उलूक टाइम्स: समझना चाहो तो एक इशारा एक पता होता है

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

समझना चाहो तो एक इशारा एक पता होता है

लिख देना किसी के 
पढ़ने के लिये ही
नहीं होता है 
पढ़ने वालों को 
अच्छी तरह से 
ये पता होता है 
बहुत भीड़ होती है 
बहुत सी जगहों पर 
सब होता है वहाँ 
अपना ही बस 
पता नहीं होता है 
बगल में होता है 
जब तक कि 
छूना होता है 
छू लेता है
महसूस भी होता है 
हटता है जाकर 
बस दो गज
की दूरी कहीं
मीलों दूर का 
पता उसी जगह पर 
कहीं लिखा होता है 
गहराई लिये बहुत
कुछ दिखाई देता है 
खुद के अंदर ही 
कहीं डूबने का 
इंतजाम होता है 
पता देता है जरूर 
हमेशा एक नया 
हर बार एक नये 
दुश्मन के ठिकाने 
का मगर  देता है 
मयखाने में शराब हो 
इतना जरूरी नहीं 
साकी का गिलास 
खाली भी होता
तो बहुत होता है 
सब कुछ बिकता है 
हर चीज बाजारी है 
कोई पैसे से 
कोई बस बिकने 
के लिये भी कहीं भी 
किसी भी तरह 
से बिकता है 
खरीददार हर कोई है 
इस बाजार में 
कोई दे कर 
खरीद लेता है 
कोई ले कर 
खरीद देता है  
बहुत देख ली
हो दुनियाँ जिसने
उसके लिये कफन
से अजीज कोई
और नहीं होता है 
बहुत सा गोबर 
होता है दिमाग 
में भी ‘उलूक 
भैंस पालना 
इतना जरूरी 
नहीं होता है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार |

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  2. बहुत सा गोबर
    होता है दिमाग
    में भी ‘उल्लूक’
    भैंस पालना
    इतना जरूरी
    नहीं होता है।....बहुत खूब ......

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  3. क्या कहने सार्थक सटीक रचना !

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