बुधवार, 23 अगस्त 2017

पढ़ने वाला हर कोई लिखे पर ही टिप्पणी करे जरूरी नहीं होता है



जो लिखता है उसे पता होता है 
वो क्या लिखता है किस लिये लिखता है 
किस पर लिखता है क्यों लिखता है

जो पढ़ता है उसे पता होता है 
वो क्या पढ़ता है किसका पढ़ता है क्यों पढ़ता है 

लिखे को पढ़ कर उस पर कुछ कहने वाले को पता होता है 
उसे क्या कहना होता है 

दुनियाँ में बहुत कुछ होता है 
जिसका सबको सब पता नहीं होता है 

चमचा होना बुरा नहीं होता है 
कटोरा अपना अपना अलग अलग होता है 

पूजा करना बहुत अच्छा होता है 
मन्दिर दूसरे का भी कहीं होता है 

भगवान तैंतीस करोड़ बताये गये हैं 
कोई हनुमान होता है कोई राम होता है 
बन्दर होना भी बुरा नहीं होता है 

सामने से आकर धो देना 
होली का एक मौका होता है 

पीठ पीछे बहुत करते हैं तलवार बाजी 

‘उलूक’ कहीं भी नजर नहीं आने वाले 
रायशुमारी करने वालों का 
सारे देश में एक जैसा एक ही ठेका होता है । 

चित्र साभार: Cupped hands clip art

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह पूजा करना बहुत अच्छा होता है।
    मंदिर दूसरे का भी कहीं होता है।
    श्रेष्ठ रचना ।बहुत-बहुत बधाई।

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  3. दुनियाँ में बहुत कुछ होता है
    जिसका सबको सब पता नहीं होता है
    वाह!! बेहतरीन रचना आदरणीय

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  4. कभी कभी उलूक का
    कहीं पर निगाहें
    और
    कहीं पर निशाना भी होता है।
    तभी तो उलूक की आंखों में
    फरमाते हैं शौक
    शौक बहराईची।
    आभार और बधाई।

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  5. हमेशा की तरह बात से बात निकल कर बात पहुंच ही गई।
    शानदार प्रस्तुति।

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