गीता कुरान
बाइबिल
लोगों को
ला ला कर
दिखाते हैं

मुँह खोलने
की गलती
जिस दिन
कर जाते हैं
अपने
डी एन ऎ का
फिंगरप्रिंट
पब्लिक में
ला कर
बिखरा जाते हैं

भ्रम के टूटते
ही हम वो सब
समझ जाते हैं

जिसको समझने
के लिये रोज रोज
हम यहाँ आते हैं

ऎसा भी ही
नहीं है सब कुछ
भले लोग कुछ
बबूल के पेड़ भी
अपने लिये लगाते हैं

दूसरों को आम
की ढेरियों पर
लाकर लेकिन
सुलाते हैं

सौ बातों की
एक बात अंत में
समझ जाते हैं

आखिर हम
हैं तो वो ही
जो हम वहाँ हैं
वहाँ होंगे
कोई कैसे
कब तक बनेगा
बेवकूफ हमसे

यहाँ पर अगर
हम अपनी बातों
पर टाई
एक लगाते हैं
पर संस्कारों
की पैंट
पहनाना ही
भूल जाते हैं ।

बुधवार, 15 अगस्त 2012

आजादी

देश बहुत
बड़ा है

आजादी

और
आजाद
देश को
समझने में
कौन पड़ा है

जितना भी
मेरी समझ
में आता है

मेरे घर
और
उसके लोगों
को देख कर

कोई भी
अनाड़ी

आजादी
का मलतब
आसानी से
समझ जाता है

इसलिये कोई
दिमाग अपना
नहीं लगाता है

देश
की आजादी
का अंदाज

घर
बैठे बैठे ही
जब लग जाता है

अपना
काम तो भाई
आजादी से
चल जाता है

कहीं
जाये ना जाये

आजाद
15 अगस्त
और
26 जनवरी
को तो
पक्का ही
काम पर जाता है

झंडा फहराता है
सलामी दे जाता है
राष्ट्रगीत में बकाया
गा कर भाग लगाता है

आजादी
का मतलब
अपने बाकी
आये हुऎ
आजाद भाई बहनो
चाचा ताइयों को
समझाता है

वैसे
सभी को
अपने आप में
बहुत समझदार
पाया जाता है

क्योंकी
आजादी को
समझने वाला ही
इन दो दिनो के
कार्यक्रमों में
बुलाया जाता है

फोटोग्राफर
को भी
एक दिन का काम
मिल जाता है

अखबार के
एक कालम को
इसी के लिये
खाली रखा
जाता है

किसी
एक फंड
से कोई
मिठाई सिठाई
भी जरूर
बंटवाता है

जय हिन्द
जय भारत के
नारों से
कार्यक्रम का
समापन कर
दिया जाता है

इसके
बाद के
365 दिन
कौन कहाँ
जाने वाला है

कोई
किसी को
कभी नहीं
बताता है

अगले साल
फिर मिलेंगे
झंडे के साथ
का वादा
जरुर किया जाता है

जब सब कुछ
यहीं बैठ कर
पता चल जाता है

तो
कौन बेवकूफ
इतना बडे़ देश

और
उसकी आजादी
को समझने के
लिये जाता है।

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अब के तो छा जाना गलती मत दोहराना मलहम आने वाला है



अपने
आस पास 
गन्ने के खेत जैसे उगे हुऎ 

पता नहीं कितने 
पर देखे जरूर थे पिछली बार 
बहुत सारे अन्ना 

नतमस्तक 
हो गया था 
साथ में
कुछ दुखी भी 
हो गया था 
कहीं भी
किसी भी 
खेत में
नहीं 
उग पाया था 
बहुत झल्लाया था 

इस बार 
चांस हाथ से नहीं जाने दूंगा 
चाहे धरती पलट जाये 
मौका भुना ही लूंगा

फिर से
क्योंकी 
लग रहा है कुछ होने वाला है 
सुगबुगाहट सी दिख रही है साफ 
पिछली बार के कलाकारों में

सुना है
जल्दी ही 
इस बार वो
रामदेव 
हो जाने वाला है 

अन्ना हो गये रामदेव 
का समाचार भी 

इन
रामदेवों के 
अपने अखबार का संवाददाता

इस बार भी 
इनकी रोज आने वाली 
खबर की
जगह पर 
ही देने वाला है

सोच कर दीजियेगा 
अपनी खबर इन दिनो आप भी जरा 

आपकी खबर भी 
इनकी खबर में 
रोज की तरह मिलाकर 
वो आप से मजे भी लेने वाला है 

बस एक सबक 
सिखा गया अन्ना इन अन्नाओं को 

काम
अपने रोज के 
छोड़ के
कोई भी 
अन्ना यहां का 
नहीं इस बार मैदान में आने वाला है 

पीछे से
लंगड़ी 
देने वाला है 
गिराने वाला है 

सामने से
आकर 
उठाने वाला है 
रामदेव का मलहम 
मुफ्त में दे के जाने वाला है।

चित्र साभार: 
http://www.theunrealtimes.com/

सोमवार, 13 अगस्त 2012

एक सीधा सा टेढ़ा

सालों साल लग गये
यहाँ तो समझने में
कि आँखिर किसे
कैसे क्या किसको
समझाना आता है
सीधा सीधा कहने
वाले को कहाँ बेवकूफ
बनाना आता है
अपनी भी समझ में
कुछ आया तो वो भी
कभी भी सीधा कहाँ आया
उसका कहना ही
समझ पाये हम
जिसे उल्टा कर के
समझाना आता है
ये भी समझ में आया
कि उल्टा कर के
समझाना सबसे अच्छा
समझाना होता है
पूरा उल्टा नहीं भी
कर के आओ तो
बस थोड़ा सा टेढा़
करके आना होता है
लेकिन इस टेढा़ करके
समझाने वाले को
खुद भी टेढ़ा हो
जाना होता है
धीरे धीरे ऎसे टेढे़ को
सामने वाले से केकड़ा
कहलवाना होता है
कोई काम दुनिया के
ऎसे हो या वैसे हों
कहाँ कभी रुकते हैं
उनको करने वाले को
अपने अपने ढंग से
करते ही जाना होता है
केकडे़ भी आदत से
मजबूर होते हैं
उनको भी केकड़ापन
अपना दिखाना होता है
तब तक सब अपनी
जगह पर जैसे तैसे
चलाना होता है
पर मुसीबत तो
तब आती है जब
टेढे़ के सामने किसी
एक टेढे़
को दूसरे टेढे़ को
समझाना होता है

टेढे़ टेढे़
होकर
एक दूसरे के नजदीक
जाना होता है
केकड़ापन अपने अपने
भूल कर सीधा
हो जाना होता है
जो भी समझाना होता है
ऎसे में बिल्कुल सीधा ही
समझाना होता है ।

रविवार, 12 अगस्त 2012

सच सुन आ पर पहले बीमा करा

सच को कहने से पहले
मीठा बनाना चाहिये
सीधे सीधे नहीं कुछ
घुमा फिरा के
लाना चाहिये
सच को कहना ही
काफी नहीं होता
उसको सच की तरह
समझाना भी तो
आना चाहिये
सच कहो तो
बहुत कम पचा
पाते हैं लोग
कहने वाले को
इतना तो समझ में
आना ही चाहिये
सच को पहले तो
किसी से कहना
ही नहीं चाहिये
कहना ही पढ़ जाये
किसी मजबूरी से अगर
तो पानी मिला के पतला
कर ही लेना चाहिये
साथ में हाजमोला
टाईप की कोई गोली
को भी देना चाहिये
खुले में ना कहकर
बंद कमरे में ले जाकर
कह देना चाहिये
सब से महत्वपूर्ण
बात सुन लीजिये
कहने से पहले एक
वैधानिक चेतावनी को
सुनने वाले को जरूर
ही दे देना चाहिये
इसमें सच है सच कहा है
सच को सुनने से अगर
आपको दुख होता है
तो आपको इसको नहीं
ही सुनना चाहिये
सुनना ही चाहते हो
फिर भी अगर तो
सच सुनने से होने वाले
नुकसान का बीमा
करा लेना चाहिये ।

शनिवार, 11 अगस्त 2012

श्रीमती जी की एक राय

लिख लिख 
और लिख
लिखता ही 

चला जा
पर तुझे वो कुछ 

नहीं है पता 
जो मुझको है पता
बस लिखने से
नहीं होने वाला है
तेरा कुछ भला
इन चार लोगों की
दी हुई टिप्पणियों
पर मत इतरा
कुछ मेरी भी
कभी सुनता जा
कुछ करना ही
चाहता है तो
जूते नये ब्राँडेड
लेकर आ
पालिश लगा
कर चमका
ऎसा एक ही दिन
नहीं करना है
समझ जा
इसे अपनी
रोज की
एक आदत बना
कोट की जेब
वो भी ऊपर वाली
में सफेद रुमाल भी
एक अटका
जरा सा धूल
नजर आये
कहीं भी जूते पर
तो थोड़ा रुक जा
रुमाल फिरा
और जूता चमका
व्यक्तित्व की
एक झलक होता है
किसी का
चमकता हुआ जूता
हींग लगे ना फिटकरी
सबसे सस्ता भी
होता है ये तरीका
जूते पर
कर भरोसा
अब भी समय है
समझ जा
लिखने को
मत आजमा
किसी को नहीं
आता है
तेरे लिखे में
कोई मजा
एक बार अपनी
श्रीमती के
कहने को
भी तो आजमा
फिर देख
कैसे उठता है
लोगों के
दिल से धुआँ ।

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

स्पोक्समैन

पढ़ा लिखा
होने से

कुछ हो ना हो

आदमी
समझदार
बड़ा हो जाता है

कुछ नहीं कहता है

उसे
अपने मुँह पर
हैरीसन का
ताला लगाना
आ जाता है

सबसे
ज्यादा
होशियार
पढ़ा लिखा

पढे़ लिखों
की एक
जमात का

कहने सुनने
की जिम्मेदारी
अपने आप
ही उठाता है

बिना
किसी से पूछे हुऎ

अपने
मन की
कहानियाँ
खुद ही
बनाता पकाता है

अखबार में
अपने वक्तव्य

पढे़ लिखों
की तरफ से
भिजवाता है
छपाता है

अखबार
वाला भी
पढे़ लिखों से
कुछ पूछने
नहीं आता है

पढे़ लिखों
की बाते हैं
सोच कर

कुछ भी
छाप ले जाता है

पढे़ लिखे
ने क्या कहा
उनको अखबार में
छपी खबर से ही
पता चल पाता है

पढ़ा 
लिखा
उसको
चश्मा लगा
कर पढ़ता है

इधर उधर
देखता 
है 
कि उसे
पढ़ते हुऎ तो
कोई नहीं
देखता है

और सो जाता है

पढ़ा
 लिखा
सब्जी की
तरह होता है

बड़ी

मुश्किल से

पैदा हो पाता है

उसकी
तरफ से
बात
को
कहने वाला

झाड़ की
माफिक होता है


कहीं भी
किसी मौसम में

बिना खाद के
उग जाता है


ऎसे
पढे़ लिखे को

आजकल

स्पोक्समैन
कहा जाता है ।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

अस्थायी व्यवस्था

हर तीसरे साल
के बाद बदल दिया
जाता रहा है
मेरी सस्ते गल्ले की
दुकान का मालिक
बात है ना मजेदार

उसके बाद चाहे तो भी
रुक नहीं पाता है
कोई भी हो ठेकेदार

बहुत समय से जबकी
लग जाते हैं इस काम में
लोग सपरिवार

दुकान का ठेका
उठाना चाह कर भी
नहीं हो पाते हैं
सफल हर बार

कोशिश करते ही
रह जाते हैं बेचारे
छोटे किटकिनदार

सरकार के काम
करने के सरकारी
तरीके को खुद कहाँ
जानती है सरकार

कुछ ऎसा ही एक
नजारा देखने में
आया है इस बार

एक बादल बेकार
नाराज हो कर
फट गया जा कर
एक कोने में
कहीं सपरिवार

ठेका देने वाले को
खुद उठाना पड़ा
एक कटोरा और
जाना पड़ गया
दिल्ली दरबार

प्रश्न गंभीर हो गया
अचानक
कौन चलायेगा
इस दुकान
को इस बार
आपदा की
इस घड़ी में
कौन ढूँढने जाता
एक सस्ते गल्ले की
दुकान के लिये
एक अदद ठेकेदार

मजबूरी में तंत्र
हुआ बेचारा लाचार
पकड़ लाया एक
पकौड़ी वाला जो
बेच रहा था
आजकल
कहीं पर
अपने ही अचार

कहा है उससे
जब तक हम
देते नहीं
दुकान को
एक अपना
ठेकेदार

तुझे ही
उठाना है
गिराना है
शटर इसका
पर पकाना
नहीं पकौड़े यहाँ

नहीं आना
चाहिये ऎसा
कोई अखबार
में समाचार ।

बुधवार, 8 अगस्त 2012

दूध मत दिखा दही जमा

सब 
सब देखते हैं
तू भी देख कर आ
किसी ने नहीं है तुझको कहीं रोका

थोड़ा बतायेगा
चलेगा
सब कुछ मत बता
हमको भी तो रहता ही होगा
कुछ पता

कोई नई छमिंंया
देख कर आया है अगर तो 
किस्सा सुना जा

काले बादल की तरह रोज 
कड़कड़ाता है यहाँ
कभी रिमझिम सी बारिश की फुहार भी
दिखा जा

कभी कभी 
कहीं पर थोड़ी मेहनत भी कर लिया कर 
कहाँ जा रही है दुनियाँ नये जमाने में 
देख भी कुछ लिया कर

देखते सुनते सभी आते हैं
कुछ ना कुछ इधर उधर बनाते हैं 
अपने सपने अपने ख्वाब भी मगर

एक तू है 
लकीर को पीटने वाला फकीर बन जाता है
जो जो देख कर आता है
यहाँ ला कर उलट पलट जाता है

अरे
कुछ अच्छा होता 
तो अखबार में नहीं आ रहा होता
साथ में माला पहने हुऎ तेरी 
फोटो भी दिखा रहा होता 

कब
सुधरेगा 
अब तो सुधर जा
लोगों से कुछ तो सीख 
कब ये सब सीखेगा

दूध देख कर आता है तो 
थोड़ा जामुन भी मिला लिया कर
दही बना कर चीनी के संग भी
कभी किसी को खिला दिया कर

'उलूक'
खाली खाली
दूध यहाँ मत लाया कर

लाता ही है
किसी मजबूरी में अगर
रख दिया कर

कम से कम
रोज तो
ना फैलाया कर । 

चित्र सभार: https://economictimes.indiatimes.com/

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

नये टाईप का दांत

खाने के
अलग
और
दिखाने
के अलग
होते हैं दांत
एक हाथी
के पास

सब को
समझ में
आता है

मुझे
पता नहीं
क्या क्या
दिखाई
दे जाता है

अपने
आस पास
खाने के भी
देखता हूँ
दिखाने के भी
देखता हूँ

और
एक ऎसे
भी होते हैं
जो हाथी
के पास
होते ही
नहीं वैसे

छिपाने के
भी देखता
हूँ दांत

लीजिये खाने
में लगे हैं
खाने के  है
तो खायेंगे
बजायेंगे तो
नहीं दांत

दिखाने में भी
लगे हैं
सारी दुनिया
दिखावे में
लगी हुवी है
अब जिनके
पास होंगे
वो ही तो
दिखायेंगे दांत

पर कोई नहीं
दिखाता अपने
छुपाने वाले दांत

मुस्कुरा भी
नहीं पाता
खुल कर हंस
भी नहीं पाता

कहीं गलती से
दिख गये तो दांत

इसलिये चुप
चुप रहता है
कुछ नहीं
कहीं कहता है

पूछो तो मौनी है
बताता है
बस सामने वाले
की हरकतों से
बिलकुल भी नजर
नहीं हटाता है

सारा का सारा
ध्यान किसी के
मौन को कुरेदने
में लगाता है

अर्जुन की तरह
बस छुपाने वाला
दांत किसी तरह
पकड़ पाये
इसके लिये
हर समय कोई
ना कोई योजना
अपने दिमाग में
ऎसी घुमाता है

सामने वाला
और
ज्यादा शातिर
हो जाता है
समझ जाता है
कोई देखना
चाहता है उसका
छुपाने वाला दांत

किसी को पर
पता नहीं
चल पाता है
इसका दांत
उसकी कब
चबाता है
उसका दांत
इसकी कब
चबाता है

छिपाने वाला
दांत छिपा ही
रह जाता है
किसी को भी
नजर कहीं
नहीं आता है ।

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

बाहर कर लिया /अब अंदर जायेंगे

खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे
अन्दर जा कर होगा क्या
ये अन्दर से ही बतायेंगे
अन्दर वाले उसके बाद
क्या बाहर फेंके जायेंगे
या बाहर से अन्दर घुसने
से वो रोके जायेंगे
सारी की सारी बातें
हम तुमको आज
अभी नहीं बतायेंगे
अन्दर भेजे तो जायेंगे
पर धक्के कौन लगायेंगे
सफेद टोपियों को अब
रंगने का कारोबार चलायेंगे
एक भाई से गेरूआ रंग
उसमें करवायेंगे
दूसरे भाई से हरा रंग
भरने का काम करायेंगे
चाचा जी से सफेद टोपी
पर तिरंगा बनवायेंगे
इनको अंदर जाने देंगे
हम उद्योग लगायेंगे
अपने अपने घर को
सब बाहर  वाले जायेंगे
घर में जाकर घरवालों
का ही तो हाथ बटायेंगे
कुछ फिर से अपनी
साईकिल चलायेंगे
कुछ जाकर हाथी की
पीठ पर चढ़ जायेंगे
फूल वाले फूल का
गुलदस्ता बनायेंगे
हाथ हिलाने वाले लोग
अब भी हाथ हिलायेंगे
खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे ।

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

रक्षाबंधन मनायें चलो जुगाड़ पेटेंट करायें

रक्षाबंधन की
शुभकामनाँएं
आज काम में
ले ही आयें
भाईयों और
बहनोंं का
उत्साह
इस बहाने से
चलो कुछ बढ़ायें
जोड़ तोड़ के
लिये मशहूर
जनतंत्र में
आओ कुछ
जुगाड़
को समझें
आत्मसात करें
और जुगाड़ियों
को नजदीक से
जान कर
अपना ज्ञान बढा़यें
जुगाड़ के इस
गजब के हुनर
को कोशिश कर
देश के काम
में लाने का
कुछ जुगाड़
आज लगायें
जुगाड़ी
देश वासियों को
चलो ये संदेश
आज दे कर आयें
जुगाड़ बनाने
और इस के लिये
मनमाफिक
जुगाड़ का गणित
काम में लाने
का पेटेंट
आज करायें
कैसे किसी
असंभव काम को
जुगाड़ लगा कर
संभव हम
बना ले जायें
काम अपना
अपना निकलवाने
के लिये किस
मौके पर कौन
सा जुगाड़
हम लगायें
किस काम को
कौन सा
जुगाड़ कर
ले जायेगा
और इसके लिये
किन किन
जुगाड़ियों को
इस बार
एक कर काम
लिया जायेगा
परम्यूटेशन
काम्बीनेशन के
इस जुगाड़ी
जादू को चलो
आज एक बार
फिर कहीं
आजमायें
वाकई आज
जरूरत है
इस कठिन
दौर में एक
जुगाड़ियों के
महा सम्मेलन की
चलो कुछ 
जुगाड़ियों को
उकसायें
जुगाड़ कुछ कर
हम इसको
कर ही ले जायें
सारी दुनियाँ को
क्यों नहीं आज
जुगाड़ काँसेप्ट से
हम रूबरू करायें 
कैसे नहीं होगा
अन्नाबाबा का
आंदोलन सफल
आईये हम अपने
सारे जुगाड़ों को
सारी जुगाड़ी
ताकतों के साथ
आज झोंक ले जायें
अन्नाबाबा के
लिये जुगाड़ के
हथियार को
आजमायें
पुरानी भीड़
एक बार
फिर से जुटा
कर दिखायें
जुगाड़ की
ताकत चलो आ
ज एक बार
देश के लिये
आजमायें ।

बुधवार, 1 अगस्त 2012

जोकर बचा / सरकस बच गया

जोकर ही
चले जायेंगे
तो सरकस
बंद हो जायेँगे

ये बात
किसी किसी
के समझ में
बहुत आसानी
से आ जाती है

जो जोकरों
को बर्बाद
होने से बचा
ले जाती है

सरकार भी
बहुत संजीदगी
से अपनी
जनता के बारे
में सोचती है

किसी के
लिये कुछ
करे ना करें
जोकरों के
लिये जरूर
एक कुआँ
कहीं ना कहीं
खोदती है

ये बात
सब लोग
नहीं जान
पाते हैं

कुछ लोग
जोकरों के
बीच
रहते रहते
जोकरिंग में
माहिर हो
जाते हैं

जोकरों
की खातिर
खुद भी
जोकर
हो जाते हैं

जोकरों की
समस्या लेकर
सरकार के
पास बार बार
कई बार जाते हैं

सरकार में
भी बहुत
से जोकर
होते हैं
जिनको ये
जोकर ही बस
पहचान पाते हैं

जोकरों
की खातिर
जोकर होकर
सरकार के
जोकरों से
जोकरों
के लिये
जोकरिंग
करने के
लाईसेंस का
नवीनीकरण
करा ही लाते हैं

सरकस को
बरबाद होने
से बचा
ले जाते हैं

ये बात
जोकरों
की सभा में
सभी जोकरों
को बुला
कर बताते हैं

जोकर लोग
जोर जोर
से तालियाँ
बजाते हैं
सरकार की
जयजयकार
के नारे साथ
में लगाते हैं

सरकारी
जोकर बस
दांत ही
दिखाते है ।