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शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

कहानी की भी होती है किस्मत ऐसा भी देखा जाता है

कहानियाँ
बनती हैं
एक नहीं बहुत

हर जगह पर
अलग अलग

पर
हर कहानी
एक जगह नहीं
बना पाती है

कुछ
छपती हैं
कुछ
पढ़ी जाती हैं

अपनी अपनी
किस्मत होती है
हर कहानी की

उस
किस्मत के
हिसाब से ही
एक लेखक
और
एक लेखनी
पा जाती हैं

एक
बुरी कहानी
को एक अच्छी
लेखनी ही
मशहूर बनाती है

एक
अच्छी कहानी
का बैंड भी एक
लेखनी ही बजाती है

पाठक
अपनी
सोच के
अनुसार ही
कहानी का
चुनाव कर पाता है

इस मामले में
बहुत मुश्किल
से ही अपनी
सोच में कोई
लोच ला पाता है

मीठे का शौकीन मीठी
खट्टे का दीवाना खट्टी
कहानी ही लेना चाहता है

अब कूड़ा
बीनने वाला भी
अपने हिसाब से ही
कूड़े की तरफ ही
अपना झुकाव
दिखाता है

पहलू होते हैं ये भी
सब जीवन के ही

फ्रेम देख कर
पर्दे के अंदर रखे
चित्र का आभास
हो जाता है

इसी सब में
बहुत सी
अनकही
कहानियों की
तरफ किसी का
ध्यान नहीं जाता है

क्या किया जाये
ये भी होता है
और
बहुत होता है

एक
सर्वगुण
संपन्न भी
जिंदगी भर
कुँवारा
रह जाता है ।

बुधवार, 25 सितंबर 2013

अपने कैलेंडर में देख अपनी तारीख उसके कैलेंडर में कुछ नया नहीं होने वाला है

रोज एक कैलेंडर
नई तारीख का
ला कर यहां लटका
देने से क्या कुछ
नया होने वाला है
सब अपने अपने
कैलेंडर और तारीख
लेकर अपने साथ
चलने लगे हैं आजकल
उस जगह पर तेरे
कैलेंडर को कौन देखेने
आने वाला है
अब तू कहेगा तुझे
एक आदत हो गई है
अच्छी हो या खराब
किसी को इससे
कौन सा फर्क जो
पड़ने वाला है
परेशानी इस बात
की भी नहीं है
कहीं कोई कह रहा हो
दीवार पर नये साल पर
नया रंग होने वाला है
जगह खाली पड़ी है
और बहुत पड़ी है
इधर से लेकर उधर तक
जहां जो मन करे जब करे
लटकाता कोई दूर तक
अगर चले भी जाने वाला है
सबके पास हैं बहुत हैं
हर कोई कुछ ना कुछ
कहीं ना कहीं पर
ला ला कर
लटकाने वाला है
फुरसत नहीं है किसी को
जब जरा सा भी कहीं
देखने कोई किसी और का
कैलेंडर फिर क्यों कहीं
को जाने वाला है
अपनी तारीख भी तो
उसी दिन की होती है
जिस दिन का वो एक
कैलेंडर ला कर यहां
लटकाने वाला है
मुझे है मतलब पर
बस उसी से है जो
मेरे कैलेंडर की तारीख
देख कर अपना दिन
शुरु करने वाला है |

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

अच्छी छवि होना अच्छा नहीं होता है

कतिपय
कारणों से

तू अपनी एक
अच्छी छवि नहीं
बना पाया होगा

कभी ऎसा
भी होता है

समझौते करना
करवाना शायद
इसी चीज ने तुझे
तभी सिखाया होगा

होता है

इसीलिये
तू बहुत ही शातिर
हो पाया होगा

यही तो फिर
होता है

इन सब के बावजूद
सारे काम निकलवाने
के लिये तूने अपनी
बुद्धि को लगाया होगा

जो करना ही
होता है

एक अच्छी छवि
के आदमी को
बहलाया होगा
काम वही कर रहा है
सबको दिखाया होगा

हर किसी को
इस तरह का
एक आदमी
चाहिये ही
होता है

काम करवाने
के लिये
पैसे रुपिये
जमा कुछ
करवाया होगा

बिना इसके कोई
काम कैसे होता है

थोड़ा कुछ उसमें से
तूने भी खाया होगा

अब मेहताना
कौन बेवकूफ
नहीं लेता है

अच्छी छवि
वाले को
किसी ने कुछ
बताया होगा

भला ऎसा
कहीं होता है

अब समझ में
आ ही गया
होगा तेरे को

अच्छे कर्म
करने का
फायदा जरूर
होता है

ये बात
अलग है कि
उसका श्रेय कोई
और ले लेता है

इसी लिये तो
कहा गया है
नेकी करने के बाद
उसको कूँऎं में क्यों
नहीं डाल देता है

जिसे नहीं आती है
समझ में यही बात
वो सब कुछ किसी
के लिये करने
पर मजबूर
होता है

करना भी उसे
होता है
और
करनी पर रोना
भी उसे ही
होता है

तू खुद
ही सोच ले अब

एक अच्छी
छवि होने से
कोई कितना
बदनसीब
होता है ।

रविवार, 12 मई 2013

अच्छी सोच छुट्टी के दिन की सोच

अखबार आज
नहीं पढ़ पाया


हौकर शायद
पड़ौसी को
दे आया


टी वी भी
नहीं चल पाया
बिजली का
तार बंदर ने
तोड़ गिराया


सबसे अच्छा
ये हुआ कि
मै काम पर
नहीं जा पाया


आज
रविवार है
बड़ी देर में
जाकर
याद आया


तभी कहूँ
आज सुबह
से अच्छी बातें
क्यों सोची
जा रही हैं


थोड़ा सा
रूमानी
हो जाना
चाहिये
दिल की
धड़कन
बता रही है


बहुत कुछ
अच्छा सा
लिखते हैं
कुछ लोग


कैसे
लिखते होंगे
बात अब
समझ में
आ रही है


लेखन
इसीलिये
शायद
कूड़ा कूड़ा
हुआ
जा रहा है


अखबार हो
टी वी हो
या समाज हो
जो कुछ
दिखा रहा है


देखने
सुनने वाला
वैसा ही होता
जा रहा है


कुछ
अच्छी सोच
से अगर अच्छा
कोई लिखना
चाह रहा है


अखबार
पढ़ना छोड़
टी वी बेच कर
जंगल को क्यों
नहीं चले
जा रहा है ?

सोमवार, 3 सितंबर 2012

अच्छी दिखे तो डूब मर

घरवाली
की आँखें
एक अच्छे
डाक्टर को
दिखलाते हैं

काला चश्मा
एक बनवा के
तुरंत दिलवाते हँ

रात को भी
जरूरी है
पहनना

एक्स्ट्रा
पैसे देकर
परचे में
लिखवाते हैं

दिखती हैं
कहीं भी
दो सुंदर
सी आँखें

बिना
सोचे समझे ही
कूद जाते हैं

तैराक होते हैं
पर तैरते नहीं
बस डूब जाते हैं

मरे हुऎ
लेकिन कहीं
नजर नहीं आते हैं

आयी हैं
शहर में
कुछ
नई आँखे

खबर पाते ही

गजब के
ऎसे कुछ
कलाकार

कूदने
की तैयारी
करते हुऎ

फिर
से हाजिर
हो जाते हैं

हम
बस यही
समझ पाते हैं

अच्छे
पिता जी
अपने बच्चों को

तैरना
क्यों नहीं
सिखाते हैं ।