उलूक टाइम्स: अवकाश
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शनिवार, 30 अप्रैल 2022

अल्विदा ‘ऐलैक्सा’

अल्विदा ‘ऐलैक्सा’ एक मई से अवकाश में जा रही हो आभार हौसला अफजाई के लिये एक लम्बे अर्से से आभासी दुनियाँ के आभासी पन्नों का साथ निभा रही हो
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गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बड़े काम की खबर ले कर आया है पैंसठ से ऊपर के बुड्ढे मास्टरों के लिये आज अखबार

 

गजब की खबर है बुड्ढे के लिये 
तेल पिला लाठी को
दौड़ लगाने को हो जा फिर से तैयार

सत्तर पर ही सही 
सूट भी नयी सिला कर रख ले
दो चार एक इस बार 

कोई बात नहीं
इसमें तेरे लिये
अगर एक जवान को
चालीस तक मिलती है 
या नहीं मिलती है नौकरी
आज के जमाने में
कुछ हजूर हजूर करके
कुछ खजूर पेश करके सरकार 

क्या होता है याद रखना पड़ेगा 
कि पचास पर कर दिया जायेगा
कार्यमुक्त देकर अवकाश
लगेगा अगर अपने आदमी की तरह
पेश नहीं आ पा रहा है कोई 
मान लिया जायेगा हो चुका है बेकार 

चिन्ता की बात केवल आम के लिये है
इसलिये खास होने के लिये 
बनाना शुरु किया जा सकता है
बेशर्मी की मिट्टी मिले 
मक्खन लगे सीमेंट के साथ
हवा में ही हवा हवा टाईप का कोई एक आधार 

कच्ची जमीन ढूँढ कर कहीं भी 
सस्ते दाम वाली दिखने में कामवाली 
ढक ढका कर हरी पीली चमकीली सोच से ऐसी 
जो धोखा दे सकें समय पर उड़ा कर हवा में 
चोरी किये कहीं से दो चार 
चलते फिरते जमाने के दौड़ लगाते सुविचार 

जिन्दगी भर पढ़ाई लिखाई को छोड़ 
बाकी कुछ भी कर लेने वाले मास्टरों का
होने वाला है सत्कार 

करेगी इसी उम्र को पार कर बन चुकी 
जवान पीढ़ी के द्वारा छाँट कर खुद के लिये 
बूढ़ी हो चुकी कोई एक सरकार 

‘उलूक’ 
इन्तजार कर आँखों के कुछ और 
कमजोर हो लेने का साल पाँच एक तक और 
तब तक डाल अच्छी बची खुची सोच का
तेल डाल कर अचार 

फिर देखना
लाठी लेकर आते हुऐ जवान कुलपति
सत्तर साल के 
लगाते नये जमाने की
 उच्च शिक्षा का बेड़ा पार । 

चित्र साभार: https://www.thegazelle.org/

बुधवार, 27 जून 2012

विदाई

आज मैडम जी को
विदा कर के आया
उनके अवकाश ग्रहंण
के उपलक्ष्य में था
विभाग ने एक
समारोह करवाया
विदाई समारोह में
ऎसा महसूस होने
लग जाता है
मजबूत से मजबूत
आदमी भी थोड़ा
भावुक अपने को
जरूर दिखाता है
कौऎ मुर्गी कबूतर
भी होते हैं कहीं
आस पास में मौजूद
माहौल उन सबको भी
बगुला भगत बनाता है
एक के बाद एक
मँच पर बोलने
को बुलाया जाता है
कभी कुछ नहीं
कहने वाला भी
लम्बा एक भाषण
फोड़ ले जाता है
कोई शेर लाता है
शायर हो जाता है
कोई गाना सुनाता है
किशोर कुमार की
टाँग तोड़ने में जरा
भी नहीं घबराता है
कविता ले के आने वाला
अपने को सुमित्रा नन्दन पँत
हूँ कहने में नहीं शरमाता है
सेवा काल में सबसे ज्यादा
गाली खाने वाला जो होता है
सबसे बड़ी माला
वो ही तो पहनाता है
सारे गिले शिकवे भूल कर
नम आँखों से मुस्कुराता है
आँसू बनाने के लिये
कोई भी ग्लीसरीन
तक नहीं लगाता है
शब्दों का चयन देखने
लग जाये अगर कोई
अपने को अर्थ ढूढने में
असमर्थ पाता है
भावार्थ ढूँढने के लिये
घर वापस लौट कर
शब्दकोष ढूँढने
लग जाता है
इससे सिद्ध ये जरूर
लेकिन हो जाता है
कि अवकाश ग्रहण
करना माहौल को
ऊर्जावान जरूर ही
बना ले जाता है
फिर ये समझ में
नहीँ आ पाता है
कि विभागों में
शाँति व्यवस्था
कायम करने के लिये
अवकाश लेने देने को
हथियार क्यों नहीं
सरकार द्वारा एक
बना लिया जाता है ।

रविवार, 11 दिसंबर 2011

बूढ़े के भाग से छींका टूटा

कल की कहानी 
आज
चौबीस घंटे 
पुरानी हो गयी

पड़ोसन
जो 
कल 
सिर्फ मम्मी थी
आज
नानी हो गयी

अखबार में थे 
कई समाचार
कुछ गंभीर कुछ चटपटे
और
कुछ रसीले मसालेदार 

बावरे मियां
बिना चश्मे के हो रहे थे रंगीले

जो
साठ में
चले जाने 
वाले थे
और
इसीलिये हो 
रहे थे ढीले

कल अचानक
हुवा उन सब में 
उर्जा का संचार

हो ही गयी पैंसठ 
सुन कर
बिस्तरे से उड़
 पड़े सारे बीमार 

नींद में 
जैसे ही पत्नी ने सुनाया
फ्रंट पेज 
का समाचार

आज ऐसे सारे  सैनिक 
लौट के आने लगे लगातार 

छुट्टियां
करवा दी 
सब ने सारी कैंसिल
और
सारे के सारे
बिना घंटी सुने 
कक्षाओं मे जाने लगे
वादन पूरा होने के बाद भी
अब तक 
बाहर निकलने को
नहीं हैं तैयार।

चित्र साभार: 
https://www.gograph.com