उलूक टाइम्स: फ़रवरी 2012

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

खिचड़ी

लोहे की
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी

कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने

अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस

मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा

बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का

ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी

कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था

सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा

इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी

वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये

दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये

बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये

इस तरह

श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी

पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी

हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

रिटायर्ड चपरासी

गुरु जी
झूठ नहीं बोलूंगा
आपसे तो
कम से कम नहीं

बस एक
पव्वा ही लगाया है

बिना लगाये जाओ तो
काम नहीं हो पाता है
साहब कुछ
समझता ही नहीं
डाँठता चला जाता है

खुश्बू लगा
के जाओ तो
कुर्सी में बैठाता है

तुरत फुरत
पी ए को
बुलाता है
थोड़ा नाक
सिकौड़ कर
फटाफट
दस्तखत कर
कागज लौटाता है

भैया अगर
खुश्बू से
काम चल
ही जाता है

तो फिर छिड़क
कर जाया करो
पी के अपने स्वास्थ
को ना गिराया करो

दिन में ही
शुरू हो जाओगे
तो कितने
दिन जी पाओगे

गुरू जी आप तो
सब जानते हैं
बड़े बड़े आपका
कहना मानते हैं

पर ये लोग बहुत
खिलाड़ी होते हैं

शरीफ आदमी
इनके लिये
अनाड़ी होते हैं

एक दिन
मैंंने
एसा ही
किया था

कोट पर
थोड़ा गिरा
कर दारू
साहब के पास
चला गया था

साहब ने
उस दिन
कोट मुझसे
तुरंत उतरवाया था

दिन दोपहरी
धूप में मुझे
दिन भर
खड़ा करवाया था

तब से जब भी
पेंशन लेने जाता हूँ

अपने अंदर ही भर
कर ले जाता हूँ

मेरे अंदर की खुश्बू
कैसे सुखा पायेगा

खड़ा रहूँगा जब तक
सूंघता चला जायेगा

उसे भी पीने की
आदत है वो कैसे
खाली खुश्बू
सूंघ पायेगा

तुरंत
मेरा काम
वो करवायेगा
मेरा काम
भी हो जायेगा
उसको भी चैन
आ जायेगा।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सारे कुकुरमुत्ते मशरूम नहीं हो पाते हैं

जंगल
में उगते हैं

कुकुरमुत्ते

कोई
भाव नहीं
देता है

उगते
चले
जाते हैं


बिना
खाद
पानी के

शहर
में सब्जी
की दुकान पर

मशरूम
के नाम पर

बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते

अच्छे
भाव के साथ

चाव से
खाते हैं लोग

बिना
किसी डर के

गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना

या फिर

कुकुरमुत्ता
हो जाना

होते
नहीं हैं
एक जैसे

बहुत से
गिरगिट

रंग बदलते
चले जाते हैं

इंद्रधनुष
बनने की
चाह में

पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है

कि
वो

कब
कुकुरमुत्ते
हो गये

कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे

मशरूम
भी नहीं
हो पाये।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

समय

कोयल
की तरह
कूँकने वाली

हिरन की
मस्त चाल
चलने वाली

बहुत
भाती थी

मनमोहनी
रोज सुबह

गली को
एक खुश्बू से
महकाते हुवे
गुजर जाती थी

दिन
बरस साल
गुजर गये

मनमौजी
रोजमर्रा की
दुकानदारी में
उलझ गये

अचानक
एक दिन
याद कर बैठे

तो किसी
ने बताया

हिरनी
तो नहीं

हाँ
रोज एक
हथिनी

गली से
आती जाती है

पूरा मोहल्ला
हिलाती है

आवाज
जिसकी
छोटे
बच्चों को
डराती है

समय की
बलिहारी है

पता नहीं
कहाँ कहाँ
इसने मार
मारी है

कब
किस समय
कौन कबूतर
से कौवा
हो जाता है

समय ये
कहाँ बता
पाता है

मनमौजी
सोच में
डूब जाता है

बही
उठाता है
चश्मा आँखों
में चढ़ाता है

फिर
बड़बड़ाता है

बेकार है
अपने बारे
में किसी से
कुछ पूछना

जरूर
परिवर्तन
यहाँ भी बहुत
आया होगा

जब हिरनी
हथिनी बना
दी गयी है

मुझ
उल्लू को
पक्का ही
ऊपर वाले ने

इतने
समय में
एक गधा ही
बनाया होगा।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

खरीददार


रद्दी बेच डाल लोहा लक्कड़ बेच डाल
शीशी बोतल बेच डाल 
पुराना कपड़ा निकाल नये बर्तन में बदल डाल

बैंक से उधार निकाल
जो जरूरत नहीं उसे ही खरीद डाल
होना जरूरी है जेब में माल

बाजार को घर बुला डाल
माल नहीं है परेशानी कोई मत पाल 
सब बिकाउ है जमीर ही बेच डाल 

बस एक मेरी परेशानी का तोड़ निकाल 
बैचेनी है बेचनी कोई तो खरीददार ढूँढ निकाल।

चित्र साभार: Active India

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

अथ: मिर्ची कथा


रोज
कुछ कहना
जरूरी नहीं है

चलो
आज कुछ
नहीं कहते हैं

तुम्हारी
परेशानी 
को
कुछ आराम 
कुछ छुट्टी देते हैं

कुछ
कहना ही 
एक तीखी मिर्च 
होता जा रहा है

इसका पता 
बहुतों का सी सी 
करना बता रहा है

पर
किसे पता है 
आज का
कुछ 
ना कहना भी 
एक मिर्च ही हो जाये

कुछ
नहीं लिखा है 
करके
किसी की
बिना मिर्च के 
भी सी सी हो जाये

आज
कुछ नहीं कहा
इसका मतलब 
ये मत लगा लेना

छोड़
चुका है 
कोई
मिर्ची लगाना
की
गलतफहमी 
मत बना लेना

जब भी
आस पास
कोई
हरी या लाल
मिर्ची
दिखलाई जायेगी

वो
शब्दों में उतर कर
फिर
किसी ना 
किसी
को
सी सी
जरूर करवायेगी

अपनी
सोच को
इसीलिये
इतना तो 
अब
समझा ही लेना

मिर्चियों के बीच
रहकर
मुश्किल है
मिर्ची से बच पाना

सीख ही लेना
रोज की आदत
एक बना लेना
आदत
डाल लेना 

मिर्ची को पचा लेना

पड़ ही जाता है 
किसी को
कहीं
तांक झांक के
लिये कभी 
चले ही जाना

आदत हो
तो 
सी सी करने 
के
साथ नहीं 
कहना पड़ता है 

नहीं
भाता है
मिर्ची वाला 
परोसा गया 
रोज रोज 
का
जमाने का 
खाना नहीं खाना।

चित्र साभार: www.123rf.com

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

फिल्म देखना गुनाह

फिर से शुरू कर दिया ना आपने वही शोर मचाना
छोटी सी बात को लेकर बड़ा सा हल्ला बनाना

अब तो बाज भी आ जाओ शर्म करो थोड़ा सा तो शर्माओ

क्या हो गया 
तीन मंत्री थे
देख रहे थे अपने मोबाइल में तस्वीरें ही तो कुछ
आप दुखी हो रहे हों या हो गये टी वी पै देख खुश

अच्छी पार्टी के अच्छे लोग बताये जाते हैं दिखाये जाते हैं
बुरी पार्टी के बुरे लोग बताये जाते हैं दिखाये जाते हैं
सबूत भी लाये जाते हैं फंसाये भी जाते हैं
जेल में दिखाये भी जाते हैं

खेल होते होते पुराने हो गये हैं
पहले मैदान में हो जाया करते थे
दर्शक होते थे ताली भी बजाया करते थे

सूचना क्रांति का अब जमाना भी है
खेल करना है तो विधान सभा में तो जाना ही है

हर जगह माल परोसा जा रहा है
कोई दुकान में सीधे
तो कोई दुकान के पीछे पर्दे में खा रहा है

दुकान के पीछे खाने वाला ज्यादा हल्ला मचा रहा है
अरे खा गया देखो खा गया खुले आम खा गया
अपनी प्लेट पीछे छिपा के सामने वाले को सीन दिखा रहा है

अब जब 
मेरे छोटे से स्कूल का चपरासी भी चटकारे ले कर हमें सुना रहा है
उसका साहब तो बरसों से देखता आ रहा है
कोई कैमरे वाला उसको क्यों नहीं पकड़ पा रहा है

चपरासी जी को कौन बता पायेगा
बेचारा कैमरा मैन
इस गरीब देश के कोने कोने में कैसे जा पायेगा
एक दो जगह की फोटो आपको दिखायेगा
बाकी समझायेगा

समझ जाइये अपने आप
आपका देश और देश का कर्णधार
आपको कहाँ कहाँ ले जा पायेगा

कितना अच्छा कैमरे वाला निकला
सब कुछ साफ साफ दिखा के भी नहीं फिसला
बहुत से तो खाली कुछ नहीं दिखाते
खाली पीली ध्यान हैं बटाते

जहाँ बन रही होती है असली वाली पिक्चर
वहाँ गलती से भी नहीं पहुँच पाते

पहुंच भी गये अगर तो किनारे से आँख मारकर 
कैमरे का मुँह आकाश को हैं घुमाते
आपको बताते 
चिड़ियाँ आजकल उड़ नहीं रही हैं तैर रही हैं

टी आर पी  के खेल में उलझा के पब्लिक को
किनारे से हौले से बगल की गली में निकल
कठपुतली का खेल दिखाना शुरु हो जाते

साथ में सीटी बजा के गाते
ये देश है वीर जवानो का अल्बेलों का मस्तानो का।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"चेस्टर" सितम्बर 2008- 08-02-2012


निर्मोही आँखिर तुम भी
हो गये एक चित्र
हमें मोह में उलझा के
हौले से चल दिये मित्र
बहुत कुछ दे गये एक
इतने छोटे से काल में
मौन से स्पर्श से
हावभाव से संकेत से
निस्वार्थ निश्चल प्रेम से
अपनो का अपना दिखा के
अपनो को अपना बना के
दूर तक साँथ चलने का
झूठा सा अहसास दिला के
उड़ गये फुर्र से
हम देखते ही रह गये
किंकर्तव्यविमूढ़ बह गये
भावनाओं के ज्वार मे
उलझ के तुम्हारे प्यार में
रोक भी नहीं पाये तुमको
ये बताया भी कहाँ हमको
जल्दी है तुम्हें बहुत जाने की
कहीं और जा के लोगों को
कुछ बातें समझाने की
यहाँ लेना था तुम्हें
बहुत से लोगों से
पुराना कुछ हिसाब
शायद लाये भी होगे
कहीं कोई बही किताब
दूर हो या नजदीक
बुलाया उन सभी को
किसी ना किसी तरह
कभी ना कभी
अपने ही पास
जीवन मृत्यू का
एक पाठ पुन:
समझा के एक और बार
चल पडे़ हो एक लम्बी
डगर पर हमें दे कर केवल
अपनी एक याद
शुभ यात्रा प्रिय
करना क्षमा  तृटियों के लिये
फिर जन्म लेना कहीं
हमसे मिलने के लिये
करेंगे इंतजार लगातार।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

बदल भी जाइये

बातों को
हलके से लेना
अब तो
सीख भी जाइये

इतना गौर
जो फरमाया
करते थे
भूल भी जाइये

छोटे छोटे थाने
अब तो ना ही
खुलवाइये

जो खुल चुके हैं
पहले से
हो सके तो
बंद करवाइये

छोटे चोर
उठाईगीरों को
बुला बुला के
समझाइये

समय
बदल चुका है
स्कोप
बढ़ते जा रहा है
कोर्स
करके आइये

और
तुरंत प्लेसमेंट
भी पाईये

ऎसे मौके
बार बार
नहीं आते
एक मौका
आये तो
हजारों
करोड़ो पर
खेल जाइये।

चोरी डाके
की कोचिंग
हुवा करती है
कहीं दिल्ली में

एक बार
जरूर
कर ही आइये

अब ऎसे भी
ना शर्माइये

काम
वाकई में
आपका
गजब का
हुवा करता है

लोगों को
मत बताइये
खुले आम
मैदान में
खुशी से
आ जाईये

जेल
नहीं जाईये
मैडल पे मैडल
पाइये।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

मलुवा या हलुवा

सामरिक महत्व की
सड़क कहलाती है
सर्पीले पथों से होते
हुवे किसी तरह
तिब्बत की सीमा
को कहीं दूर से
देख पाती है
छू नहीं पाती है
एक वर्ष से ज्यादा
बीता जा रहा है
प्राकृतिक आपदा
का प्रभाव जैसा था
वैसा ही है हर
गुजरने वाला राही
ये ही अब तक
बता रहा है
पहाड़ कच्चा हो चुका है
मलुवा गिरता जा रहा है
मलुवा सुनते ही अधिकारी
मूँछ के कोने से मुस्कुराये
बिल्कुल भी नहीं झेंपे
बगल वाले के कान में
हौले से फुसफुसाये
कैसे बेवकूफ हैं
मलुवा बोले जा रहे हैं
इन्हें कहां पता कि
इन्ही मलुवों का
हम रोज एक
हलुवा बना रहे हैं
बस एक बार उपर
वाले ने गिराना चाहिये
अगली बार से हम
गिराते रहेंगे
इसी तरह ये मलुवे
हलुवे बन हम पर
पैसे बरसाते रहेंगे
चीन ने चार लेन
सड़क अपनी सीमा
तक बना भी ली
तो भी पछताते रहेंगे
हम सीमा तक जाने
वाली हर सड़क को
मलुवा बनाते रहेंगे
अपनी सड़कों से चीन
हमला करने अगर
आ भी जायेगा
तब भी सिर के बाल
नोचेगा और खिसियाऎगा
कहाँ जा पायेगा
हमारे देश के अंदर
आकर टूटी सड़कों
की श्रंखला में
फंस कर रह जायेगा
हमारी सोच और
मलुवे के हलुवे की
तकनीक से मात
खा ही जायेगा ।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

बाघ

जंगल में बाघ कम
होते जा रहे हैं
इस बात से लोग
आदमी को डरा रहे हैं
पहाड़ो में बाघ ने
आजकल आदमी
खाना भी शुरू कर
दिया है
फिर बाघ के कम
होने पर तो खुशी
होनी चाहिये
आदमी तो मातम
मना रहा है
तमाम तरह के
उपाय अपना
रहा है
बाघ का समाप्त होना
आदमी के लिये
खतरे की घंटी है
बताया जा रहा है
बाघ इस बात से
बेखबर होकर
फिर भी कस्बों
शहर की ओर
आ रहा है
खामखाह में
मारा जा रहा है
अरे कोई बाघ
को समझाने
क्यों नहीं जा
रहा है
बाघ को जंगल में
ही जाना चाहिये
बाघ ही को मार के
खाना चाहिये
जैसे आदमी आदमी
को खा रहा है
फिर भी संख्या में
दिन पर दिन
बढ़ता जा रहा है।

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

गाय

हाथी बंदर मे
वो बात कहाँ
जो गाय और
बैल में है

गाय हमारी
माता है

हमको कुछ
नहीं आता है

बैल हमारा
बाप है

नम्बर देना
पाप है

बचपन से
सुनते आये हैं

गाय वाकई में

भारतीय है
बैल थोड़ा
चीनी
दिखाई
देता है

इसलिये
बैल कहीं
नहीं
दिखाई देता है


आदमी
की बात

जो नहीं
सोच पाता है

वो गाय से
समझाता है


गाय कभी
नहीं बताती

अपना धर्म
बैल ने भी
नहीं कहा

कभी वो
चीनी है


गाय बैल
के नाम

लड़ाई
मत करो


मुझे
बताओ ना

गाय के
बच्चा होता है

कैल्शियम
कैसे दिया

जाता है
उसे बच्चा

होने के बाद
और क्यों

कोई बतायेगा?

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

बंदर

बंदर
अब जंगल में
नहीं पाये जाते हैं

पहाड़
के कस्बे में
कूड़े के ढेर पर
खाना ढूंढते हुऐ
देखे जाते हैं

बंदर
देख रहा है
गाँव के घर को
टूटता हुवा

गाँव
के लोगों को
मैदान की ओर
फूटता हुवा

बंदर
को भी
आदमी का
व्यवहार

अब
बहुत अच्छी
तरह समझ मेंं
आने लगा है

नकलची बंदर

कोशिश कर
अपने को
आदमी ही
बनाने लगा है

ऎसा ही
होता रहा
तो वो दिन
दूर नहीं

जब
आप देखेंगे
बंदर सपरिवार
पहाड़ छोड़
देहरादून को
जाने लगा है

वैसे भी
बंदर अब
बंदर नहीं
रह गया है

प्राकृतिक
भोजन और
रहन सहन के बिना

अब
आदमी जैसा
ही हो गया है

बंदर
के बच्चे
बच्चों की
तरह प्यारे
कोमल
दिखाई दिया
करते थे कभी

कूड़े
के ढेर से
शुरू किया
है पेट भरना
बंदर ने जब से

बच्चे
भी हो गये हैं
उसके बूढे़ से
रूखे सूखे से तब से

आदमी
का बच्चा
भी दिखने लगा
है जैसा अभी

बंदर
जानता है
आदमी ने
पहाड़ को
बनाना नहीं है

जंगल
को पनपाना
भी नहीं है

आदमी
तो व्यस्त है

खबरे सिलने
बनाने में

बंदर के
उजड़ने
की खबर
अखबार टी वी
पर दिखाने में

जंगल
पर डाक्यूमेंटरी
बनवाने में

जानवरों
के नाम पर
फंड उगवाने में

एन जी ओ
चलाने में

बंदर ने भी
छोड़ दिया
आदमी पर
करना विश्वास

जंगल
को छोड़
बंदर चल दिया
लेकर एक नयी आस

बनाने
मैदानी शहर में
एक आलीशान
आशियाना

इससे पहले
आदमी
समझ सके
बंदर समझ चुका है

और बंदर
को भी ना पडे़
कुछ भी
अपनी तरफ से
फाल्तू में
उसको समझाना।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

गधा

गधा धोबी को छोड़
कौन पालना है चाहता
पर कभी अनायास मुझे
जरूर है याद दिलाता
बच्चा गधा गधे का बच्चा
भोला होता है और सच्चा
जवान तगड़ा
कुवाँरा गधा
बेरोजगार गधा
रोजगार में गधा
मुहब्बत की खोज में
खो जाता है गधा
मुहब्बत मिल गयी अगर
पागल हो जाता है गधा
गधे को देख देख
खुश हो जाता गधा
गधे से ही फिर कभी
दुखी हो जाता गधा
शादी शुदा परिवार
का मारा गधा
बीबी बच्चों के दुलार
का मारा गधा
हर तरफ गधों की
भरमार से
घबराता गधा
ढेंचू ढेंचू
आवाज करना
चाह कर भी ना
कर पाता गधा
घर के दरवाजे पर
गधों का नाम
खुदवाता गधा
हरेक बात पर
सर हिलाता गधा
समझ लेता
है सबकुछ
गधों को
समझाता गधा
पागलों का
सरदार भी
कहलाता गधा
गधों का सरदार
भी हो जाता
वो ही गधा
गधों के प्रकार
बताता गधा
अपने को गधों से
बाहर पाता गधा
गधों के प्रतिशत का
हिसाब लगाता गधा
वोट देने हर बार
हो आता गधा
अपने गधे को
जिता नहीं पाता गधा
गधों की सरकार
कभी नहीं बना
पाता गधा
गधे का गधा
ही रह जाता गधा ।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

हाथी का स्वागत है।

पेडो़ के कटने से
जंगल के हटने से
हाथी परेशान है
खाने की कमी है
इसलिये गांव की
तरफ रुझान है
आदमी से टकरा रहा है
आदमी उसको
जंगल को भगा रहा है
मैदान में घमासान है
पहाड़ तो पहाड़ हैं
रह गये सिर्फ हाड़ हैं
खबर कुछ नई
इस प्रकार है
हाथी भी अब
पहाडो़ पर आने
को तैयार है
ये खुशी की बात है
यहां जगह की
बहुत इफरात है
आदमी को पहाड़
से वैसे भी क्या
काम है
हाथी यहाँ आयेगा
चैन की बंसी बजायेगा
आदमी वैसे भी
यहां बहुत दिनो
तक अब नहीं
टिक पायेगा
सरकार का सर दर्द
भी जायेगा
फिर गैरसैंण कोई
नहीं चिल्लायेगा
जंगल को बचायेंगे
हाथी का पहाड़ मे
बड़ा घर बनायेंगे
कुछ खुद ही चले
जा रहे हैं पहाड़ से
बचे कुचे लोगों को
मिलकर हम भगायेंगे
पहाड़ को बचायेंगे।

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

मौन की ताकत

कुछ
मौन रहे
कुछ रहे
चुप चुप

कुछ
लगे रहे
कोशिश में

लम्बे
अर्से तक
उनको
सुनने की
छुप छुप

पर
कहां
कैसे सुन पाते

कोई
मूड में
होता
सुनाने के
जो सुनाते

एक
लम्बे दौर
का आतंक
अत्याचार
भ्रष्टाचार

धीरे धीरे
चुपचाप
गुमसुम
बना देता है

हिलता
रहता मौन

अंदर से
सिमटते
सिमटते

अपने
को ठोस
बना देता है
मजबूत
बना देता है

ऎसे
मौन की
आवाज

कोई
ऎसे ही

कैसे
सुन सकता है

वो
जो ना
बोल सकता है

ना कुछ
कह सकता है

ऎसे
सारे मौन
व्यक्त
कर चुके हैं

अपने अपने
आक्रोश

बना चुके हैं
एक कोश

किसने
क्या कहा
किसने
क्या सुना
कोई नहीं
जान पायेगा

पर
हरेक
का मौन

एक होकर
अपनी बात

सबको
एक साथ
चिल्ला चिल्ला
के सुनायेगा

आतंकियों
भ्रष्टाचारियों
अत्याचारियों को

पता है
मौन की बात

अब ये
सारे लोग

खुद
आतंकित
होते चले जायेंगे

मौन
ने बोये हैं
जो बीज
इस बीच

प्रस्फुटित होंगे

बस
इंतजार है
कुछ और
दिनो का

धीरे धीरे
सारे मौन
खिलते
चले जायेंगे

किसका
कौन सा
मौन रहा होगा

कोई कैसे
जान पायेगा

जब
सब से
एक सा
एक साथ
प्रत्युत्तर पायेगा

खिलेगा
मौन का फूल

महकेगा

आतंक
अत्याचार
व्यभिचार
भ्रष्टाचार
की जमीन पर

ठीक
उसी कमल
की तरह

जिसे
कीचड़ में
भी खिलना
मंजूर होता है

मौन
मुखरित होगा

मौन
सुनेगा
मौन के गीत

मौन गायेगा
मौन मुस्कुरायेगा ।