उलूक टाइम्स: आज
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सोमवार, 20 अगस्त 2018

खुदा भगवान के साथ बैठा गले मिल कर कहीं किसी गली के कोने में रो रहा होता दिन आज का खुदा ना खास्ता अगर गुजरा कल हो रहा होता

एक आदमी
भूगोल हो रहा होता
आदमी ही एक
इतिहास हो रहा होता

पढ़ने की
जरूरत
नहीं हो
रही होती


सब को
रटा रटाया
अभिमन्यु की तरह

एक आदमी
पेट से ही
पूरा याद हो रहा होता


एक आदमी
हनुमान हो रहा होता
एक आदमी
राम हो रहा होता

बाकि
होना ना होना सारा
आम और
बेनाम हो रहा होता


चश्मा
कहीं उधड़ी हुई
धोती में सिमट रहा होता


ग़ाँधी
अपनी खुद की
लाठी से
पिट रहा होता


कहीं हिन्दू
तो कहीं उसे
मुसलमान
पकड़ रहा होता
कबीर
अपने दोहों को
धो धो कर
कपड़े से
रगड़ रहा होता


ना तुलसी
राम का हो रहा होता
ना रामचरित मानस
पर काम हो रहा होता

मन्दिर में
एक आदमी के
बैठने के लिये
कुर्सियों का
इन्तजाम
हो रहा होता


लिखा हुआ
जितना भी
जहाँ भी
हो रहा होता
हर पन्ने का एक
आदमी हो रहा होता

आदमी आदमी
लिख रहा होता
आदमी ही
एक किताब
हो रहा होता


इस से ज्यादा
गुलशन कब
आबाद
हो रहा होता


 शाख
सो रही होती
‘उलूक’
खो रहा होता

गुलिस्ताँ
खुद में गंगा
खुद में संगम
और खुद ही
दौलताबाद
हो रहा होता।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

गुरुवार, 21 जून 2018

कतारें खूबसूरत सारी की सारी बहुत सारी बस आज ऐसे ही बनानी हैं

तपती रेत है
बहुत तेज धूप है
हैरान नहीं होना है
रोज की परेशानी है

यहाँ की रेत की
बात यहीं तक रखनी है
किसी को नहीं बतानी है

बस हरी दूब लानी है

बहुत जगह उगी है
बहुत सारी उगी है
हरी हरी दूब है
पानी नहीं होने की
बात ही बेमानी है

बहुत तेज जोरों से
प्यास ही तो लगी है

धैर्य रख
ज्ञानी हैं विज्ञानी हैं
बस यहीं कहीं हैं
सच बात है
नहीं कोई कहानी है

करना कुछ नहीं है
सपने उगाने तो हैं
पर बोना कुछ नहीं हैं
बीज ही नहीं हैं

देखनी रेत है
दूब बस सोचनी है
कौन सा उगानी है

पानी नहीं है
पीना कुछ नहीं है

प्यास
बस एक सोच है
बातें की बहती हुई
नदी एक दिखानी है

एक साफ
चादर ही तो लानी है
गरम रेत
के ऊपर से बिछानी है

दूब हरी हरी
दूर से कहीं से भी
लाकर फैलानी है
बोनी नहीं है
उगानी नहीं है
बस एक दिन
की बात ही है
कुछ नहीं होना है
सूखनी है सुखानी है

गाय भैंस बकरी हैं
कम ज्यादा
कुछ भी मिले
बिकनी बिकानी है

कुछ खड़े होना है
कुछ देर सोना है
इसको उसको सबको
एक साथ एक बार
एक ही बात बतानी है

चोंच नीचे लानी है
पूँछ ऊपर उठानी है
‘उलूक’
कुछ भी कह देने की
तेरी आदत पुरानी है

भीड़ नहीं कहते हैं
बहुत सारे लोगों को

दूर तलक दूर दूर
कतारें खूबसूरत
सारी की सारी
बहुत सारी
बस आज
और आज
ऐसे ही
बनानी हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

गुरुवार, 28 मई 2015

लिख लेना कुछ भी पता है बिना लिखे तुझ से भी नहीं रहा जायेगा

कल भी लिखा था
आज भी लिखना है
कल भी शायद कुछ
लिखा ही जायेगा
लिखना इसलिये
नहीं कि लिखना
जरूरी होता है
लिखना इसलिये
नहीं कि किसी को
पढ़ना भी होता है
लिखना
इसलिये नहीं
कि किसी को
पढ़ाना होता है
किसी को
समझाना होता है
किसी को
दिखाना होता है
किसी को
बताना होता है
ऐसा भी नहीं कि
आज नहीं
लिखा जायेगा
तो कोई
मातम मनायेगा
या कल फिर
लिखने नहीं
दिया जायेगा
वैसे भी कौन
लिखने वाला
बताता है कि
किसलिये
लिख रहा है
कौन समझाता
है कि क्या
लिख रहा है
ऊपर वाला
जानता है
क्या लिखा जायेगा
लिखा जायेगा या
नहीं लिखा जायेगा
उसका करना कराना
नियत होता है
उसे ये भी
पता होता है कि
लिखना लिखाना
नीचे वाले के
करने कराने
से होता है
करने कराने
पर होता है
नीचे वाले की
नीयत में
क्या होता है
बस उस का ही
ऊपर वाले को
जरा भी पता
नहीं होता है
इसलिये आज
का लिखा
लिख दिया
कल का लिखा
कल लिखा जायेगा
जब करने कराने
वाला कुछ
अपना करेगा
या कुछ ‘उलूक’ पर
चढ़ कर उससे
कुछ करायेगा ।

चित्र साभार: www.illustrationsof.com

शनिवार, 19 जुलाई 2014

नया होते रहने के चक्कर में पुराना भी नहीं रह पाता है

पुरानी होती हुई
चीजों से भी बहुत
भ्रांतियां पैदा होती हैं
एक समाचार पत्र
एक दिन के बाद
ही अपना मूल्य
खो देता है
रुपिये की जगह
कुछ पैसों का
हो लेता है
रद्दी कहलाता है
कबाड़ी मोल भाव
करके उठा ले जाता है
हाँ थैली बनाने के
काम जरूर आता है
कुछ देर के लिये
दुबारा जिंदा होकर
खड़ा हो जाता है
जिंदगी की बाजार में
जगह बनाने में
एक बार और
कामयाब हो जाता है
ऐसी एक नहीं
कई कई काम की चीजें
बेकाम की चीजों में
गिनी जाती हैं
कुछ कुछ दिन
कुछ कुछ ज्यादा दिन
की मेहमान नवाजी
पा जाती हैं और
कुछ चीजों को प्राचीन
बता दिया जाता है
कौड़ी के भाव से
खरीदी गई चीजों को
 हीरों के भाव से
ऊपर कहीं पहुँचा
दिया जाता है
और ये सब एक
पुराने होते चले
जा रहे आदमी के
द्वारा ही किया जाता है
उसे खुद पता
नहीं चलता है
कि वो कब
कितना पुराना
हो जाता है
हर चीज के भाव
तय करने वाले का
भाव अपने में ही
इतना नीचे
चला जाता है
उसे पता ही
नहीं चलता है
उसके खुद के लिये
कोई बाजार कहीं भी
नहीं रह जाता है
खरीदने की बात
अलग है उसे कोई
बेचना भी नहीं चाहता है
कल से आज होते हुऐ
कब कल आ जाता है
जिंदगी बेचने की
सोचने में लगे लगे
उसे पता भी
नहीं चल पाता है
कब नया जमाना
कब नया बाजार
कब नया मॉल
आ जाता है
दुनियाँ बेचने के
सपने बनाते बनाते
नये जमाने के
नये बेचने वालों
की भीड़ में कहीं
खो जाता है
बोली लग रही होती है
हर किसी चीज की
और उसे कबाड़ में
भी नहीं गिना जाता है
बहुत बेरहम होता है समय
उसकी मुस्कुराहट को
कौन समझ पाता है ।

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

आइये आज कुछ अच्छा किया जाये !


शिक्षक दिवस पर
सोच रहा हूँ आज
थोड़ा सा संजीदा
हो लिया जाये
किसी तरह  से
की जा रही
बकवास से
कुछ देर के
लिये ही सही
किनारा कर
लिया जाये
पहुँचा हूँ आज
जिस मुकाम पर
उसपर कुछ मनन 
कर लिया जाये
ईश्वर तुल्य गुरु
मिले हों जिन्हें
ऎसे  कुछ भाग्यशाली
शिष्यों  पर गर्व 
कर लिया जाये
दिशा दी थी कभी
जिन्होंने समझ
बूझ कर कुछ हमें
अपने उन सभी
गुरूओं को एक दिन
के लिये ही सही
याद तो कर लिया जाये
भटकना उबड़ खाबड़
रास्तों में चलते चलते
लाजमी होना कुछ देर के
लिये मान भी लिया जाये
कोशिश एक बार कर के
अपने दिशा यंत्रों को
ठीक कर लिया जाये
क्या पता किसी की
समझ में सही समय पर
ये बात आ ही जाये
रास्ते पर चलते चलते
चलने वाले से सही
रास्ते का पता ही
पूछ लिया जाये
किताबों को खा रहे
कीडो़ को अल्विदा
कह दिया जाये
धूल कपडे़ से झाड़ कर
पुराने जिल्द को
बदल ही दिया जाये
क्या पता कोई
भूला भटका कभी
कुछ पूछने के
लिये ही चला आये
निराशा हो सकती है
किसी को भी
कभी भी कहीं भी
उसी में से खींच कर
आशा का संचार
कर लिया जाये
सबकुछ ऎसे ही
नहीं चलेगा
हमेशा के लिये
फूटेंगी कोपलें
नये फूलों के लिये
पुराने सूखे हुऎ
फूलों की पत्तियों
का आसवन ही
कर लिया जाये
आज शिक्षक दिवस पर
क्यों ना पुनर्जीवित
होने के सपने देखने
का एक प्रण ही
कर लिया जाये ।

सोमवार, 5 मार्च 2012

मैं आज

मुड़ते ही अचानक
फिर मुझे आज
मैं मिल गया
अवाक रह गया
अपने को देख
कर अचानक
बहुत कुछ बदल गया था
दिख रहा था साफ साफ
फ्रेम वही था घिसा पिटा
पर फोटो उसमें एक
डुप्लीकेट बनवाई
लग रही थी
अपनी हरामखोरी
देख देख कर
मेरी नजरें झुक झुक
सी जा रही थी
पर शरम मुझे
फिर भी थोड़ी सी भी
नहीं आ रही थी
मै वाकई में ऎसा
कभी नहीं रहा
ना ही कोई मेरे को
ऎसा कहने की
हिम्मत कर सकता है
पर जो मै होता जा रहा हूँ
वो मुझे तो पता ही होता होगा
तुमको क्या करना
मत सोचो
तुम अपनी फिक्र मत करो
क्योंकि तुम तो तुम
हो ही ना बहुत साफ साफ
और सूखे हुवे
मैं कुछ कर ही लूंगा
अपने लिये आज
नहीं तो कल
सीख लूंगा बारहखड़ी
खुद को खड़ा करने
के लिये कीचड़ में
कमल की फोटोस्टेट
बड़ी आसानी से
हो सकती है
लगा लूंगा
तुमको ताली बजाना
तो बहुत आता है
इस जमाने के
लूलों लंगड़ो़ के लिय
बिना बात के
फिर चिंन्ता किसको है
आओ बनाये एक पैग
तगड़ा वाला
खुदा के नाम पर
चीयर्स जय श्री राम जी ।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अभिनेता आज के समाज में

अंदर की
कालिख को
सफाई से
छिपाता हूँ

चेहरा
मैं हमेशा 
अपना
चमकाता हूँ

शातिर
हूँ मैं
कोई नहीं
जानता 
है

हर कोई मुझे
देवता जैसे
के नाम से
पहचानता 
है

मेरा
आज तक
किसी से कोई
रगड़ा
नहीं हुवा 
है

और तो और
बीबी से भी
कभी झगड़ा
नहीं हुवा 
है

धीरे धीरे
मैने अपनी
पैठ बनाई 
है

बड़ी मेहनत से
दुकानदारी 
चमकाई 
है

कितनो को
इस चक्कर में
मैने लुटवा दिया 
है

वो आज भी
करते हैं प्रणाम
सिर तक
अपने पांव में
झुकवा दिया 
है

पर अंदाज
किसी को 
कभी नहीं
आता  है

खेल खेल
में ही ये सब
बड़े आराम
से किया
जाता है

और  मैं
बडे़ आराम से हूँ
चैन की बंसी
बजाता हूं

जो भी
साहब
आता है
पहले उसको
फंसाता हूँ

सिस्टम को
खोखला
करने में
हो गई है
मुझे महारत

तैयारी में हूँ
अब करवा
सकता हूँ
कभी भी
महाभारत

तुम से ही
ये सारे
काम करवाउंगा

अखबार में
लेकिन फोटो
अपनी ही
छपवाउंगा

इस पहेली को
अब आपको ही
सुलझाना है

आसपास आज
आप के
कितने मैं
आबाद हो गये हैं
पता लगाना है

ज्यादा कुछ
नहीं करना है
उसके बाद
हल्का सा
मुस्कुराना है ।