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प्रतियोगिता
झूठ
बोलने
की ही
हो रही है
हर
तरफ
आज
के दिन
पूरे
देश में
किसी
एक झूठे
के
बड़े झूठ
ने ही
जीतना है
झूठों में
सबसे
बड़े झूठे
को
मिलना
है ईनाम
किसी
नामी
बेनामी
झूठे
ने ही
खुश
हो कर
अन्त में
उछलना है
कूदना है
झूठे ने
ही देना
है झूठे
को
सम्मान
सारे झूठे
नियम बन
चुके हैं
झूठे
सब कुछ
झूठ पर
पारित कर
चुके हैं
झूठों की
सभा में
उस पर
जो भी
बोलना है
जहाँ
बोलना है
किसी झूठे
को ही
बोलना है
सामने से
होता हुआ
नजर आ
रहा है जो
कुछ भी
कहीं पर भी
वो सब
बिल्कुल भी
नहीं देखना है
उस पर
कुछ भी नहीं
कुछ बोलना है
झूठ देखने
से नहीं
दिखता है
इसलिये
किसलिये
आँख को
अपनी
किसी
ने क्यों
खोलना है
झूठ के
खेल को
पूरा होने
तक
खेलना है
झूठ ने ही
बस स्वतंत्र
रहना है
झूठ पकड़ने
वालों पर
रखनी हैं
निगाहें
हरकत
करने से
पहले उनको
पकड़ पकड़
उसी समय
झूठों ने
साथ
मिलकर
पेलना है
जिसे
खेलना है
झूठ
उसे ही
झूठ के
खेल पर
करनी है
टीका टिप्पणी
झूठों के
झूठ को
झूठ ने ही
झेलना है
‘उलूक’
तेरे पेट में
होती ही
रहती है
मरोड़
कभी भरे
होने से
कभी
खाली
होने से
लगा क्यों
नहीं लेता
है दाँव
ईनाम
लेने के लिये
झूठ मूठ
में ही
कह कर
बस कि
पूरा कर
दिया तूने
भी कोटा
झूठ
बोलने का
हमेशा सच
बोलना भी
कोई बोलना है ।
चित्र साभार: www.clipartkid.com
बड़ी सोच का
बड़ा कबीर
खुद को दिखा
दिखा कर ही
बड़ा फकीर
हुआ जाता है
छोटी सोच
बता कर
प्रतिद्वन्दी की
अपने जैसों
के गिरोह के
गिरोहबाजों
को समझाकर
आज किसी
की भी एक बड़ी
लकीर को
बेरहमी के साथ
खुले आम
पीटा जाता है
लकीर का
फकीर होना
खुद का
फकीर को
भी बहुत
अच्छी तरह
से समझ
में आता है
फकीर को
लकीर अगर
कोई समझा
पाता है तो
बस कबीर
ही समझा
पाता है
जरूरी नहीं
होता है तीखा
होना अँगुलियों
के नाखूँनो का
किसी की सोच
को खुरचने के लिये
खून भी आता है
लाल भी होता है
सोच समझ कर
योजना बना कर
अगर हाँका
लगाया जाता है
अकेले ज्यादा
सोचना ही
किसी का
कभी उसी
की सोच
को खा जाता है
बोलने के लिये
अकेले आता है
लेकिन
रोज का रोज
समझाया जाता है
इशारों में भी
बताया जाता है
किताबों खोल कर
पढ़ाया जाता है
एक आदमी
का बोलना
लिखने के लिये
एक दर्जन
दिमागों को
काम में
लगाया
जाता है
छोटी सोच
बताने को
इसी लिये
कोई ना कोई
फकीर कबीर
हो जाता है
बड़ी सोच में
लोच लिये ऐसे
ही फकीर को
बैचेनियाँ
खरीदना
खोदना और
बेचना आता है
आसान होता है
किसी की सोच
के ऊपर चढ़ जाना
उसे नेस्तनाबूत
करने के लिये
एक गिरोह
की सोच
का सहारा
लेकर
किसी भी
सोच का
दिवाला
निकाला
जाता है
जरूरी होता है
दबंगों की सोच
का दबंग होना
दबंगई
समझाने के लिये
अकेले
चने की
भाड़ नहीं
फोड़ सकने
की कहानी
का सार
समझ में
देर से
ही सही
मगर कभी
आता है
‘उलूक’
ठहर जाता है
आजकल
पढ़ते समझते
गोडसे सोचों
की गाँधीगिरी
लिखा लिखाया
खुद के लिये
उसका खुद
के पास ही
छूट जाता है
समझ जाता है
पीटना हो किसी
बड़ी सोच को
आसानी से
एक छोटी
सोच वालों
का एक
बड़ा गिरोह
बनाया जाता है ।
चित्र साभार: Clipart Panda

गुंडे की
गुंडई
होनी ही
चाहिये
अब गुंडा
गुंडई
नहीं
करेगा
तो क्या
भजन
करेगा
वैसे ऐसा
कहना भी
ठीक नहीं है
गुंडे भजन
भी किया
करते हैं
बहुत
से गुंडे
बहुत
अच्छा
गाते हैं
कुछ गुंडे
कवि भी
होते हैं
कविता
करना
और
कवि होना
दोनो
अलग
अलग
बात हैंं
गुंडई
कुछ
अलग
किस्म
की
कविता है
गुंडई
के गीतों
की
धुनें भी
होती हैं
महसूस
भी
होती हैं
कपकपाती
भी हैं
बातें
सब ही
करते हैं
गुंडई का
प्रतिकार
करना भी
जरूरी
नहीं है
क्यों किया
जाये
प्रतिकार भी
जब बात
करने से
काम
निपट
जाता है
गुंडे
पालना
भी एक
कला
होती है
गुंडा नहीं
होने का
प्रमाणपत्र
होना और
गुंडो का
सरदार
होना
एक
गजब
की कला
नहीं
है क्या ?
अखबार
के पन्नों
पर गुंडों
की खबरें
भरत नाट्यम
करती हैं
पता नहीं
पूजा
मंदिर
भगवान
और
गुंडे
कुछ कुछ
ऐसा
जैसे
औड मैन
आउट
करने
का
सवाल
किसे
निकालेंगे ?
सनक की
क्या करे
कोई
किसी की
उस पर
खाली
गोबर सना
गोबर भरा
‘उलूक’
हो अगर
भटक
जाता है
कई बार
कोई
शरमाकर
गुंडो
और
उनकी
गुंडई
पर नहीं
उनके
रामायण
बांंचने की
तारीफ करते
हुए लोगों के
उपदेशों पर
लिखना
इसलिये
भी
जरूरी है
क्योंकि
गुंडा
और
गुंडई
खतरनाक
नहीं
होते हैंं
खतरनाक
होते हैं
वो सारे
समाज के
लोग जो
मास्टर
नहीं होते हैं
पर शुरु
कर देते हैं
हेड मास्टरी
समझाने
और
पढ़ाने को
गुंडई
समाज को।
चित्र साभार: http://i.imgur.com/iWre2oh.jpg
नये
जमाने
के साथ
बदलना
सीखें
कुछ
उद्योग
धन्धे नये
धन्धों से
अलग
खींच कर
धन्धों के
खेत में
खींच
तान कर
अकलमंदी के
डंडे से सींचें
पनपायें
आओ
धमकायें
धमकाने के
धन्धे से
किसी की
किस्मत
चमकायें
आओ बुद्ध
बन जायें
ऊपर कहीं
बैठ कर
ऊँचाई
अपनी
लोगों को
समझायें
नये नये
उद्योगों
की
लम्बी
लम्बी
कतारें
लगायें
आओ
पीछे कहीं
खड़े खड़े
आगे
चल रहे
को
गलियाएं
आओ
लोगों का
बोलना
बन्द
करवायें
बोलती
बन्द करने
की मशीनें
ईजाद करें
देश आगे
ले जायें
अपना
मुँह खोलें
दांत दिखायें
ना देखना
चाहे कोई
काट खायें
आओ
कटखन्ने
हो जायें
काट खाने
के तरीके
समझें
समझायें
नये नये
काटखाने के
उपकरण
तैयार करें
कटखन्ने
उद्योग
उगायें
आओ
सीखें
सिखाने
वालों से
उनके
समझे
बूझे को
‘उलूक’
की तरह
बकवास
कर कर
लोगों को
ना पकायें
आओ
नये जमाने
के
नये लोगों
के नये
ज्ञान का
लाभ उठायेंं
आओ
खुद के
लिये नहीं
किसी
के लिये
लोगों को
धमकायें
धमकाने के
उद्योग
फलें फूलें
राग धमकी
में ढले
गीत गायें ।
चित्र साभार: WorldArtsMe

बेवकूफों
की
दिवाली
समझदारों
की
अमावस
काली
बाकी
लेना देना
अपनी
जगह पर
होना
ना होना
होने
ना होने
की
जगह पर
पहले
जैसा ही
होना
होता है
हो रहा
होता है
अवसरवाद
को
छोड़ कर
कोई भी वाद
वाद नहीं
होता है
किसे
इस बात
से मतलब
हो रहा
होता है
किसे
समझाये
आदमी
इस
बात को
जहाँ
आदमी ही
आदमी को
खुद
खुरचता
और
खुद ही
रो रहा
होता है
पानी नहीं
होता है
फिर भी
कोई भी
किसी
को भी
खुले आम
धो रहा
होता है
सारे
हम्माम
बुला रहे
होते हैं
सब कुछ
उतारे
हुओं
को ही
फिर
किस लिये
कोई
उतारा हुआ
कुछ
ओढ़ कर
उधर
घुसने
के लिये
रो रहा
होता है
पढ़ने
पढाने में
किस लिये
लगे हुए हैं
नासमझ लोग
जब
समझदार
कभी भी
नहीं
पढ़ाने वाला
पढाई लिखाई
कराने वालों
की लाईन
बनाने के
लिये लाईने
बो रहा होता है
केवल एक
दो हजार
के नोट
को
निकालने
में लग
रहे होते
हैं जहाँ
सारे
समझदार लोग
लाईन लगा
कर एक
बेवकूफ
ही होता
है जो
हजारों
दो हजार
के नोटों की
लाईन
पर लाईन
अपने घर पर
कहीं लगा कर
सो रहा होता है
समझने
में लगा है
देश
समझदारी
समझदार की
जो हो
रहा होता है
वो हो
रहा होता है
कोई
नया भी नहीं
हो रहा होता है
घर मोहल्ले में
हर दिन
हर समय
हो रहा होता है
चोर के
हाथ में
चाबियाँ
खजानों
की दिख
रही होती हैं
अंधा ‘उलूक’
अलीबाबा के
खुल जा
सिमसिम
मंत्र को
कागज में
लिख लिख
कर कहीं
बिना बताये
जमीन में
बो रहा
होता है
रोना बन्द
हो रहा
होता है
सभी रोने
वालों का
छातियाँ पीटने
वालों का
काला सोना
सफेद ‘सोना’
हो रहा होता है
क्रांतिकारियों
के चित्र और
कहानियों का
उजाला लिये
हाथ में
सर पीटता
अँधेरा कहीं
कोने में रो
रहा होता है ।
चित्र साभार: Dragon Alley Journals - WordPress.com

जब भी
कहीं
कोई प्रश्न
उठता है
कोई
ना कोई
कुछ ना
कुछ
कहता है
प्रश्न तभी
उठता है
जब उत्तर
नहीं मिलता है
एक ही
विषय
होता है
सब के
प्रश्न
अलग
अलग
होते हैंं
होशियार
के प्रश्न
होशियार
प्रश्न होते हैंं
और
बेवकूफ
के प्रश्न
बेवकूफ
प्रश्न होते हैं
होशियार
वैसे
प्रश्न नहीं
करते हैं
बस प्रश्नों
के उत्तर
देते हैं
बेवकूफ
प्रश्न करते हैं
फिर
उत्तर भी
पूछते हैं
मिले हुऐ
उत्तर को
जरा सा
भी नहीं
समझते है
समझ
गये हैं
जैसे कुछ
का
अभिनय
करते हैं
बहस नहीं
करते हैं
मिले हुए
उत्तर के
चारों ओर
बस सर पर
हाथ रखे
परिक्रमा
करते हैं
समय भी
प्रश्न करता
है समय से
समय ही
उत्तर देता
है समय को
समय
होशियार
और
बेवकूफ
नहीं
होता है
समय
प्रश्नों को
रेत पर
बिखेर
देता है
बहुत सारे
रेत पर
बिखरे हुऐ
प्रश्न
इतिहास
बना देते हैं
रेत पानी में
बह जाती है
रेत हवा में
उड़ जाती है
रेत में बने
महल ढह
जाते हैं
रेत में बिखरे
रेतीले प्रश्न
प्रश्नों से ही
उलझ जाते हैं
कुछ लोग
प्रश्न करना
पसन्द करते हैं
कुछ लोग
उत्तर
के डिब्बे
बन्द करा
करते हैं
बेवकूफ
‘उलूक’
की आदत है
जुगाली करना
बैठ कर
कहीं ठूंठ पर
उजड़े चमन की
जहाँ हर तरफ
उत्तर देने वाले
होशियार
होशियारों
की टीम
बना कर
होशियारों
के लिये
खेतों में
हरे हरे
उत्तर
उगाते हैं
दिमाग
लगाने की
ज्यादा
जरूरत
नहीं है
देखते
रहिये
तमाशे
होशियार
बाजीगरों के
घर में
बैठे बैठे
बेवकूफों के
खाली दिमाग
में उठे प्रश्न
होशियारों के
उत्तरों का
कभी भी
मुकाबला
नहीं करते हैं ।
चित्र साभार: Fools Rush In
अचानक
सामने से
आ पड़ा
अभी आज
पता नहीं
कहाँ से
शब्द
फकीर
अब
आ ही
बैठा
फकीर
तो
आ बैठा
जब तक
फकीर से
बैठने की
गुजारिश
करता
चाय नाश्ते
पानी की
पेशकश
करता
अपने
आस पास
के सारे
फकीर
आ गये
घूमना
शुरु
हो गये
सामने से
पर्दे में
और
दिखा
सूट में
चमचमाता
फकीर
दिखा
हैलीकौप्टर
में आता
जाता फकीर
दिखा
सीटी
बजाता फकीर
दिखा
भजन
गुनगुनाता
फकीर
दिखा
राकेट हो
जाता फकीर
दिखा
गंगा धोने
जाता फकीर
दिखा
चुनाव
जीत जाता
फकीर
दिखा
संसद में
बैठने आता
फकीर
दिखा
भाषण
फोड़ जाता
फकीर
दिखा
हर तरफ
हर आदमी
हो जाता
फकीर
दिखा
घर में
मोहल्ले में
शहर में
जिले में
राज्य में
अपनी
जगह
बनाता
फकीर
दिखा
स्कूल में
कालेज में
पढ़ाता
फकीर
दिखा
परीक्षाएं
करवाता
फकीर
दिखा
विश्वविद्यालय
चलाता
फकीर
दिखा
नेता
बनाता
फकीर
दिखा
अस्पताल में
दवा दारू
दिलवाता फकीर
दिखा
न्याय
दिलवाता
फकीर
दिखा
इज्जत
बचवाता
फकीर
दिखा
चोर
पकड़वाता
फकीर
दिखा
सजा
दिलवाता
फकीर
दिखा
नोट
बदलवाता
फकीर
दिखा
हर तरफ
फकीर
और
फकीर
दिखा
फकीरी
सिखलाता
फकीर
बस कर
‘उलूक’
रुक भी जा
मत देख
फकीर
दर
फकीर
फकीरों
के देश में
खुश
रह कर
हमेशा
की तरह
बैठ कर
पीटता
चला चल
अपनी
लकीर
दर
लकीर ।
चित्र साभार : Kids Coloring Book