उलूक टाइम्स: अजीब
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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं

कुछ रूह होती हैं
सहला देती हैं रूह को बस यूँ ही
कुछ बदल देती हैं समां
यूँ ही आस पास का
लगता है कहीं होती हैं

गोश्त और गोश्त में
कहां कोई फर्क नजर आता है
गोश्त कुछ रूह से महकी हुई
मगर जरुर होती हैं

शुक्रिया कहने की जरुरत
कहां कब रह जाती है
आसपास एक नहीं
जब चाहने वाली कई रूह होती हैं

अब रूह कहें आत्मा कहें
राम और रहीम की भी होती हैं
बहस कुछ गोश्त पर छपी
हमेशा होती हैं और जरुर होती हैं

हजार रूह के बीच
बस एक दो कुछ अजीब होती हैं
गोश्त और रूह से अलहदा
कुछ थोड़ा सा भूत होती हैं

हजारों ख्वाहिशे होती हैं
रूह भी कभी कभी रोती है
उलूक जाना लकड़ियों में है
जलना लकड़ियों में है
खबरें होती हैं
और हमेशा मगर
किसी गोश्त की होती हैं |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/ 




मंगलवार, 3 अगस्त 2021

लिखने में कौन सा रोका है कब रुका है लिखने वाला गर खुले आम किसी ने टोका है

 



पहेलियाँ
बनायी नहीं जाती हैं
पहेलियां
बन जाती हैं
जरूरी नहीं है बूझना
आग लग रही हो
तो देखना भी जरूरी नहीं है
और जली
कभी भी बुझायी भी नहीं जाती हैं

जो मैं करता हूँ
उसकी बात
कहाँ कभी करता हूँ

जो तुम करते हो
तुमको पता होता है
तुम क्या करते हो

जो हम करते हैं
उसकी बात
करनी ही क्यों है

करने कराने से हमारे
किसे क्या करना है
तुम तुम्हारा
और हम हमारा
ही तो करते हैं

मैं कहता हूँ कुछ
और मैं कोशिश भी करता हूँ
कुछ करने की

उस करने को
लिखना भी आसान होता है
लिख देता हूँ

तुम्हारा
करना कराना
तुमको पता होता है

तुम्हारे लिखे में
खोजता हूँ किया हुआ

वो नहीं मिलता है कहीं
मैं खुद ही कहीं
तुम्हारे किये कराये में
खो लेता हूँ

नियम नियम होते हैं
बात करने के लिये ही होते हैं
करने कराने के समय
सारे ही बहुत कम होते हैं

कर लिया जाता है
करना भी चाहिये होता है

नियम लिखने लिखाने के लिये
बात करने के लिये
करने के समय बस
अपनी सोच अपना ही दिमाग होता है

सब कुछ पहेलियों में ही होता है
दिखाना और बताना
कुछ और ही होता है

पढ़ाना सबसे सरल होता है
कुछ भी पढ़ा लिया होता है
कौन सोचता है कौन देखता है
लिखने लिखाने और पढ़ने पढ़ाने का
अलग अलग देवता होता है

कविता शेरो शायरी
कहानियाँ छंद बंद या और कुछ
कहने के रास्तों में
कोई कहीं भी खड़ा नहीं होता है

‘उलूक’ तेरी बातें
बुलबुले जैसी
समझने वाला
कोई नहीं कहीं होता है

खुदा है और खुदा खुदा होता है
किस ने कह दिया
खुद में खुदा
और खुदा में खुद को खोजना होता है

सभी लिखते हैं लिखना भी चाहिये
कुछ सजीव ही

अजीब सा कुछ
लिखने लिखाने समझने समझाने का
हमेशा ही एक अजीब कायदा होता है

ना तेरा तेरे पास
ना मेरा मेरे पास
एक समय आता है हमेशा ही
कहीं भी किसी का कुछ भी
नहीं रहता है।

 चित्र साभार: https://depositphotos.com



रविवार, 19 नवंबर 2017

अजीब से काम जब नजीर हो रहे होते हैं

पीछे लौटते हैं
लिखने वाले
लिखते लिखते
कई बार

पुराने लिखे
लिखाये की
कतरनों में
चिपके शब्दों
की खुरचनों के
लोग मुरीद
हो रहे होते हैं

चल देते
हैं ढूँढने
मायने हो रहे
बहुत कुछ के
जमाने में

काम हो रहे
होते हैं जब
बहुत सलीके से
मगर अजीब से
कुछ हो रहे होते हैं

नींद में नहीं
होते हैं खुली
आँखों से दिन में
सपने देखने वाले

जानते हैं
अच्छी तरह
हरम के रास्ते
बहुत बेतरतीब
हो रहे होते हैं

याद नहीं आते हैं
या होते ही नहीं हैं
कुछ शब्द कुछ
कामों के लिये

करने वाले
शातिर
सारे के सारे
फकीर हो
रहे होते हैं

छोड़ भी दे 
‘उलूक’
अकेले ढूँढना

शब्द
और मायने 
दिख रहे कुछ 
हो रहे के 

कई सारे
लोगों के 
मिलकर
किये 
जा
रहे कुछ 
अजीब से
काम 
जब नजीर 
हो रहे होते हैं । 

चित्र साभार: The Economic Times

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

किसी दिन सोचा कुछ और लिखा कुछ और ही दिया जाता है

सब कुछ तो नहीं
पर कुछ तो पता
चल जाता है
ऐसा जरूरी तो नहीं
फिर भी कभी
महसूस होता है
सामने से लिखा हुआ
लिखा हुआ ही नहीं
बहुत कुछ और
भी होता है
अजीब सी बात
नहीं लगती है
लिखने वाला
भी अजीब
हो सकता है
पढ़ने वाला भी
अजीब हो सकता है
जैसे एक ही बात
जब बार बार
पढ़ी जाती है
याद हो जाती है
एक दो दिन के लिये
ही नहीं पूरी जिंदगी
के लिये कहीं
सोच के किसी
कोने में जैसे
अपनी एक पक्की
झोपड़ी ही बना
ले जाती है
अब आप कहेंगे
झोपड़ी क्यों
मकान क्यों नहीं
महल क्यों नहीं
कोई बात नहीं
आप अपनी सोच
से ही सोच लीजिये
एक महल ही
बना लीजिये
ये झोपड़ी और महल
एक ही चीज
को देख कर
अलग अलग
कर देना
अलग अलग
पढ़ने वाला
ही कर पाता है
सामने लिखे हुऐ
को पढ़ते पढ़ते
किसी को आईना
नजर आ जाता है
उसका लिखा
इसके पढ़े से
मेल खा जाता है
ये भी अजीब बात है
सच में
इसी तरह के आईने
अलग अलग लिखे
अलग अलग पन्नों में
अलग अलग चेहरे
दिखाने लग जाते है
कहीं पर लिखे हुऐ से
किसी की चाल ढाल
दिखने लग जाती है
कहीं किसी के उठने
बैठने का सलीका
नजर आ जाता है
किसी का लिखा हुआ
विशाल हिमालय
सामने ले आता है
कोई नीला आसमान
दिखाते दिखाते
उसी में पता नहीं कैसे
विलीन हो जाता है
पता कहाँ चल पाता है
कोई पढ़ने के बाद की
बात सही सही कहाँ
बता पाता है
आज तक किसी ने
भी नहीं कहा
उसे पढ़ते पढ़ते
सामने से अंधेरे में
एक उल्लू
फड़फड़ाता हुआ
नजर आता है
किसने लिखा है
सामने से लिखा 
हुआ कुछ कभी 
पता ही नहीं 
लग पाता है 
ऐसे लिखे हुऐ 
को पढ़ कर 
शेर या भेड़िया 
सोच लेने में
किसी का
क्या जाता है ।
http://www.easyvectors.com

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

घबरा सा जाता है गंदगी लिख नहीं पाता है

कितनी अजीब  
सी बात है
अब है तो है
अजीब ही सही
सब की बाते
एक सी भी तो
नहीं हो सकती
हमेशा ही
कोई खुद
अजीब होता है
उसकी बातों में
लेकिन बहुत
सलीका होता है
कोई बहुत
सलीका दिखाता है
बोलना शुरु होता है
तो अजीब पना
साफ साफ चलता
हुआ सा दिख जाता है
किसी के साथ
कई हादसे ऐसे
होते ही रहते हैं
वो नहीं भी
सोचता अजीब
पर बहुत से लोग
उसे कुछ अजीब
सोचने पर
मजबूर कर देते हैं
थोड़ा अजीब ही
सही पर कुछ अजीब
सा सभी के
पास होता ही है
गंदगी भी होती है
सब कुछ साफ
जो क्या होता है
पर साफ सुथरे
कागज पर जब
कोई कुछ टीपने
के लिये बैठता है तो
गंदगी चेपने की
हिम्मत ही
खो देता है
हर तरफ
सब लोगों के
सफाई लिखे हुए
सजे संवरे कागज
जब नजर आते है
लिखने वाले
के दस्ताने
शरमा शरमी
निकल आते है
अपने आस पास
और अपने अंदर
की गंदगी से
बचे खुचे सफाई
के कुछ टुकड़े
ढूंढ लाते है
सब सब की
तरह लिखा
जैसा हो जाता है
रोज सफाई
लिखने वाले को
तो बहुत सफाई से
लिखना आता है
पर ‘उलूक’ के लिखे
के किनारे में कहीं
एक गंदगी का धब्बा
उस पर खुल कर
ठहाके लगाना
शुरू हो जाता है ।

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

बात ही अजीब हो तो कोई कैसे समझ पायेगा

कई बार
बहुत सारे
विषय
हो जाते हैं

लिखने
लिखने तक
सारे के
सारे ही
भूले जाते हैं

सोच ही
रहा था
आज उनमें
से किस पर
अच्छा सा कुछ
लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
कुत्ता
आज ही
कहीं से
मार खा
कर चला
आयेगा

जानता था
विज्ञान को
समझना
बहुत मुश्किल
नहीं कभी
हो पायेगा

पता नहीं था
आस पास का
मनोविज्ञान ही
हमेशा
कुछ यूं
घुमायेगा

और एक
अजीब सा
इत्तेफाक
ये हो जायेगा

डाकिया
जितनी बार
अच्छी खबर
का एक
पोस्टकार्ड
ला कर
घर पर
दे जायेगा

शुभकामनाओं
की उम्मीद
किसी से ऐसे में
कोई कैसे
कर पायेगा

जब
हर अच्छी
खबर के बाद
किसी के
घर का
कुत्ता

हमेशा ही
मार
कहीं से खा
कर चला
आयेगा ।

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

अपेक्षाऐं कैसी भी किसी से रखने में क्या जाता है

दो टांगों पर
चलता 
चला जाऊं अपनी ही 
जिंदगी भर
ऐसा 
सोचना तो
समझ में 
थोड़ा थोड़ा आता है 

सर के बल चल कर 
किसी के पास पहुंचने की
किसी की अपेक्षा 
को
कैसे पूरा 
किया जाता है 

पता कहां 
चल पाती हैं 
किसी की अपेक्षाऐं 
जब अपेक्षाऐं रखना अपेक्षाऐं बताना
कभी 
नहीं हो पाता है 

अपने से जो होना 
संभव कभी नहीं हो पाता है
वही 
सब कुछ
किसी से 
करवाने की अपेक्षा रखते हुऐ
आदमी 
दुनियां से विदा भी हो जाता है 

पर अपेक्षा भी 
कितनी कितनी 
अजीब से अजीब कर सकता है सामने वाला 
ऐसा किसी 
किताब में लिखा हुआ भी नहीं बताया जाता है 

इधर आदमी 
तैयार कर रहा होता है अपने आप को
किसी 
का गधा बनाने की 

उधर अगला 
सोच रहा होता है 
आदमी के शरीर में बाल उगा कर
उसे 
भालू बनाने की 

क्या करे कोई बेचारा 
किसी को किसी की अपेक्षाओं का सपना 
जब नहीं आता है

अपेक्षाऐं
किसी से रखने 
का मोह
कभी कोई 
त्याग ही नहीं पाता है 

अपेक्षाऐं होती 
हैं अपेक्षाऐं रह जाती हैं 

हमेशा अपेक्षाऐं 
रखने वाला 
बस खीजता है खुद अपने पर झल्लाता है 

ज्यादा से ज्यादा 
क्या कर सकता है कर पाता है
दो घूंट के बाद 
दीवारों पर अपने ही घर की कुछ 
कुछ गालियां लिख ले जाता है

सुबह होते 
होते उसे भी मगर भूल जाता है

और अपेक्षाओं के पेड़ को 
अपने ही 
फिर से सींचना
अपेक्षाओं से शुरु हो जाता है ।

बुधवार, 11 सितंबर 2013

उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना

ये नया
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया

वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया

किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा

कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा

तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा

कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा

बच
अगर अभी भी
बच सकता है

लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है

छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा

ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है

इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा

कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा

अभी जाना
जाता है
पहचाना
 जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है

जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा

बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है

खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा

तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है

 देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल

बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है

अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।

रविवार, 22 जुलाई 2012

लोटा प्रतियोगिता

नीचे लिखे
लम्बे को
सब से छोटा
बनायेगा जो
प्रतियोगिता
में भाग लेगा
सब से बड़ा
लोटा भी
इनाम में ले
जायेगा वो ।


अजीब सा
महसूस होता है
अजीब अजीब
तरह के लोग
अजीब तरह से
पेश आते हैं
अजीब अजीब
सी बातें
पता नहीं
कैसे कैसे
अजीब अजीब
तरीकों से
सामने आ आ
कर गुनगुनाते हैं
अब एक
अजीब सी
शख्सियत
सामने आये
अजीब तरह
की हरकतें करे
और आशा करे
सामने वाला
मुस्कुराये
अजीब होने पर भी
किसी को कुछ भी
अजीब सा
ना लग पाये
ऎसे बहुत से
अजीब लोग
अजीब तरह
से रोज ही
तो टकराते हैं
अजीब लोगों को
कुछ हो या ना हों
हम भी तो सारा
अजीब पी जाते है
वैसे अजीब हो जाना
या अजीब सा कुछ
कर जाना ही
तो ज्यादा से
ज्यादा शोहरत
दिला जाता है
देख लीजिये
दुनिया की
सबसे अजीब
चीजों को ही
सातवें आश्चर्य की
सूची में शामिल
किया जाता है
इसलिये समय रहते
कोशिश करने में
क्या जाता है
अगर कोई अजीब
ना होते हुऎ भी
अजीब हो
जाना चाहता है
इसलिये खोजिये
अपने में भी
कुछ भी
अजीब अगर
आपको नजर
आता है
क्या पता उस
अजीब का होना
आपको भी
दुनिया का
सबसे अजीब
चीज बना
जाता है।

बुधवार, 16 मई 2012

सफेद बाल

मेरे सफेद बाल
हो गये हैं अब
खुद मेरे लिये
आज एक बवाल

हर कोई इनसे
दिखता है परेशान

जैसे
उड़ रहे हों
मेरे सर के
चारों ओर
कुछ अजीब
से विमान

एक मित्र जो रोज
बाल काले करता है

उसकी बीबी
का डायलाग
हमेशा ऎसा
ही रहता है

अरे आपके
कुछ बाल
अभी काले
नजर आते हैं
आप
अपने बाल
डाई क्यों
नहीं कराते हैं

हर दूसरा भी राय
देने की कोशिश
करता है एक नेक
भाईसाहब आपके
बाल इतनी जल्दी
कैसे हो गये सफेद

एक सटीक दवाई
हम आपको बताते हैं

एक ही रात में
उसको खा के सारे
बाल काले हो जाते हैं

कल जब मैं सड़क पर
बेखबर जा रहा था
देखा एक आदमी
सड़क किनारे रेहड़ी
अपनी सजा रहा था

कुछ जड़ी बूटियां
बेचने वाला जैसा
नजर आ रहा था

मुझे देखते ही दौड़
कर मेरी ओर आया
हाथ पकड़ मेरा
मुझे अपनी रेहड़ी
की तरफ उसने बुलाया

अंकल अंकल ये वाली
बूटी आप मुझ से ले जाओ
एक हफ्ते में अपने
सारे बाल काले करवाओ

सौ रुपये में इतना
आप और कहाँ पाओ
असर ना करे तो
दो सौ मुझसे ले जाओ

उसको इतना उतावला देख
कर मैं धीरे से मुस्कुराया
उसकी तरफ जाकर
उसके कान में फुसफुसाया

पचास साल लगे हैं
इन बालों को
सफेद करवाने में
तुझे क्या मजा
आ रहा है
इनको एक हफ्ते में
काले करवाने में
मेरी की गई मेहनत
पर पानी फिरवाने में

कोई दिल काला
करने की दवा है
तो अभी दे जा
सौ की जगह
पाँच सौ तू ले जा

काले दिल वालों का
जमाना आ रहा है
उन सब को जेल से
बाहर निकाला जा रहा है

उनके खुद किये गये
घोटालों पर ब्याज भी
सरकार की तरफ से
दिया जा रहा है।