उलूक टाइम्स: बात की बात

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

बात की बात

बात पहले भी
निकलती थी
दूर तलक
भी जाती थी
बहुत समय
नहीं लगता था
पता नहीं कैसे
फैल जाती थी
साधन नहीं थे
आज के जैसे
बात तब भी
उछल जाती थी
आज भी बहुत
बात होती है
बात कभी तो
बाद में होती है
उससे पहले किसी
ना किसी के
पास होती है
कोई किसी से
नहीं पूछता है
अपने आप ही
आ जाती है
आज की बात में
वो बात पर नजर
नहीं  आती है
बात बडी़ बडी़
बातों के बीच में
कहीं खो जाती है
बहुत मुश्किल से
कोई बात का होना
बता पाता है
बात का ठिकाना
भी खोज लाता है
दबी हुई जबान से
बातों के बीच से
बात को निकाल
कर लाता है
उस बात की बात
लोग बस बनाते
ही चले जाते हैं
गाँधी जो क्या हैं 
कोई यहाँ जो
बात कहते कहते
देश को आजाद
कर ले जाते हैं
बात वैसे ही
कच्ची निकला
करती है अभी भी
लेकिन अब बात
को पहले लोग
पूरा पकाते हैं
मसाले नमक
मिर्च साथ में
मिलाते  हैं
जब बात के
होने का मतलब
निकल जाता है
बात बनाने वाला
खतरे को पार कर
अपने को बचा
ले जाता है
बात को तरीके से
सजाया जाता है
मौका देख कर
पूरा का पूरा
फैलाया जाता है ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी.....बहुत बढ़िया..सुशील जी..

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  2. इस हाईटेक ज़माने में भी बातों पर आज भी मक्खन लगाया जाता है ...

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  3. अखंड सत्य है सर, पहले भी यही था आज भी यही होता है....सुन्दर सार्थक रचना

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  4. समाज की विसंगतियों की पोल खोलती बातें.

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  5. बात को तरीके से ,सजाया जाता है
    मौका देख कर ,पूरा का पूरा
    फैलाया जाता है...लाजवाब , बाल की खाल आजकल मीडिया जायदा निकालता है एसलिए बात कुछ ज्यादा उ दूर और जल्दी चली जाती है

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  6. सार्थकता लिए सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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