उलूक टाइम्स: अप्रैल 2014

बुधवार, 30 अप्रैल 2014

पँचतंत्र लोकतंत्र पर हावी होने जा रहा है


खाली रास्ते पर 
एक खरगोश
अकेला दौड़ लगा रहा है

कछुआ बहुत 
दिनों से गायब है
दूर दूर तक 
कहीं भी नजर नहीं आ रहा है

सारे कछुओं से 
पूछ लिया है
कोई कुछ नहीं बता रहा है

दौड़ चल रही है
खरगोश दौड़ता ही जा रहा है

इस बार लगता है
कछुआ मौज में आ गया है
और 
सो गया है
या
कहीं छाँव में बैठा बंसी बजा रहा है

दौड़ शुरु होने से 
पहले भी
कछुऐ की 
खबर 
कोई अखबार 
नहीं दिखा रहा है

कुछ ऐसा जैसा 
महसूस हो पा रहा है
कछुवा कछुओं के साथ मिलकर
कछुओं को 
इक्ट्ठा करवा रहा है

एक नया करतब 
ला कर दिखाने के लिये
माहौल बना रहा है

कुछ नये तरह का 
हथियार बन तो रहा है
सामने ला कर कोई नहीं दिखा रहा है

दौड़ करवाने वाला भी
कछुऐ को कहीं नहीं देखना चाह रहा है

खरगोश गदगद 
हो जा रहा है
कछुऐ और उसकी छाया को दूर दूर तक
अपने आसपास फटकता हुआ
जब 
नहीं पा रहा है

‘उलूक’ हमेशा ही 
गणित में मार खाता रहा है
इस बार उसको लेकिन 
दिन की रोशनी में
चाँदनी देखने का जैसा मजा आ रहा है

कछुओं का
शुरु से 
ही गायब हो जाना
सनीमा के सीन से 

दौ
 के गणित को
कहीं ना कहीं तो गड़बड़ा रहा है

प्रश्न कठिन है और 
उत्तर भी
शायद
कछुआ ही ले कर आ रहा है।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

अपनी अक्ल के हिसाब से ही तो कोई हिसाब किताब लगा पायेगा

सोचता हुआ
आ रहा था
शायद आज
कुछ अच्छा सा
लिखा जायेगा
क्या पता कहीं
कोई फूल सुंदर
एक दिख जायेगा
कोई तो आकर
भूली हुई एक
कोयल की याद
दिला जायेगा
मीठी कुहू कुहू से
कान में कुछ
नया सा रस
घुल के आयेगा
किसे पता था
किराये का चूहा
उसका फिर से
मकान की नींव
खोदता हुआ
सामने सामने
से दिख जायेगा
जंगली होता तो भी
समझ में आता
समझाने पर कुछ
तो समझ जायेगा
पालतू सिखाये हुऐ से
कौन क्या कुछ
कहाँ कह पायेगा
पढ़ाया लिखाया हुआ
इतनी आसानी से
कहाँ धुल पायेगा
बताया गया हो
जिसको बहुत
मजबूती से
खोदता खोदता
दुनियाँ के दूसरे
छोर पर वो
पहुँच जायेगा
उतना ही तो
सोच सकता है कोई
जितना उसकी
सोच के दायरे
में आ पायेगा
भीड़ की भेड़ को
गरडिये का कुत्ता
ही तो रास्ते पर
ले के आयेगा
‘उलूक’ नहीं तेरी
किस्मत में कहना
कुछ बहुत अच्छा
यहाँ तेरे घर को
खोदने वाला ही
तुझे तेरे घर के
गिरने के फायदे
गिनवायेगा
और अपना
खोदता हुआ
पता नहीं कहाँ से
कहाँ पहुँच जायेगा ।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

बक दिया बहुत चुनाव अब करवा दिया जाये नहीं तो कोई कह देगा भाड़ में जाओ बाय बाय

तीन दशक के
दस प्रशाशक
बहुत किये होगें
विश्वविद्यालय से
बाहर नहीं कहीं
कभी भेज पाये
देश के
  चुनाव का
इतना बड़ा काम
मगर इस बार वाले
ही कुछ दिला पाये
बुरा सौदा नहीं है
एक आड़ू बेड़ू को
अगर चुटकी में
जोनल मजिस्ट्रेट
बना दिया जाये
आभारी हैं वो
कुछ काम के लोग
और कुछ गधे
जो चुनाव करवाने
के काम में कुछ
काम धाम करने
के लिये इसी बार
गये हैं काट छाँट
कर गये लगवाये
कुछ पहले ही
भेजे दिये गये
उसके प्रचार के लिये
कुछ बाद में
इसके प्रचार के लिये
जा रहे हैं बोल कर
पूरी छूट ले आये
तटस्थ होना बहुत
अच्छा होता है
पहली बार गधे भी
अपनी समझ में
कुछ घुसा पाये
चुनाव कार्यक्रम
सफल बनाने
के लिये सुबह
पहुँचने का निमंत्रण
जिला प्रशाशन से
पाकर 
हर्षित हुऐ
कालर खड़े कर
कमीज के चले
गये दौड़ लगाये
मत देना या
दे देना मत
इसको या उसको
की बहसों में भाग
लेने की बेकार
बातों में भाग
लगाते लगाते
वैसे भी कई
महीने हो आये
नये काम की
नई जगह पर
जाकर चुनाव
करवाने की किताब
चुनाव अधिकारी
के द्वारा गये
पढ़ाये और लिखाये
कुछ बात
समझ में आई
कापी में लिख लाये
उसमें से चलो
कुछ कुछ
यहाँ पर भी कह
ही दिया जाये
यज्ञ कर्मठ परीक्षा
दावा ध्यान पढ़े लिखे
परीक्षा नम्बर गलतफहमी
गलती त्रुटी सस्पेंशन
जैसे शब्द वाक्यों में
प्रयोग कर के
जो गये बताये
दिमाग वाले
बिना दिमाग वाले
सारे के सारे
सफेद और काले
ये अच्छी तरह
समझ पाये
पानी नहीं भी मिला
कोई बात नहीं
कुछ और पी लेना
चुनाव हो तो जाये
इतना भी नहीं
कर सकता है कोई
तो बेकार है अगर
लाईन लगवा के
पर्ची पर खिलवाये
गये कच्चे भात दाल
के लिये आभार
ही कह दिया जाये
कोई जीते कोई हारे
इधर को आये या
उधर को जाये
किसे मतलब है
चुनाव को होना है
चुनाव करवा दिया जाये
मत किस को
देना है तूने
उलूक
तेरी ऐसी की तैसी
तू भाड़ में जाये । 

रविवार, 27 अप्रैल 2014

कुछ दिन के लिये ही मान ले हाथ में है और एक कीमती खिलौना है

आज को भी
कल के लिये
एक कहानी
ही होना है
ना उसमें कोई
राम होना है
ना किसी रावण
को होना है
हनुमान दिख रहे
चारों तरफ पर
उन्हे भी कौन सा
एक हनुमान
ही होना है
राम की एक
तस्वीर होनी है
बंदरों के बीच
घमासान होना है
ना कौरव
को होना है
ना पाँडव
को होना है
शतरंज की बड़ी
बिसात होनी है
सेना को बस
एक लाईन में
खड़ा होना है
ना तलवार
होनी है
ना कोई
वार होना है
अंगुली स्याही
से धोनी है
बस एक काला
निशान होना है
बड़े मोहरों
को दिखना है
बिसात के
बाहर होना है
इसे उसके लिये
वहाँ कुछ कहना है
उसको इसके लिये
यहाँ कुछ कहना है
रावण को लंका
में ही रहना है
राम को अयोध्या
में ही कहना है
आस पास का
रोज का सब ही
एक सा तो रोना है
‘उलूक’ दुखी इतना
भी नहीं होना है
जो कुछ आ जाये
खाली दिमाग में
यहाँ लिख लिखा
के डुबोना है ।

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

अच्छी तरह से समझ लेना अच्छा होता है जब कोई समझा रहा होता है

समझा कर
जब कोई
बहुत प्यार से
कुछ समझा
रहा होता है
बस अच्छे दिन
आने ही वाले हैं
तुझे और बस
तुझे ही केवल
बता रहा होता है
किसके आयेंगे
कब तक आयेंगे
कैसे आयेंगे
नहीं सोचनी
होती हैं ऐसे में
ऐसी बातें जिनको
सुलझाने में
समझने वाला
खुद ही उलझा
जा रहा होता है
देश सबका होता है
हर कोई देश की
खातिर ही अपने
को दाँव पर
लगा रहा होता है
किसको गलत
कहा जा सकता है
ऐसे में अगर
ये इसके साथ
और वो उसके साथ
जा रहा होता है
मतदाता होने का
फख्र तुझे भी
होना ही है कुछ दिन
तक ही सही
बेकार का कुछ सामान
सबके लिये ही बहुत
काम की चीज जब
हो जा रहा होता है
होना वही होता है
कहते हैं जो
राम के द्वारा
उपर कहीं आसमान में
रचा जा रहा होता है
क्या बुरा है
देख लेना ऐसे में
शेखचिल्ली का
एक सपना जिसमें
बहुमत मत देने
वाले का ही
आ रहा होता है
वो एक अलग
पहलू रहा होता है
बात का हमेशा से ही
समझाने वाला
समझाते समझाते
अपने आने वाले
अच्छे दिनों का
सपना समझा
रहा होता है
समझा कर
कहाँ मिलता है
एक समझाने वाला
ये वाला भी
कई सालों बाद
फिर उसी बात को
समझाने के लिये
ही तो आ जा
रहा होता है ।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

उसका आदमी कहता है तुझे कोई तो क्यों शरमाता है यार

एक पत्नी होना 
और उसका ही बस आदमी होना 
एक बहुत बड़ी बात है सरकार 

उसके बाद भी किसी और का आदमी होना ही होता है 
नहीं हो पाया है अगर कोई तो उसका जीना ही होता है बेकार 

अपने नाम से अपने काम से अगर जाना जा रहा है कोई 
समझ लेना अच्छी तरह किसी काम में कहीं नहीं लगाया जा रहा है
भटक रहा है जैसे होता है एक बेरोजगार 

कुछ भी नहीं हाथ में आयेगा इस जीवन में 
व्यर्थ में चला जायेगा इस पार से कभी किसी दिन उस पार 

एक आदमी कहीं ना कहीं होता ही है किसी ना किसी का आदमी 
ऊपर से नीचे तक अगर देखता चला जायेगा 
नीचे वाला किसका है साफ पता चल जायेगा 
सबसे ऊपर वाला किसका है आदमी 
बस यही बात बताने के लिये 
कोई भी नहीं मिल पायेगा 
समय रहते पानी का देखता हुआ बहाव 
तैरना सीख ही लेता है आज का एक समझदार 

निभाता क्यों नहीं ‘उलूक’ तू भी किसी 
एक इसी तरह के एक आदमी का किरदार 
कल जब उसकी आ जायेगी सरकार 
तुझे क्या लेना और देना वो वहाँ क्या करता है 
तुझे मालूम है तेरा यहाँ रहेगा अपना ही कारोबार 

खाली आदमी होने में 
और किसी आदमी के आदमी होने में 
अंतर है बहुत बड़ा समझाया जा चुका है एक नहीं कई कई बार 

बाकी रही तेरी और 
तेरे देश की किस्मत 
किसका आदमी कहाँ जा कर करता है  अपना वार इस बार ।

चित्र साभार: 
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गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

कुछ दिन और चलना है ये बुखार

चुनावी बसंतों की
ताजिंदगी
रही है भरमार
जीवन को तो
चलना ही है
इस प्रकार
या उस प्रकार
वोट कभी दे
कर के आया
एक दो बार
नाम वोटर लिस्ट
से गायब
हुआ भी पाया
सीटियाँ बजाते हुऐ
लौट उस बार आया
कभी इसकी बनी
और कभी उसकी बनी
अपने देश की सरकार
अपना मौका मगर
अभी तक भी
नहीं आ पाया
शायद ऊपर वाला
बना ही रहा हो
बस मेरी और
केवल मेरी
सरकार इस बार
हैड और टेल ने
पहले भी बहुत
बार है छकाया
सिक्का उछ्ल चुका है
आसमान की ओर
ताकत लगा कर
ही गया है उड़ाया
इधर गिराने को
इसने जोर
है लगाया
उधर गिराने को
उस ने है एक
पँखा चलवाया
लग रहा है देखेंगे
लोग कुछ ऐसा
जैसा इस बार
जैसा पहले कभी
भी नहीं हो पाया
सिक्का होने वाला
है खड़ा जमीन
पर आकर
बता गया है
कान में
धीरे से कोई
आकर फुसफुसाया
उसे मिल
गया था घोड़ा
जब उसकी
बनी थी सरकार
इसकी बार
इसको मिली थी
लाल बत्ती लगी
हुई एक कार
झंडे टोपी वाले
हर चुनाव में
वहीं दिखे
आगे पीछे ही
लगे डौलते हर बार
किस्मत अपनी
चमकने का
उनको भी
हो रहा है
बड़ी बेसब्री
से इंतजार
इसी बार बनेगी
जरूर बनेगी उनकी
अपनी सी सरकार
दूल्हा जायेगा
लम्बे समय को
दिल्ली की दरबार
खास ज्यादा
नहीं होते हैं
बस होते हैं
दो चार
उनके हाथ में
आ ही जायेगा
कोई ना
कोई कारोबार
झंडे टोपी वाले
संतोषी होते हैं
खुश होंगे जैसे
होते हैं हर बार
सपने देखेंगे
खरीदेंगे बेचेंगे
इस बार नहीं
तो अगली बार
कोई रोक नहीं
कोई टोक नहीं
जब होता है
अपने पास
अपना ही एक
सपनों का व्यापार ।

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

कुछ भी लिखे पर छपने लगे एक किताब क्या जरूरी है ऐसा हो जाये

कुछ
अच्छे पर

कुछ
अच्छा कभी
कहा जाये

और

एक
किताब हो जाये

दिखे
रखी हुई
सामने से कहीं

किताबों की बीच

किताबों की भी
किताब हो जाये

किसकी
चाहत नहीं
होती कभी

बहुत सी

खुश्बू भरी
हुई कुछ
ऐसी ही एक
बात हो जाये

कल
दिखे तो
पढ़े कोई

परसों दिखे
फिर पढ़े कोई

पढ़ते पढ़ते
पता ना चले

दिन
हो कहीं
और कहीं
रात हो जाये

यहाँ
रोज लिखी
देखता है

बेवकूफी
की एक
बाराहखड़ी

सब
अच्छा सा
होता होगा कहीं

उसे
देखने की
आदत होगी
तुझे भी पड़ी

बात बात में
कुछ भी लिखे
को देख कर
बोल देता है

अब
एक किताब
हो जाये

ऐसे में
कुछ नहीं
कहा जाता
किसी से

कहा भी
क्या जाये

अनहोनियाँ
हो रही हैं
जिस तरह
आसपास

तेरे भी
और
मेरे भी

तू ही बता

कितने
दिनों तक
देख देख कर
सब कुछ

चुप रहा जाये

आज फिर
कह दिया
‘उलूक’ से

कह
दिया होगा
बहुत मेहरबानी

अगली
बार से
इसी बात को

फिर
ना कहा जाये

इस
तरह
की बातें
लिखी भी
जायें कहीं

लिखी
जाते ही

मिटा
भी दी जायें

गीता
नहीं लिखी
जा रही हो अगर
कहीं किसी से

फिर
से ना
कह दिया जाये

अब
किताब
हो जाये ।

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

अपने दिमाग ने अपनी तरह से अपनी बात को अपने को समझाया होता है

कल का लिखा
जब कोई नहीं
पढ़ पाया होता है

फिर क्यों आज
एक और पन्ना

और उठा कर
ले आया होता है

कितनी बैचेनी
हो जाती है
समझ में ही
नहीं आती है

बस यही बात
कई बार
बात के ऊपर
बात रखकर
जब फालतू में
इधर से उधर
घुमाया होता है

पता होता है
होता है बहुत कुछ
बहुत जगहों पर

पर तेरे यहाँ का
हर आदमी तो जैसे
एक अलग देश से
आया हुआ होता है

तेरी समस्याओं
का समाधान
शायद होता हो
कहीं किसी
हकीम के पास

आम आदमी
कहीं भी किसी
चिकित्सक ने
तेरी तरह का नहीं
बताया होता है

नहीं दिख रहा है
कोई बहुत दिनों से
काम में आता हुआ

अलग अलग दल के
महत्वपूर्ण कामों
के लिये बहुत से
लोगों को बहुत सी
जगहों पर भी तो
लगाया होता है

हैलीकाप्टर उतर
रहा हो रोज ही
उस खेत में जहाँ पर

अच्छा होता है
अगर  किसी ने
धान गेहूँ जैसा
कुछ नहीं कहीं
लगाया होता है

आसमान
से उड़ कर
आने लगते हैं
गधे भी कई बार 


उलूक ऐसे में ही
समझ में आ जाता है
तेरी बैचेनी का सबब

खुदा ने
इस जन्म में
तुझे ही बस
एक गधा नहीं
खाली बेकार
का लल्लू
यानि उल्लू
इसीलिये शायद
बनाया होता है

अपनी अपनी
किस्मत
का खेल है प्यारे

कुछ ही
भिखारियों
के लिये
कई सालों में
एक मौका

बिना माँगे
भीख मिल
जाने का
दिलवाया
होता है ।  

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

कूड़ा हर जगह होता है उस पर हर कोई नहीं कहता है

एक दल में
एक होता है
एक दल में
एक होता है

क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है

किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है

दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है

कुछ इधर
उसका भी होता है
कुछ उधर
इसका भी होता है
डूबना
खुद नहीं होता है
डुबोने को
तैयार होता है

मिलता है
सभी को कुछ कुछ
आधा
इसके लिये होता है 
आधा
उसके लिये होता है

इसकी
गोष्ठी होती है
कमरा खुला होता है
उसकी
सभा होती है
बड़ा मैदान होता है

इसकी
शिकायत
उससे होती है
उसकी
शिकायत
इससे होती है

इसकी
सभायें होती हैं
उसकी
कथायें होती है

इसकी
नाराजगी होती है
इसे मिठाई देता है
गुस्सा
उसको आता है
उसे नमकीन देता है

बिल्लियों
की रोटियाँ होती है
बंदर
का आयोग होता है

कोई
कुछ नहीं करता है
अखबार
को 
लिखना ही होता है

उलूक
तेरे बरगद
के पेड़ में ही
लेकिन ये
सब नहीं होता है

हर जगह होता है
हर कोई नहीं कहता है

क्यों
परेशान होता है
फैसला
दल दल में
अब नहीं होता है

समर्थन
निर्दलीय
का जरूर होता है
शातिर
होने का ही ये
सबूत होता है

इसका
भी होता है
और
उसका
भी होता है
ये भी
उसके होते है
और
वो भी
उसके होते हैं

तू
कहीं नहीं होने की
सोच सोच कर रोता है

दल में
होने से
कहीं अच्छा
अब तो
निर्दलीय होता है

लिखने
का बस यही
एक फायदा होता है

कहना
ना कहना
कह देना होता है

किसी
का रोकना
टोकना ही तो बस
यहाँ पर नहीं होता है ।

रविवार, 20 अप्रैल 2014

वोट देना है जरूरी बहुत महंगा वोट हो रहा है

बहुत ज्यादा नहीं
बस थोड़ा बहुत
ही तो हो रहा है
कहीं कुछ हो रहा है
तभी तो थोड़ा सा
खर्चा भी हो रहा है
आय व्यय
लेखा जोखा
कोई कहीं भी
बो रहा है
तुझे किस बात
की परेशानी है
तू किस के टके
पैसे के लिये
रो धो रहा है
देश का सवाल है
देश के लिये
ही हो रहा है
कुछ किताबों में
लिखा जा रहा है
कुछ बाहर बाहर
से ही इधर उधर
भी हो रहा है
मेहनत का नतीजा है
खून और पसीना
एक हो रहा है
पाँच साल में
पाँच सौ गुना
बताना जरा सोच कर
और किधर हो रहा है
शेयर बाजार में
उतार और चढ़ाव
इस से ही हो रहा है
तेरे देश के ही
नव निर्माण के लिये
नया बाजार नई दुकानों
और नये दुकानदारों
के साथ तैयार अब
फिर से हो रहा है
वोटरों की संख्या से
कुल खर्चे को भाग
क्यों नहीं दे रहा है
पता चलेगा तुझे
वोट का भाव
इस बार कितना
ज्यादा हो रहा है
पाँच साल में
हजार का करोड़
कहाँ हो रहा है
देश वाले ही हैं
जिनकी तरक्की में
तेरा योगदान भी
तो हो रहा है
उठ ‘उलूक’
दिन में बैठा
चैन से कैसे
तू सो रहा है
देने क्यों नहीं
जा रहा है वोट
वोट देने से
कौन सा कोई
शहीद हो रहा है ।

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

गजब की बात है वहाँ पर तक हो रही होती है

आशा और
निराशा की
नहीं हो
रही होती है

शमशान घाट
में जब
दुनियादारी
की बात
हो रही होती है

मोह माया
त्याग करने
की भावना की
जरूरत ही
शायद नहीं
हो रही होती है

बदल गया
है नजरिया
देखिये इस
तरह कुछ

वहाँ पर अब
जीने और
मरने की
कोई नहीं

राहुल रावत
और मोदी
की बात
हो रही होती है

राम के
सत्य नाम
से उलझ
रही होती है

जब तक
चार कंधों में
झूलते चल
रही होती है

चिता में
रखने तक की
सुनसानी हो
रही होती है 

आग लगते
ही बहुत
फुर्सत में
हो रही होती है

कुछ कहने
सुनने की
नहीं बच
रही होती है

ये बात भी बस
एक बात ही है

आज के
अखबार के
किसी पन्ने
में ही कहीं पर
छप रही होती है

मरने वाले
की बात
कहीं पर
भी नहीं
हो रही होती है

इस बार
उसकी वोट
नहीं पड़
रही होती है

जनाजों में
भीड़ भी
बहुत बढ़
रही होती है

किसी के
मरने की खबर
होती है कहीं
पर जरूर

चुनाव पर
बहस पढ़ने पर
कहीं बीच
में खबर के
कहीं पर घुसी
ढूंढने से
मिल रही होती है । 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

सरकार की नहीं सोच पा रहा हूँ सरकार

तेरी वोट से ही
बनने जा रही है
इस बार की सरकार
सुन नहीं रहा है
अब की बार बस
उसकी सरकार
सुन तो रहा हूँ पर
गणित में कमजोर हूँ
समझ नहीं पा रहा हूँ
फिर भी जितना है
बचा खुचा दिमाग
गुणा भाग करके
लगा रहा हूँ
उसकी तो ऐसे
कह रहा है जैसे
तेरे को बता
कर गया हो वो
सरकार बस मैं
ही बना रहा हूँ
किसी जमाने में
इसकी बनती थी
या उसकी बनती थी
जमाने ने तक कर
दिया अब पलटवार
देख क्यों नहीं लेता
आज का ही अखबार
तीन चार चुनाव
लड़ लड़ा कर
एक दूसरे को
जिता हरा कर
अब दोनों एक ही
मंच में साथ साथ
गले में बाहें डाल
कर हैं एक दूसरे
को बहुत प्यार
एक बार ये
ले गया था वोट
उसकी बन गई
थी सरकार
दूसरी बार वो
ले गया था वोट
इसकी बन गई
थी सरकार
वोटर
उलूक
फाड़ कर रख ले
अपनी वोट को
आधी इसके लिये
और आधी उसके
लिये इस बार
कोई भी बनेगी
कहीं एक सरकार
तेरी की जायेगी
जै जै कार
बुद्धिजीवियों के बस में
है नहीँ करना कुछ
परजीवियों का फल रहा
हो जहाँ सारा कारोबार
अब की बार इसकी भी
और उसकी भी सरकार
बहस करना है बेकार ।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

घर घर की कहानी से मतलब रखना छोड़ काम का बम बना और फोड़

आज उसकी भी
घर वापसी हो गई
उधर वो उस घर से
निकल कर आ
गया था गली में
इधर ये भी
निकल पड़ा था
बीच गली में
पता नहीं कब से
उदास सा खड़ा था
दोनो बहुत दिनो से
गली गली खेल रहे थे
टीम से बाहर
निकाल दिया जाना
या नाराज होकर टीम
को छोड़ के आ जाना
एक जैसी ही बात है
खिलाड़ी खिलाड़ी के
खेल को समझते हैं
कोई गली में हो रहा
कठपुतली का तमाशा
जैसा जो क्या होता है
थोड़ी देर के लिये
पुतली की रस्सी
हाथ में किसी को
थमा के नचाने वाला
दिशा मैदान को
निकल जाये और
तमाशे की घड़ी
अटकी रहे खुली
बेशरम बेपरदा
देखने वाला भी
निकाल ले कुछ नींद
या लेता रहे जम्हाई
थोड़ी देर के लिये सही
अब घर की बात हो
और एक ही बाप हो
तो अलग बात है
बाप पर बाप हो
और घर से बाहर
एक बाप खुश और
एक बाप अंदर
से नाराज हो
खैर दूर से दूसरे के
घर के तमाशे को
देखने का मजा ही
कुछ और होता है
जब लग रहा था
इधर वाला उस
घर में घुस लेगा
और उधर वाला इस
घर में घुस लेगा
तभी सब ठीक रहेगा
पोल पट्टी खुलती रहेगी
खबर मिलती रहेगी
पर एक बाप अब
बहुत नाराज दिख रहा है
जब से वो अपने ही घर में
फिर से घुस गया है
अब क्या किया जाये
ये सब तो चलना ही है 

उलूक तू तमाशबीन है
था और हमेशा ही रहेगा
तूने कहना ही है कहेगा
होना वही ढाक के
तीन ही पत्ते हैं
बाहर था तो देख कर
खुजली हो जाती थी
अंदर चला गया
तो हाथ से ही
खुजला देगा
प्रेम बढ़ेगा
देश प्रेम भी
बाप और बेटों का
एक साथ ही दिखेगा
एक अंदर और एक
गली में वंदे नहीं कहेगा।

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

लिख आ कहीं जा कर किसी पेड़ की छाल पर ये भी

ईश्वर के
उस पुजारी
की तरफ
मत देख

जिसे उसके
मंदिर की
जिम्मेदारी
दी गई है

उसका पूजा
करने का
तरीका तुझे
पसंद नहीं भी
हो सकता है

पर यज्ञ
हो रहा है
एक बहुत
विशाल

ईश्वर को
लेकर नहीं
नरक हो
चुके लोकों
के उद्धार
करने के लिये

अवतरित
होने की प्रथा
में परिवर्तन कर
पास किया
जा चुका है

ईश विधेयक
नहीं भेजता
भक्तों के
अवलोकन
के लिये कभी

भक्तों का
विश्वास उसकी
ताकत होती है

आहुति देने
के सामान
के बारे में
पूछ ताछ
करना
सख्त मना है

आचार संहिता
और
सरकार के
भरोसे को
तोड़ने वाले को
जेल भेजने
के लिये
बहुत से कानून
उसने अपने
भक्तों को
बांंटे हुऐ हैं

अब ऐसे में
‘उलूक'
तू यही कहेगा

किसी भी
पुजारी का
आदमी नहीं है

किसी मंदिर
मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च से
तुझे कुछ लेना
और देना नहीं है

तो समझ ले
तेरी सारी
परेशानी की
जड़ तू खुद है

इसीलिये
तुझको
राय दी
जा रही है

तेरे और
तेरे जैसे
थोड़े बहुत
कुछ और
बेवकूफों को
बताने के लिये

यज्ञ
हो रहा है
मान ले
आहुति
देने को
तैयार रह

ईश्वर
और भक्तों
की सत्ता को
मत ललकार

पागल
हो जायेगा
आहुति
का सामान
बाजार में भी
मिलता है
खरीद डाल

बिल की
मत सोच
नेकी कर
कुऐं में
डाल दी गई
चीजों की लिस्ट

कभी किसी
जमाने में
खुदाई में
जरूर निकल
कर के आयेंगी

आगे तेरी
ही पीढ़ी में
किसी को
ताम्र पत्र
दिलाने
के काम
आ जायेंगी
ठंड रख।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

बहुत हैं माचिस के डब्बे चिंता की बात नहीं आग पक्का लगेगी

माचिस का एक
नया डिब्बा
कल गलती से
छूट गया
बाहर आँगन
की दीवार पर
और आज
उसका रंग
उतरा हुआ मिला
शायद ओस ने
या दिन की
तेज धूप ने
हो कुछ कह दिया
तीलियां उसी तरह
तरतीब से लगी हुई
महसूस हुआ
जो भी है आग है
कहीं ना कहीं
इस डब्बे में भी
और शायद
कुछ अंदर
भी कहीं
एक बहुत शाँत  
तीलियों से चिपकी
अनुशाशित
और
एक बिना धुऐं
और चिगारी के
आग होने की सोच
का ढोंग ओढ़े हुऐ
जहाँ बहुत से पागल
लगे हुऐ हैं
पागल बनाने में
जिनके पास
दिखाई देती है
मशाल बनाने
के लिये लकड़ी
पुराना कपड़ा
थोड़ा कैरोसिन
पानी मिला हुआ
और माचिस
ओस से भीग कर
तेज धूप में सुखाई हुई
सुलगने का एक
अहसास ही सही
तीलियाँ आग को
अपने में लपेटे हुऐ
कुछ भीगी कुछ सीली
पर आग तो आग है
कुछ ही दिन की
बस अब बात है
लगने वाली है आग
और उस आग में
सब भस्म हो जायेगा
आग की देवी या देवता
जो भी है कहीं सुना है
कोशिश कर रहा है
गीली तीलियों के
मसाले को सुखा कर
कुछ कुरकुरा बनाने
के जुगाड़ का 

उलूक तुझे कुछ 
नहीं करना है
तीली को रगड़ने
के लिये अगर कोई
माचिस का खाली
डब्बा माँगने  
आ जाये भूले भटके
धूप में सुखा के रखना है
बस एक माचिस का डब्बा ।

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

चादर नहीं होती है अपडेट और कुछ बदल


किसी को
कहाँ 
जरूरत होती है अब
एक चादर 
ओढ़ने के बाद
बाहर निकलते हुऐ
पैरों की लम्बाई देखकर
उनको 
मोड़  लेने की

बहुत तेज हो 
चुकी है जिंदगी
पटरी को बिना छुऐ उसके ऊपर हवा में
दौड़ती हुई एक सुपर फास्ट रेल की तरह

हैसियत की बात 
को
चादर से 
जोड़ने वालों को
अपने ख्यालात दुरुस्त करने में
जरा सा भी नहीं हिचकिचाना चाहिये

उन्हें समझना होगा
गंवार कह कर 
नहीं बुलाया जा सकता है किसी को यहाँ

जिस जगह गाँव 
भी
रोज एक 
नये शहर को ओढ़ कर दूसरे दिन
अपने को अपडेट करने से नहीं चूकता हो

क्योंकि सब जानते हैं
जमीन की मिट्टी से उठ रही धूल
कुछ ही दिनों में बैठ जायेगी

उनकी आशायें 
उड़ चुकी हैं
बहुत दिन हुऐ आकाश की तरफ
दूर बहुत दूर के लिये

बस एक नजर भर 
रखने की जरूरत है
रोज के अखबार के मुख्य पृष्ठ पर
उस समय जब सब कुछ बहुत तेज चल रहा हो

पुरानी हो चुकी
धूल खा रही मुहावरों की किताब को
झाड़ने 
की सोच भी दिल में नहीं लानी होती है

जहाँ हर खबर 
दूसरे दिन ही
नई दुल्हन की तरह बदल कर
सामने से आ जा रही हो

‘उलूक’ तेरी चादर 
के अंदर
सिकोड़ कर 
मोड़ दिये गये पैरों पर
किसी ने ध्यान नहीं देना है

चादरें अब 
पुरानी हो चुकी हैं
कभी मंदिर की तरफ मुँह अंधेरे निकलेगा
तो ओढ़ लेना
गाना भी बजाया जा सकता है उस समय
मैली चादर वाला

ऊपर वाले के पास 
फुरसत हुई तो देख ही लेगा 
एक तिरछी नजर मारकर

तब तक बस 
वोट देने की तैयारी कर ।

चित्र साभार: 
https://www.alamy.com/

रविवार, 13 अप्रैल 2014

रस्में कोई जानता है किसी को समझाई जा रही होती हैं

चुनाव क्यों
करवा रहे हैं
पता नहीं
वोट क्यों
डलवा रहे हैं
पता नहीं
तो पता क्या है
अरे सब पता है
कौन हार रहा है
कौन जीत रहा है
कैसे हार रहा है
कैसे जीत रहा है
कैसे पता है
किसने बताया
फिर वही बात
जो बात
पता होती है
वो किसी से
पूछी नहीं जाती है
अपने आप
गुणा भाग करके
दिमाग में
बैठ जाती है
गिन लो
उठे हुऐ हाथ
यहाँ कमप्यूटर के
खुले हुऐ सारे
पन्नों में
सब के चेहरों
के ऊपर
उनकी वोट
लिखी हुई
नजर आती है
जिनकी नहीं
लिखी होती है
उनकी कोई बिल्ली
चुगली कर जाती है
कमप्यूटर एक
खुली किताब है
हर पन्ने से
कोई ना कोई
झाँक रहा है
अपनी छोड़ कर
हर तीसरे की
वोट को
आँक रहा है
उसे भी पता है
इस देश में अब
चुनाव दो के
बीच में
ही होता है
बाकी फालतू है
बेकार का है
खाली में
कुछ ना कुछ
यूँ ही
हाँक रहा है
तुझे इतना भी
मालूम नहीं है
तभी तो तेरी
बातों को कोई
तूल नहीं देता है
वो हारने वाला
होता है
जो यहाँ पर गाली
खा रहा होता है
कोई ना कोई
अपने कमप्यूटर
पर जिसका 
एक कार्टून
बना रहा होता है
जीतता वो है
जिसे माला पहनाई
जा रही होती है
कमप्यूटर से
कमप्यूटर तक
जिसकी बिना धागे
की पतंग उड़ाई
जा रही होती है
बाकी बेवकूफ
गरीबों की दुनिया है
किसी पोलिंग बूथ
पर एक लम्बी लाईन
लगा रही होती है
उनकी वोट वोट
नहीं होती है
कमप्यूटर पर अगर
कहीं भी कभी भी
दिखाई नहीं
जा रही होती है 

उलूक पता है 
तू कितना
बेवकूफ है
कितनी बात
किस समय तेरी
समझ में आ
रही होती है
कितनी तेरे 
सिर के ऊपर 
से चली जा
रही होती है
परेशान होने की
जरूरत नहीं होती है
जब सरकार
रिश्तेदारों की ही
आ रही होती है
वोट डालना डलवाना 
एक रस्म है
किसी तरह 
से निभाई जा
रही होती है । 

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

सपने में ताबूत सिलने वाला सामने वाले की लम्बाई नापने के लिये ही साथ में आता है

शरीर और शक्ल में
हो ही रहा होता है
हमेशा ही अंतर

कभी किसी हीरो
की तरह दिखाई दे
कभी दिखने लगे
अगर एक बंदर

अलग अलग
परिस्थितियों में
अलग अलग सा
अपने को कोई
पाता भी है तो
समझ में आता है

समय के साथ
मगर नजरिया
बदल जाता है

शक्ल और शरीर
की तरह नहीं
अपनी तरह का
कुछ अलग सा
हो जाता है

ऐसा ही कुछ
बहुत बार
कहा जाता है

अपने बारे में सोचो
इस बात को लेकर
तो कुछ भी समझ
में नहीं आता है

माना कि
हर किसी की
आदतों के बारे में
सब कुछ नहीं
कहा जाता है

साथ में ना भी
रहा हो कोई
एक दो बार ही
बस मिला जुला हो
लौट कर कभी
फिर दिख जाता है

बहुत अच्छा लगता है
लगता है बहुत
समझ में आता है
हर कोई इसी का जैसा
क्यों नहीं हो जाता है

और एक रहता है
बरसों साथ में
शक्ल और शरीर को
अपनी बदलते हुऐ भी

लगता है सब कुछ
पता चल जाता है
ज्यादा ध्यान से
नहीं देखा जाता है

अपना होता है
अपने जैसा ही
समझ में आता है

और एक दिन
अचानक चिकनाई से
फिसलता हुआ कोई
इसी तरह के एक
घड़े से टकराते हुऐ
जब अपने को बचाता है

तो समझ में आता है
अरे जिसे कई बरसों से
समझा हुआ ही
समझा जाता है

वही क्यों कई बार
किसी खड़ी फसल
या खंबे के पास से
गुजरता हुआ अपनी
एक टाँग उठाता है

‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
अब भी मान जा

बदलता है या नहीं
ये तो पता नहीं
पर जो होता है
कभी ना कभी

सच्चाई को
छुपाते छुपाते भी
अपने नहीं
किसी और के
आईने में छोड़ कर
चला आता है ।

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

तेरे लिये कुछ नहीं उसके लिये खुशी हो रही होती है

किसी को उड़ती
हुई चीज पसंद
नहीं होती है
उसकी सोच में
पतंगे दुकान या
गोदाम में पड़ी
होने तक ही
अच्छी होती हैं
चिड़िया कौऐ हों
तब तक ही
अच्छे लगते हैं
जब तक घोंसलों से
झाँकते रहते हैं और
उड़ने की कोशिश
करने में जमीन पर
गिर रहे होते हैं
तितली के होने से
जिसे कोई परेशानी
कभी नहीं होती है
जब तक लारवा
बनी हुई मिट्टी में
सरकती है या
पड़ी रहती है
पर निकलते ही
पर जला कर
एक जले हुऐ दिये
के तेल में डूबती
फड़फड़ा रही होती है
मतलब समझ
उलूक
जिंदा होना भी कोई
जिंदगी होती है
लाश होती है
तभी तो पानी में
तैर रही होती है
एक कटी पतंग
बहुत खूबसूरत
हो रही होती है
बस आकाश से
जब जमीन की
ओर गिर रही होती है
चिड़िया चिड़िया
होती तो है जब
बाज के पंजे में
फँस रही होती है
उसकी खुशी
उसके अंदर
ऐसे में हमेशा
बहुत खुश हो
रही होती है
कहीं से नहीं
झाँकती झलकती है
बस तरंगे निकल
कर चारों और
बह रही होती है
किसी के उड़ने की
एक कोशिश ही
उसकी मायूसी का
सबब हो रही होती है
एक चीज तब तक
उसके लिये कुछ
हो रही होती है
जब तक जमीन
पर घिसट कर
चल रही होती है
परेशानी बस
उसे उसी समय
हो रही होती है
जिस समय
उड़ने की कहीं
एक कोशिश
हो रही होती है । 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

तुम भी सरकार के चुनाव भी सरकार का हमें मत समझाइये

लोक सभा निर्वाचन
के सफल संचालन
हेतु जिला निर्वाचन
अधिकारी ने आदेश
निकाल कर एक
स्वायत्तशाशी संस्था
के कुछ चुने हुऐ
लोगों की चुनाव में
पहली बार ड्यूटी
जो क्या लगाई
ड्यूटी कटवाने के
जुगाड़ लगाने की
होड़ सी लोगों के
बीच तुरंत मच आई
एक दौड़ा बताने
वो एक बड़े दल का
फलाँ फलाँ पदाधिकारी है
संस्था में ही उसे
काम में लगाने की
इधर भी और उधर
भी मारा मारी है
अब यहाँ चुनाव में भी
आप की क्यों गई
मति मारी है
चुनाव करवायेंगे
या प्रचार हमसे
इतनी सी बात
आपके समझ में
पता नहीं क्यों
नहीं आ रही है
हमें चुनाव में
लगा कर क्यों
परेशानी मोल
लेना चाह रहे हैं
जो काम करते हैं
और संस्था के
चुनावों से भी
दूर रहा करते हैं
ऐसे निर्दलीय
लोगों पर आपकी
नजर क्यों नहीं
जा रही है
वैसे भी चुनावों में
सरकारी लोगों की
ड्यूटी ही आज तक
लगाई जाती है
देश का चुनाव भी है
तो हमारी कोई
जिम्मेदारी थोड़ी
हो जाती है
जो लोग चुनाव
लड़ने की कोचिंग
चलाया करते हैं
जवानों को चुनाव में
भाग लेने देने का
पाठ साल भर
पढ़ाया करते हैं
पुलिस की लोकल
इंटेलिजेंस यूनिट
वाले ऐसा हो ही
नहीं सकता कि
ये सारी बातें
आप तक नहीं
पहुँचाया करते हैं
ऐसे लोगों से
चुनाव में भाग लेने
वालों के साथ ही
ड्यूटी निभाने की
जिम्मेदारी छीन
कर ना रुलाइये
लाल पीली नीली
बत्तियों के भविष्य
को किसी के इस
तरह दाँव पर
ना लगाइये 

उलूक तैयार है 
करने को ड्यूटी
उस पर और उसके
जैसे और कई लोगों
पर दाँव लगाइये
ऊपर कहीं से आपको
मजबूर करवाने
के लिये हमे
मजबूर मत करवाइये
चुनाव और देश भक्ति
पर कहीं भाषण
करवाना हो तो
जरूर एक मौका
हमें दिलवाइये।

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

कभी किसी बेखुदी में ऐसा भी हो जाता है

बताने की जरूरत
नहीं है उसे जिसे
पता है वो एक
अच्छा वक्ता नहीं है
बताने की जरूरत
नहीं है एक अच्छा
लेखक होना भी
जिसके बस में नहीं है
फिर भी अपने अंदर ही
सब कुछ जला कर
भस्म कर लेना और
पोत लेना उसी राख को
अपने मुँह बालों
और शरीर पर
शिव ना भी हो सके कोई
शिव की बारात का
एक पिशाच भूत
हो जाना क्या
कम नहीं होता है
जिसको और सिर्फ
जिसको पता होता है
शिव का गरल पीना
उसकी मजबूरी नहीं
बस उसकी आदतों में
शामिल एक आदत
आदतन हो गई है
जिसे केवल तिनेत्र धारी
शिव जानता है
और वो भी 
जो
अपने अंदर की राख
को मलता चला जाता है
अपने ही चेहरे पर
जैसे कुछ लिखा
जा रहा हो
सफेद मिट्टी से
काली जमीन पर
वो सब 
जिसे
दोनो देख रहे होते हैं
एक ताँडव में
और एक राख में
लिखा सुना देखा
सब एक ही जगह पर
बताने समझने की
जरूरत के बिना
अपने अपने खेल
अपने अपने शौक
अब चुनाव और वोट से
दोनो को क्या मतलब
कोई जीते कोई हारे
क्या करना है
और क्या होना है
ना किसी को कैलाश
पर्वत पर जा कर
कोई कथा करनी है
ना ही शिव और
उसके भूत के पास
इतनी फुरसत
और क्यों बर्बाद करे
ईश अपनी उर्जा
चींंटियों को खदेड़ने में
तू भी
उलूक
भंग की पिनक में जैसे
पता नहीं क्या
उड़ान भर ले जाता है
रहने दे लिखता रह
क्या फर्क पड़ता है
अगर किसी के
समझ में कुछ
भी नहीं आता है ।  

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

क्यों परेशाँ रहे कोई रात भर सुबह के अखबार से सब पता चल जाता है

कैसे काट लेता है
कोई बिना कुछ कहे
एक पूरा दिन यहाँ
जहाँ किसी का बोरा
गले गले तक शाम
होने से पहले
ही भर जाता है
सब कुछ सबको
दिखाने लायक
भी नहीं होता है
थोड़ा कुछ झाड़ पोछ
कर पेश कर
ही दिया जाता है
घर से निकलता है
बाहर भी हर कोई
रोज ही काम पर
कपड़े पहन कर आता है
कपड़े पहने हुऐ ही
वापस चला जाता है
आज का अभी
कह दिया जाये
ठीक रहता है
कल कोई सुनेगा
भरौसा ही कहाँ
रह पाता है
भीड़ गुजर जाती है
बगल से उसके
सब देखते हुऐ हमेशा
एक तुझे ही पता नहीं
उसे देखते ही
क्या हो जाता है
उसको भी पता है
बहुत कुछ तेरे बारे में
तभी तो तेरा जिक्र भी
ना किसी नामकरण में
ना ही किसी जनाजे में
कभी किया जाता है
इधर कुछ दिन तूने भी
रहना ही है बैचेन बहुत
उनकी बैचेनी के पते का
पता भी चल ही जाता है
डबलरोटी के मक्खन को
मथने के लिये कारों का
काफिला कर तो रहा है
मेहनत बहुत जी जान से
रोटी के सपने देखने वालों
की अंगुली में लगे
स्याही के निशान का फोटो
अखबार में एक जगह पर
जरूर दिखाया जाता है
कौन बनाने की सोच रहा है
एक नया रास्ता तुझे पता है
पुराने रास्तों की टूट फूट कि
निविदाओं से ही कागज का
मजबूत रास्ता रास्तों पर
मिनटों में बन जाता है
इसको जाना है इस तरफ यहाँ
उसको जाना है उस तरफ वहाँ 

उलूक बस एक तू ही अभी तक 
असमंजस में नजर आता है । 

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

आदत से मजबूर कथावाचक खाली मैदान में कुछ बड़बड़ायेंगे

भेड़ियों
के झुंड में
भेड़ हो चुके

कुछ
भेड़ियों के
मिमयाने की
मजबूरी को

कोई
व्यँग कह ले
या
उड़ा ले मजाक

अट्टहासों
के बीच में
तबले की
संगत जैसा ही
कुछ महसूस
फिर भी
जरूर करवायेंगे

सुने
ना सुने कोई

पर
रेहड़ में
एक दूसरे को
धक्का देते हुऐ
आगे बढ़ते हुऐ
भेड़ियों को
भी पता है

शेरों के
शिकार में से
बचे खुचे माँस
और
हड्डियों में
हिस्से बांट
होते समय

सभी
भेड़ों को
उनके अपने
अंदर के डर
अपने साथ
ले जायेंगे

पूँछे
खड़ी कर के
साथ साथ

एक दूसरे के
बदन से बदन
रगड़ते हुऐ
एक दूसरे का
हौसला बढ़ायेंगे

काफिले
की रखवाली करते
साथ चल रहे कुत्ते

अपनी
वफादारी
अपनी जिम्मेदारी

हमेशा
की तरह
ही निभायेंगे

बाहर की
ठंडी हवा को
बाहर की
ओर ही
दौड़ायेंगे

अंदर
हो रही
मिलावटों में

कभी
पहले भी
टाँग नहीं अढ़ाई
इस बार भी
क्यों अढ़ायेंगे

दरवाजे
हड्डियों के
खजाने के
खुलते ही

टूट पड़ेंगे

भेड़िये
एक दूसरे पर

नोचने
के लिये
एक दूसरे
की ताकत
को तौलते हुऐ

शेर को
लम्बी दौड़
के बाद की
थकावट को
दूर करने की
सलाह देकर

आराम करने का
मशविरा जरूर
दे कर आयेंगे

भेड़
हो चुके भेड़िये

वापस
अपने अपने
ठिकानो पर
लौट कर
शाँति पाठ
जैसा कुछ
करवाने
में जुट जायेंगे

पंचतंत्र
नहीं है
प्रजातंत्र है

इस
अंतर को
अभी
समझने में

कई
स्वतंत्रता
संग्राम
होते हुऐ
नजर आयेंगे ।

रविवार, 6 अप्रैल 2014

नहीं पड़ना ठीक होता है बीच में जहाँ कोई किसी और के आलू बो रहा होता है

सुना है कई कई बार
बहुतों ने कहा है
लिखा भी गया है
इस पार से उस पार
आज का नहीं बरसों
पुराना हो गया है
हर काम जो भी
होता है यहाँ कहीं
अल्ला होता है
किसी के लिये
ईसा होता हो 
या कोई भगवान
उसे कह देता है
यहाँ तक
किसी किसी का
शैतान तक
जैसा कहते हैं
कहीं पर सारी
जिम्मेदारियाँ
ले लेता है
ऐसा ही किसी की
रजामंदी होने का
जिक्र जरूर होता है
काम इस तरह
का भी कहीं और
कहीं उस तरह
का भी होता है
किसी को इस को
करने की आजादी
किसी को उस को
करने पर पाबंदी
किसी के लिये
आराम के एक
काम पर दूसरे के
सिर से पैर तक
डर ही डर
इस पहर से
लेकर उस पहर
तक होता है
फिर कोई क्यों
नहीं बताता
हमें भी
उलूक
तू किस लिये
बात को लेकर
सब कुछ इस
तरह से बेधड़क
लिख लेता है
उसकी सत्ता का झंडा
लहरा लहरा कर
अपनी सत्ता को
पक्का कर लेने का
खेल तो उसके ही
सामने सामने
से ही होता है
वो कर रहा
होता है वहाँ पर
जो भी करना होता है
तेरे बस में लिखना है
तू भी कुछ ना कुछ
लिख रहा होता है
पढ़ने वाले के लिये
ना तुझ में ना तेरे
चेहरे पर कुछ कहीं
दिख रहा होता है
अपने अपने ईश्वरों
के दरबार में
हर कोई दस्तक
दे रहा होता है
देश की सेहत को
कुछ नहीं होने
वाला होता है
जहाँ हर कोई
एक गोली गोल
गोल बना कर के
दे रहा होता है । 

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

हमेशा होता है जैसा उससे कुछ अनोखा नहीं होगा


तुम को लगता होगा
कभी तुम पर लिखा हुआ होगा यहाँ पर शायद कुछ

उसे लगता होगा 
हो सकता है उसके लिये ही कहा गया हो कुछ

पर समय पर लिखा गया कुछ भी
किसी पर भी नहीं लिखा होता है

जो हो रहा होता है उसे तो होना ही होता है

और तुम पर कुछ लिख लेने का साहस होने के लिये
अंदर से बहुत मजबूत होना होता है

चौराहे पर खड़े होकर खीजने वालों के लिये
चार रास्ते होते हुऐ भी  कहीं रास्ता नहीं होता है

हर तरफ से लोग आते हैं और चले जाते हैं
सभी को अपनी मंजिलों का पता होता है

जिसे भटकना होता है
उसके लिये एक ही रास्ता बहुत होता है

ना कहीं मंजिल होती है
ना ही कोई ठिकाना होता है

आना और जाना
उसे भी आता है बहुत अच्छी तरह

जाना किस के लिये और कहाँ होता है
बस यही और यही पता नहीं होता है

परसों गुजरा था इसी चौराहे से
आज फिर जाना होगा
आने वाले कल में भी
इसी रास्ते में कहीं ना कहीं ठिकाना होगा

सब दिखायेंगे
अपने अपने रास्ते
पर जिसे खोना होगा हमेशा की तरह
उसके आने जाने का रास्ता
इस बार भी
पिछली बार की तरह ही
उनहीं गिने चुने निशानेबाजों के निशाने होगा

ऐसे में मत सोच लेना गलती से भी
 कोई तुम पर या फिर उस पर लिख रहा होगा

कुछ ही दिन हैं बचे इंतजार कर 'उलूक'
हर चौराहे पर 
सारा सब कुछ बहुत साफ साफ लिखा होगा ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

शिकायत करने की हर बात पर बीमारी हो गई हो जिसे उसका इलाज ही नहीं कहीं हो पाता है

मलाई लूटने के
मौके बहुत मिलते हैं
बिल्लियों को
सालों साल तक
एक ही जगह से
दूध लूटने का मौका
कभी कभी आता है
क्यों नहीं सीखते हो
इस बात से
थोड़ा बहुत कुछ
दुकान अपनी बंद कर
कुछ दिनों के
लिये ही सही
सड़क किनारे एक
खोमचा क्यों नहीं
आजकल लगाता है
देने या ना देने
जाने या ना जाने
का दस्तूर बहुत
पुराना हो गया है
थोपे गये कबूतरों
को उड़ाने में
किसी का बताये
तो सही कोई
क्या जाता है
शेर बाघों को
जंगल का रास्ता
दिखा दिखा कर
सियारों ने कर
लिया हो जब
हर शहर गाँव
कस्बों से अपना
मजबूत नाता है
सियार हूँ
सियारों के लिये हूँ
सियारों के द्वारा
सियारों का जैसा
करने और कहने में
फिर काहे को शर्माता है
क्या करेगा
उलूक
तेरे पास भी कुछ
तो काम की
कमी लगती है
दुनियाँ हमेशा से
ऐसे ही चलती है
तू भी पागलों की
तरह रोज एक
ना एक शिकायत
ले कर चला आता है
सोचता भी नहीं है
कुछ भी हो
कैसा भी हो
काम करना निभाना
थोड़ा सा भी
क्या कहीं इस तरह
से छोड़ा जाता है
तेरे लगती रहती
है मिर्ची हमेशा
लगती रहे
पता है तुझे भी
तेरे जैसों को
कौन यहाँ और वहाँ
भी मुँह लगाता है ।  

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

सवाल सिस्टम और व्यवस्था का जब बेमानी हो जाता है


कैसे बनेगा कुछ नया उस से 
जिसके शब्दों की रेल में 
गिनती के होते हैं 
कुछ ही डब्बे 

और
उसी रेल को लेकर वो 
सफर करता हो हमेशा ही 
एक इंटरसिटी की यात्रा की तरह 

अपने घर से मौहल्ले बाजार होते हुऐ 
शहर की इस गली से उस गली में 
निकलते हुऐ 

वही रोज की गुड मोर्निंग वही मुस्कुराहटें 

वही पैदल चलने वालों को रौंदने की इच्छा करते हुऐ 
सड़क पर दौड़ते दो पहिये चार पहिये 

कुछ कुत्ते कुछ सांड कुछ पुलिस वाले बेचारे 
नेताओं की ओर से मुँह फेरते हुऐ 
बच्चों और लड़कियों को सीटी बजाकर 
उनके वाहनो को खदेड़ने के करते हुऐ इशारे 

मंदिरों के सामने से उनको ढकती 
खड़ी होती सड़क पर पहँच कर 
दुकाने निकालती 
चालीस फीट उँचाई के नियम को 
तोड़ती बिखेरती मीनारें 

और अंत में 
वही रोज का तालाब 
जिसके किनारे से लगा होता है एक बोर्ड 
यहाँ मछली पकड़ना सख्त मना है 

और कोई भी जहाँ मछली पकड़ता हुआ 
कहीं भी नजर नहीं आता है 

मछलियां अपने आप फंसना फंसाना सीखती है 

कोई किसी से कुछ नहीं कहता है 
या कहो कहना ही नहीं चाहता है 
या नहीं कह पाता है 

कुर्सियाँ भी तो हर जगह होती ही हैं
किनारे किनारे 
उन पर कोई भी कभी भी कहीं भी बैठ जाता है 

बस कुछ गोलियांं रखता है अपने पास 
सबको बाँटता चला जाता है 

गोली देने में कोई जात पात 
कोई ईमान धर्म भी नहीं देखा जाता है 
सब कुछ लोकतांंत्रिक तरीके से किया जाता है

अब 
‘उलूक’ का तो 
रोज का यही काम रह जाता है 
रोज शुरु करता है अपनी यात्रा 
रोज जाता है मछलियां देखता है 
और वापिस भी आ जाता है 

रेल के कुछ डब्बों को आगे पीछे करता हुआ 
दूसरे दिन के लिये एक रेल बनाता है 

ऐसे में कोई कैसे उम्मीद करता है 

कुछ नया खुद का बनाया हुआ 
रेल का एक डब्बा ही सही 
कोई क्यों नहीं किसी को दिखाता है । 

चित्र साभार:

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

समझाने वाले की बात को समझना जरूरी समझा जाता है

पूरी जिंदगी बीतती है  
किसी की कुछ कम
किसी की कुछ ज्यादा
लम्बी ही खींचती है
पर समझ में सबके
सबकुछ अपने अपने
हिसाब का कम या
ज्यादा आ ही जाता है
फिर भी कोशिश
जारी रहती है
समझाने वाले की
हमेशा ही कुछ
ना कुछ समझाने की
सामने वाले को भी
समझाने वाला समझ
में पूरा ही आता है
ये बात अलग है
पता होता है
समझाने वाले को भी
जो वो समझाना
किसी को भी चाहता है
खुद की समझ में
उसके भी जिंदगी भर
बस वही नहीं आ पाता है
समझने वाला पूरी जिंदगी
समझाने वाले से
पीछा नहीं छुड़ा पाता है
समझाने वाले के साथ
भी कोई ना कोई
एक रंगीन छतरी लेकर
जरूर ही इधर या उधर
खड़ा हुआ पाया जाता है
एक श्रँखला बन जाती है
कबूतर के आगे कबूतर
कबूतर के पीछे कबूतर
और बीच वाला कबूतर
अपनी जान साँसत में
हमेशा इस तरह
फँसा ले जाता है
ना निगला जाता है
ना उगला जाता है 

उलूक आधी सदी 
बीत गई तुझे
समझते समझते
तू ही कुछ शरम
कर लेता कुछ
समझ ही लेता
समझाने वालों को
शरम आने की बात
तेरी सोच में भी
कैसे आ जाती है
समझाने वाला
समझने वाले से
हमेशा बीस ही
माना जाता है । 

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

‘माफ करना हे पिता’ लेखक ‘शँभू राणा’ प्रकाशक ‘नैनीताल मुद्र्ण एवं प्रकाशन सहकारी समिति’ वितरक ‘अल्मोड़ा किताब घर, अल्मोड़ा’ मूल्य 175 रु मात्र

बहुत शोर
होता है 
रोज ही
उसका
जिसमें
कहीं भी
कुछ नहीं
होता है

मेरे कस्बेपन
से गुजरते हुए
बिना बात के
बात ही बात में
शहर हो गये
जैसे शहर में

जिसकी किसी
एक गली में
कोई ऐसा भी
कहीं रहता है

जो ना अपना
पता देता है
किसी को
ना किसी के
पास उसके
होने का ही
कोई पता
होता है

शर्मीला
या खुद्दार
कहने से
भी कुछ
नहीं होता है

दुबला पतला
साधारण
सा पहनावा
और
आठवीं
तक चलने
की बात
बताता
और
सुनाता चला
होता है

कलम के
बादशाह
होने वाले
के पास
वैसे भी
खूबसूरती
कुछ
नाज नखरे
बिंदास
अंदाज और
तख्तो ताज
जैसा कुछ भी
नहीं होता है

ज्यादा
कुछ नहीं
कहना होता है

जब
शँभू राणा
जैसा बेबाक लेखक
कलम का जादूगर
सामने से होता है

शहर है गली है
गाँव है आदमी है
या होने को है कुछ
कहीं बस जिसको
पता होता है

हर चीज की नब्ज
टटोलने का आला
जिसकी कलम में
ही कहीं होता है

कुछ लोग होते हैं
बहुत कुछ होते हैं
जिनको पढ़ लेना
सबके बस में ही
नहीं होता है

कई तमगों
के लिये बने
ऐसे लोगों
के पास ही
इस देश में
कोई तमगा
नहीं होता है ।