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शुक्रवार, 30 जून 2017

बुरा हैड अच्छा टेल अच्छा हैड बुरा टेल अपने अपने सिक्कों के अपने अपने खेल

           
              चिट्ठाकार दिवस की शुभकामनाएं ।


आधा
पूरा 
हो चुके 


साल
के 
अंतिम दिन 

यानि

ठीक 
बीच में 

ना इधर 
ना उधर 

सन्तुलन 
बनाते हुऐ 

कोशिश 
जारी है 

बात
को 
खींच तान 
कर

लम्बा 
कर ले 
जाने
की 

हमेशा 
की
तरह 

आदतन 

मानकर

अच्छी
और 
संतुलित सोच 
के
लोगों को 

छेड़ने
के लिये 
बहुत जरूरी है 

थोड़ी सी 
हिम्मत कर 

फैला देना 
उस
सोच को 

जिसपर 

निकल
कर 
आ जायें 

उन बातों 
के
पर 

जिनका 
असलियत 
से

कभी 
भी कोई 
दूर दूर 
तक
का 
नाता रिश्ता 
नहीं हो 

बस

सोच 
उड़ती हुई 
दिखे 

और 
लोग दिखें 

दूर 
आसमान 
में कहीं 

अपनी
नजरें 
गढ़ाये हुऐ 

अच्छी
उड़ती हुई
इसी 
चीज पर 

बंद
मुखौटों 
के
पीछे से 

गरदन तक 
भरी

सही 
सोच को 

सामने लाने 
के
लिये ही

बहुत
जरूरी है 

गलत
सोच के 

मुद्दे

सामने 
ले कर
आना 

डुगडुगी
बजाना 

बेशर्मी के साथ 

शरम
का 
लिहाज 
करने वाले 

कभी कभी 

बमुश्किल 
निकल कर 
आते हैं
खुले में

उलूक’ 

सौ सुनारी 
गलत बातों
पर 

अपनी अच्छी 
सोच
की 

लुहारी
चोट 
मारने
के
लिये।

बुधवार, 14 सितंबर 2016

शब्द दिन और शब्द अच्छे जब एक साथ प्रयोग किये जा रहे होते हैं

कुछ शब्द
कभी भी

खराब गन्दे
अजीब से

या
गालियाँ
नहीं होते हैं

पढ़े लिखे
विद्वतजन
अनपढ़
अज्ञानी

सभी समझते हैंं
अर्थ उनके
करते हैं प्रयोग
बनाते हैं वाक्य

पर्दे में नहीं
रखे जाते हैं
इतने बेशर्म
भी
नहीं होते हैं

ना सफेद
ना काली
ना हरी
ना लाल
मिर्च ही
होते हैं

एक ही दिन के
एक प्रहर में ही
एक ही नहीं
कई कई बार
प्रयोग होते हैं

ज्यादातर
कोई ध्यान
नहीं देता है

कहते कहते
बात में बेबात में
ऐसे वैसे या कैसे
किससे क्यों

और
किसलिये
कहे गये
होते हैं

कभी
शब्दों के
आगे के

कभी
शब्दों के
पीछे के
शब्द होते हैं

एक वचन होंं
स्त्रीलिंग होंं
बहुत ज्यादा
नरम होते हैं

बहुवचन और
पुल्लिंग होते
ही लगता है

जैसे कभी
अचानक ही
बहुत गरम
हो रहे होते हैं

दिन
अच्छा कहो
अच्छा दिन कहो

पत्ते हरे हों
या सूखे कहो

कहीं के भी
कभी भी
हिलते हुऐ
जरा सा भी
महसूस
नहीं होते हैं

‘उलूक’
बेवकूफ के
भेजे में भरे
गोबर में
उठते भवरों से

कुछ अजीब
से प्रश्न जरूर
उसे उठते हुऐ
दिख रहे होते हैं

जब शब्द
दिन के पीछे
शब्द अच्छे
और शब्द
अच्छे के आगे
शब्द दिन

किसी भी
संदर्भ में कहे गये
करा रहे होते हैं 

आभास
कहीं कुछ जलने का

और
सामने सामने
के ही कुछ

कुछ लाल
और
कुछ पीले
हो रहे होते हैं ।

चित्र साभार: www.indif.com

शनिवार, 28 नवंबर 2015

नहीं आया समझ में कहेगा फिर से पता है भाई पागलों का बैंक अलग और खाता अलग इसीलिये बनाया जाता है

बहुत अच्छा
खूबसूरत सा
लिखने वाले
भी होते हैं
एक नहीं कई
कई होते है
सोचता क्यों
नहीं है कभी
तेरे से भी कुछ
अच्छा क्यों नहीं
लिखा जाता है
लिखना तो
लगभग सब
में से सभी
को आता है
सोचता हूँ
हमेशा सोचता हूँ
जब भी लिखने की
कोशिश करता हूँ
सोचने की भी बहुत
कोशिश करता हूँ
सोचना सच में
मुश्किल हो जाता है
सोचा ही नहीं जाता है
निकल रहा होता है
इधर का उधर का
यहाँ का वहाँ का
निकला हुआ
अपने आप
अपने आप ही
लिखा जाता है
समझाने समझने
की नौबत ही
नहीं आती है
सारा लिखना
लिखाना
पाखाना हो जाता है
किस से कहा जाये
शब्दकोष
होने की बात
किस को
समझाई जाये
भाषा की औकात
कटता हुआ बकरा
गर्दन से बहती
खून की धार
खाता और पीता
मानुष बनमानुष
सब एक हो जाता है
लिखना जरूरी है
खासकर पागलों
के लिये
‘उलूक’ जानता है
भविष्य में पढ़ने
लिखने के विभागों
में उसी तरह
का पाठ्यक्रम
चलाया जाता है
जिसमें आता और
जाता पैसा माल
सुरंगों के रास्ते
निकाला और
संभाला जाता है
कितना बेवकूफ
ड्राईवर निकला
ते
ईस करोड़ लेकर
दिन दोपहर
भागने के बाद
पकड़ा जाता है
इसीलिये बार बार
कहा जाता है
अच्छा खासा
पढ़ा पढ़ाया होना
एक फनकार
होने के लिये
बहुत ही जरूरी
हो जाता है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

बुधवार, 12 अगस्त 2015

‘उलूक’ की आदत है लिखे जा रहा है क्या फर्क पड़ता है कौन पढ़ने आ रहा है

बहुत सुकून सा
महसूस हो रहा है
वो सब देख कर जो
सामने से हो रहा है
जो हो रहा है वही
सब कुछ दिखाया
भी जा रहा है
उसी हो रहे के बारे में
बताया भी जा रहा है
गरम चर्चाऐं हैं बहस हैं
हो रहे में से ही कुछ को
बुलाया भी जा रहा है
हो क्या रहा है
ये अपना बता रहा है
उसने भी बताना है
वो भी बता रहा है
समझाने बुझाने में
कोई नहीं आ रहा है
अच्छा है हो रहा है
हो रहा है और हुऐ
भी जा रहा है
हो रहे को कोई रोक
भी नहीं पा रहा है
इस सब में सबको
ही मजा आ रहा है
बताने वाले के पास
काम हो जा रहा है
दिखाने वाला भी
सब दिखा रहा है
देखने वाले देख रहे हैं
जो जो जब से
हुआ जा रहा है
इस होने में वैसे कोई
नई बात भी नहीं
हुई जा रही है
पहले भी हुआ करती थी
पता तक नहीं चलता था
कोई परदा लगा रहा है
परदे में सालों साल
चलता रहने वाला अब
परदे फाड़ कर परदों से
बाहर आ रहा है
अच्छा संकेत है
देश अच्छी दिशा
में जा रहा है
‘उलूक’ की आदत है
लिखे जा रहा है
क्या फर्क पड़ता है
कौन पढ़ने आ रहा है ।

चित्र साभार: www.ndtv.com

गुरुवार, 11 जून 2015

कीचड़ करना जरूरी है कमल के लिये ये नहीं सोच रहा होता है

जब सोच ही
अंधी हो जाती है
सारी दुनियाँ
अपनी जैसी ही
नजर आती है

अफसोस भी
होता है
कोई कैसे किसी
के लिये कुछ
भी सोच देता है

किसी के काम
करने का कोई
ना कोई मकसद
जरूर होता है

उसकी नजर होती है
उसकी सोच होती है

बुरा कोई भी
नहीं होता है
जो कुछ भी होता है
अच्छे के लिये होता है

कुछ भी किसी
के लिये भी
किसी समय भी
कहने से पहले
कोई क्यों नहीं
थोड़ा सोच लेता है

एक उल्टा
लटका हुआ
चमगादड़ भी
उल्टा ही
नहीं होता है

वो भी
सामने वाले सीधे को
उल्टा हो कर ही
देख रहा होता है

‘उलूक’
तेरे लिये
तेरे आस पास
हर कोई गंदगी
बिखेर रहा होता है

सब के चेहरे पे
मुस्कान होती है
देखने वाला भी
खुश हो रहा होता है

बस यहीं पर पता
चल रहा होता है
एक अंधी सोच वाला
अंधेरे को बेकार ही में
कोस रहा होता है

जबकि गंदगी
और कीचड़
बटोरने वाला
हर कोई
आने वाले
समय में कमल
खिलाने की
सोच रहा होता है ।

चित्र साभार: www.cliparthut.com

रविवार, 4 जनवरी 2015

है तो अच्छा है नहीं है तो बहुत अच्छा है


नया कहने के लिये उठ लिया जाये 
अच्छा है 
रहने दें नींद ही में रह लिया जाये 
तो भी अच्छा है 

खयाल के
खाली चावलों को बीनते बीनते नींद आ जाती है 
थोड़ा खयाली पुलाव पका लिया जाये 
अच्छा है 

उनको आता है खयाल के घोड़े दौड़ाना 
अपना गधा भी कम नहीं है 
गधा है फिर भी अच्छा है 

पाँच के दस के और बीस के नोट 
बहुत पुराने हैं मगर अच्छे हैं 
पंद्रह पच्चीस के भी आ जायें छप कर
और अच्छा है 

उसकी बारूद की टोकरी की खबर उसने दी 
अच्छा है 
इसने फोड़ कर उसके सिर में 
पीठ थपथपा ली अपनी 
बहुत अच्छा है 

इसका दिल है धड़कता है 
ये भी अच्छा है 
उसका दिल है धड़कता है 
वो भी अच्छा है 

अच्छी बात करना सबसे अच्छा है 
अच्छा दिन है अच्छी रात है 
बहुत अच्छा है 

अच्छी खबरें है अच्छी बात हैं 
जो है सो है बहुत अच्छा है 

और फिर से नया कहने के लिये 
उठ लिया जाये अच्छा है 
रहने दें नींद ही में रह लिया जाये 
और अच्छा है । 

चित्र साभार: www.christart.com

सोमवार, 17 नवंबर 2014

जरूरी है याद कर लेना कभी कभी रहीम तुलसी या कबीर को भी



बहुत सारी तालियाँ
बजती हैं हमेशा ही
अच्छे पर अच्छा
बोलने के लिये
इधर भी और
उधर भी
 नीचे नजर
आ जाती हैं
दिखती हैं
दूरदर्शन में
सुनाई देती हैं
रेडियो में
छपती हैं
अखबार में
या जीवित
प्रसारण में भी
सामने से खुद
के अपने ही
शायद बजती
भी हों क्या पता
उसी समय
कहीं ऊपर भी
अच्छा बोलने
के लिये अच्छा
होना नहीं होता
बहुत ही जरूरी भी
बुरे को अच्छा
बोलने पर नहीं
कहीं कोई पाबंदी भी
अच्छे होते हैं
अच्छा ही देखते हैं
अच्छा ही बोलते हैं
ज्यादातर होते ही हैं
खुद अपने आप में
लोग अच्छे भी
बुरी कुछ बातें
देखने की उस पर
फिर कुछ कह देने की
उसी पर कुछ कुछ
लिख देने की
होती है कुछ बुरे
लोगों की आदत भी
अच्छा अच्छा होता है
अच्छे के लिये
कह लेना भी
और जरूरी भी है
बुरे को देखते
बुरा कुछ कहते
रहना भी
करते हुऐ याद
दोहा कबीर का
बुरा जो देखन मैं चला
हर सुबह उठने
के बाद और
रात में सोने से
पहले भी ।

 चित्र साभार:
funny-pictures.picphotos.net

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

क्या करे कोई अगर अच्छा देखने का भी बुरा नजरिया होता है

सबका शहर
सबके लिये
बहुत ही 
खास होता है

बहुत सी
खासियत
होती हैं
हर शहर की
जाना जाता है
पहचाना जाता है
देश ही नहीं
विदेश में भी
हर किसी के लिये
अपना शहर
उसकी नजर में
कुछ ना कुछ
विशेष होता है
सब के लिये
एक ही नहीं
कुछ अलग
भी होता है 
किसी का
बचपन होता है
किसी की
जवानी होती है
किसी का
बुढ़ापा होता है
कोई शहर
छोड़ भी
चुका होता है
पर उसकी
यादों में कुछ
जरूर होता है
मेरी यादों में
पागलों का एक
काफिला होता है
बचपन से आज
तक मैने शहर
की गलियों में
देखा होता है
बहुत ज्यादा मगर
अफसोस होता है
जब याद आता है
बचपन के जाने से
बुढ़ापे के आने  तक
बहुत कुछ बोलते
बहुत कुछ लिखते
बहुत सी जगहों पर
इसी शहर की
गलियों में बहुत से
पागलों को देखा है
बहुत कुछ
खो दिया होता है
जब खुद के
लिखे में उनका
लिखा हुआ
जैसा बहुत
कुछ होता है
मेरे शहर का
मिजाज तब
और होता था
आज कुछ
और होता है
पागल पहले
भी हुऐ है
लिखने और
बोलने वाले

आज भी होते हैं
बाकी हर शहर में
कुछ तो
अलग और

विषेश होता है
जो यहाँ होता है
उससे अलग
कहीं और भी
क्या पता
कुछ और
भी होता है

और बहुत ही
खास होता है ।

सोमवार, 2 सितंबर 2013

कभी कुछ अच्छा सुनाई दे तो अच्छा कहा जाये

सुन

कब तक 


शरम
का लबादा

ओढे़
तू रहेगा

बाप दादा
के जमाने
की सोच

कब
जाकर के
तू कहीं छोडे़गा

हमाम
में भी कपडे़
पहन कर
चला आता है

तरस
आता है
तेरे जैसों की
अक्ल पर कभी

ऊपर
वाला भी
तेरे जैसों के लिये
कहाँ तक करेगा

और
क्या क्या
कर के छोडे़गा

भूखों
की भूख

मान
भी लेते हैं
तू रोटी दे कर
मिटा ले जायेगा

नंगों
को कपडे़
कुछ उड़ा कर
भी आ जायेगा

पर
बहुत कुछ
होते हुऎ भी

अगर
कोई भूखा
और
नंगा हो जायेगा

तो
तू क्या
कोई भी
कहीं भी

ऎसों
के लिये
कुछ भी नहीं
कर पायेगा

ऎसे में

कैसे
सोच लेता है तू

कभी
एक अच्छा
सा गीत
या गजल
लिख ले जायेगा

किसी भी
चोर से
पूछ के आजा
आज भी जाकर

हर कोई
अन्ना का
रिश्तेदार
अपने को
ही बतायेगा

तेरी तो
उससे
भी नहीं है
कोई रिश्तेदारी

अंत में
तू खुद ही

एक चोर
साबित हो जायेगा

सबको
नजर
आती रहेंगी
तितलियाँ
और
फूल भी

बस
एक तू ही
अपना जैसा

मौजू
उठा के
ले आयेगा

मान
भी लेते हैं
लिख लेगा
दो चार
बेकार की बातों
के कुछ पुलिंदे

पढ़ने
को कौन
आयेगा

क्यों आयेगा

और
आखिर
कब तक
आ पायेगा

लिखना
पढ़ना तो
बौद्धिक भूख
मिटाने के लिये
किया जाता है

ये
किसने कह दिया

दिमाग
में भरा
गोबर भी
इसी में
दिखा
दिया जाता है

कभी
किसी के
लिये लडे़गा

कभी
खुद से लडे़गा

कभी
अपनों
से लडे़गा

तू
अपनी
तलवार
हवा में ही
इस तरह
चलाता
चला जायेगा

जिसके
लिये लडे़गा
उसकी भी
गालियाँ खायेगा

मौका
मिलते ही

उसे भी
रोटी में
झपटता
हुआ पायेगा

कुछ नहीं
कह पायेगा

यूँ ही बस
झल्लायेगा

बहुत
तेजी से
बदल रही है
भाई सभ्यता

इस
बात को
पता नहीं

कब
तू समझ पायेगा

सिद्धांत
किसी के
नहीं होते हैं
आज के जमाने में

मौका
मिलते ही
हर कोई

समझौता
कर ले जायेगा

मुझे पता है

तू
कभी भी नहीं
सुधर पायेगा

इन
सब में से भी

तुझे
कूडे़दान में
कुछ कूड़ा
भरने का
मौका
मिल जायेगा

सोच
में रख लेना
फिर भी अपनी

एक गीत
और
एक गजल को

क्या पता
किसी दिन
कुछ नहीं
होगा कहीं

और
शायद
तुझसे
उस दिन
कुछ नहीं कहा जायेगा ।

शनिवार, 31 अगस्त 2013

सच्चा और अच्छा होने का लाइसेंस ले आ फिर करता जा मत घबरा


चार लोगों को
जो अपने साथ खड़ा भी नहीं कर सकता हो 
वो भला सच्चा कैसे हो सकता है

सब के साथ में सब जगह दिखेगा
कुछ नहीं कहेगा कुछ नहीं लिखेगा
वो जरूर अच्छा हो सकता है

अच्छे और सच्चे होने की परिभाषा
निर्धारित की जा चुकी है
सदन में पास हो चुकी है अखबार में छापी जा चुकी है

जल्दी ही इसके लिये निविदा
एक निकाली भी जाने वाली है

अच्छे और सच्चे होने के लाइसेंस
सरकार जल्दी ही बनवा के बंटवाने वाली है

छोटे छोटे गली नुक्कड़ के अपराधों के लिये
किसी को कोई सजा अब नहीं दी जाने वाली है

अपने अपने हिसाब से
जिसको जो अच्छा लगता हो प्रायोजित करवा सकता है
जिसे धरना कराना हो वो धरना करा सकता है
जिसे किसी को उठवाना हो
वो उसे उठा के अपने घर में रखवा सकता है

जल्दी ही इन सब पर
नियम कानून की किताब बन के आ जाने वाली है
  
छोटी मोटी घटनाओं की बड़ती आवृति से
पुलिस भी अब निजात पा जाने वाली है

बुद्धिजीवियों को भी गुंडागर्दी करने की
कुछ छूट भी 
इसमें दी जाने वाली है

राजनैतिक दल से जुडे़ होने पर
दल की हैसियत के अनुसार
कम बाकी कर दी जाने वाली है

सरकार के दल से जुडे़ अच्छे और सच्चे को
छूट के साथ ईनाम भी दिया जायेगा

सरकार के कमीशन का कुछ प्रतिशत
उसके खाते में अपने आप जमा जा के हो जायेगा
रोज रोज छोटे मोटे हाथ साफ करने से
कुछ तो राहत वो पायेगा

विपक्ष का भी ध्यान रखा जायेगा
उनके अच्छे और सच्चे लोगों को
उनके अपने हिसाब से काम करने दिया जायेगा

बस उनको ये बता दिया जायेगा
कि पक्ष के अच्छे और सच्चे लोगों से
उनका कोई भी आदमी कहीं भी नहीं टकरायेगा

ऊपर वालों को कुछ दिखाने के लिये कुछ करना
अगर बहुत जरूरी हो जायेगा

ऎसे समय में जो किसी भी दल में नहीं होगा
उससे पंगा ले लिया जायेगा

जिसका कोई नहीं होगा 
वो किसी के पास अपनी फरियाद ले कर नहीं जा पायेगा

जनता सुखी होगी उन्नति करेगी
डर सबका भाग जायेगा

मुसीबत आ भी गई कभी सामने तो
अच्छा आदमी सच्चा होने का
लाइसेंस निकाल के दिखायेगा ।

चित्र साभार:
https://economictimes.indiatimes.com/

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

अच्छी छवि होना अच्छा नहीं होता है

कतिपय
कारणों से

तू अपनी एक
अच्छी छवि नहीं
बना पाया होगा

कभी ऎसा
भी होता है

समझौते करना
करवाना शायद
इसी चीज ने तुझे
तभी सिखाया होगा

होता है

इसीलिये
तू बहुत ही शातिर
हो पाया होगा

यही तो फिर
होता है

इन सब के बावजूद
सारे काम निकलवाने
के लिये तूने अपनी
बुद्धि को लगाया होगा

जो करना ही
होता है

एक अच्छी छवि
के आदमी को
बहलाया होगा
काम वही कर रहा है
सबको दिखाया होगा

हर किसी को
इस तरह का
एक आदमी
चाहिये ही
होता है

काम करवाने
के लिये
पैसे रुपिये
जमा कुछ
करवाया होगा

बिना इसके कोई
काम कैसे होता है

थोड़ा कुछ उसमें से
तूने भी खाया होगा

अब मेहताना
कौन बेवकूफ
नहीं लेता है

अच्छी छवि
वाले को
किसी ने कुछ
बताया होगा

भला ऎसा
कहीं होता है

अब समझ में
आ ही गया
होगा तेरे को

अच्छे कर्म
करने का
फायदा जरूर
होता है

ये बात
अलग है कि
उसका श्रेय कोई
और ले लेता है

इसी लिये तो
कहा गया है
नेकी करने के बाद
उसको कूँऎं में क्यों
नहीं डाल देता है

जिसे नहीं आती है
समझ में यही बात
वो सब कुछ किसी
के लिये करने
पर मजबूर
होता है

करना भी उसे
होता है
और
करनी पर रोना
भी उसे ही
होता है

तू खुद
ही सोच ले अब

एक अच्छी
छवि होने से
कोई कितना
बदनसीब
होता है ।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

भले हैं नारद जी अच्छा ही चाहते हैं

नारद जी को
ये जरा भी 

समझ में
नहीं आता है

देवताओं और
असुरों से
साथ साथ
आखिर क्यों
नहीं रहा जाता है

कितने साल
देखिये हो गये
कितने असुर
असुर नहीं रहे
देवता जैसे
ही हो गये

देवताओं का
असुरों में
असुरों का
देवताओं में
आना जाना
भी अब
देखा ही जाता है

नारद जी को
वैसे तो
देवता ही
माना जाता है

असुरों के यहाँ
आना जाना
लेकिन उनका
बहुत बार देखा
सुना जाता है

बहुत
समय से
इसीलिये
जुगाड़
लगा रहे हैं

असुरों को
देवताओं में
मिलाने का मिशन

अपना ध्येय
बना रहे हैं

देवता तो
हमेशा बहुमत
में होते हैं

क्योंकी वो तो
देवता लोग होते हैं

ये बात
कोई
नहीं देखता
कुछ देवता
देवताओं के
कहने पर
नहीं जाते हैं

पर देवता तो
देवता होते हैं
गिनती में
देवताओं के
साथ ही हमेशा
गिने जाते हैं

असुर तो
हमेशा से ही
अल्पसंख्या
में पाये जाते हैं

मौका
मिलता है कभी
अपने काम के लिये
देवता हो जाने में
नहीं हिचकिचाते हैं

बेवकूफ
लेकिन हमेशा
ही नहीं बनाये जाते हैं

समझते हैं
सारे असुर
अगर देवताओं के
साथ चले जायेंगे

अभी
छुप कर करते हैं
जो मनमानी

उसे करने के लिये
खुले आम मैदान में
निकल के आ जायेंगे

यही सब सोच कर
असुर रुक जाते हैं

ज्यादा
नुकसान
कुछ उनको
नहीं होता 
है

देवताओं
के राज्य में
वैसे भी
उनके काम
कौन सा
हो पाते हैं ।

शनिवार, 18 मई 2013

कुछ अच्छा लिख ना

आज कुछ तो
अच्छा लिखना
रोज करता है
यहाँ बक बक
कभी तो एक
कोशिश करना
एक सुन्दर सी
कविता लिखना
तेरी आदत में
हो गया है शुमार
होना बस हैरान
और परेशान
कभी उनकी तरह
से कुछ करना
जिन्दगी को रोंदते
हुऎ जूते से
काला चश्मा
पहने हुऎ हंसना
गेरुआ रंगा
कर कुछ कपडे़
तिरंगे का
पहरा करना
अपने घर मे
क्या अटल
क्या सोनिया
कहना
दिल्ली में
करेंगे लड़ाई
घर में साथ
साथ रहना
ले लेना कुछ
कुछ दे देना
इस देश में
कुछ नहीं
है होना
देश प्रेम
भगत सिंह का
दिखा देना
बस दिखा देना
बता देना वो
सब जो हुआ
था तब बस
बता देना
लेना देना
कर लेना
कोई कुछ
नहीं कहेगा
गाना इक
सुना देना
वन्दे मातरम
से शुरु करना
जन गण मन
पर जाकर
रुका देना
कर लेना जो
भी करना हो
ना हो सके तो
पाकिस्तान
के ऊपर ले जा
कर ढहा देना
सब को सब
कुछ पता होता है
तू अपनी किताब
को खुला रखना
आज कुछ तो
अच्छा लिखना
रोज करता है
यहाँ बक बक
कभी तो एक
कोशिश करना
एक सुन्दर सी
कविता लिखना ।