उलूक टाइम्स: अजूबा
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सोमवार, 29 सितंबर 2014

सोच तो सोच है सोचने में क्या जाता है और क्या होता है अगर कोई सोच कर बौखलाता है


अपने कुछ भी सोचे हुऐ पर
कुछ नहीं कह रहा हूँ

मेरे सोचे गये कुछ पर 

कुछ उसके अपने नजरिये से
सोच दिये गये पर 
कुछ सोच कर कहने की कोशिश कर ले रहा हूँ

बड़ी अजीब सी पहेली है

एक 
एक का अपना खुद का सोचना है

और दूसरा 
एक के कुछ सोचे हुऐ पर 
किसी दूसरे का कुछ भी सोच लेना है

अब कुछ सोच कर ही कुछ लिखा जाता है

बिना सोचे कुछ लिख लेने वाला होता भी है 
ऐसा सोचा भी कहाँ जाता है

कहने को तो 
अपनी सोच के हिसाब से
किसी पर भी कोई भी कुछ भी कह जाता है

दूसरा
उस हिसाब पर सोचने लायक भी हो
ये भी जरूरी नहीं हो जाता है

इसलिये
सोचने पर किसी के 
रोक कहीं लगाई भी नहीं जाती है 
सोच सोच होती है समझाई भी नहीं जाती है

अपनी अपनी सोच में 
सब अपने हिसाब से सोच ही ले जाते हैं

दूसरे की सोच से
सोचने वाले भी होते हैंं थोड़े कुछ
अजूबे होते भी हैं
और इसी दुनियाँ में पाये भी जाते हैं

‘उलूक’
तेरे सोच दिये गये कुछ पर
अगर कोई अपने हिसाब से कुछ सोच लेना चाहता है

तो वो जाने उसकी सोच जाने 
उसके सोचने पर
तू क्यों अपनी सोच की टाँग
घुसाना चाहता है

बिना सोचे ही कह ले जो कुछ कहना चाहता है

होना कुछ भी नहीं है कहीं भी
किसी की सोच में कुछ आता है या नहीं आता है ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com