उलूक टाइम्स: आत्मावलोकन
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सोमवार, 20 जनवरी 2014

अच्छा होता है कभी कभी बिजली का लम्बा गुल हो जाना

अपनी इच्छा से
नहीं कर लेना चाहता है
बिजली गुल
कोई कभी बहुत देर के लिये

पर बिजली आदमी तो नहीं होती है
फिर भी हो जाती है बंद भी कभी कभी

दूर बहुत दूर तक अंधेरा ही अंधेरा
जैसे थम सी जाती हो जिंदगी
फिर जलते हैं दिये और मोमबत्ती
जिनकी रोशनी में कर्कश शोर नहीं होता है

जो देता है बस एक सुकून सा

बारिश के बाद का आसमान धुला धुला सा
रात को भी काला नहीं
आसमानी हो उठता है
बहुत साफ नजर आते हैं तारे

जैसे पहचान के कुछ लोग
मिल उठे हों
एक बहुत लम्बी सी जुदाई के बाद

टिमटिमाते हुऐ जैसे पूछते भी हों
हाल दिल का

इच्छा भी उठती है कहीं से बहुत तीव्र
देख लेने की और सोच लेने की

कुछ देर के लिये ही सही
तारों की बस्ती में
ढूँढ रहा हो कोई अपना ही अक्स

कुछ ही क्षण में
हो जाता है जैसे आत्मावलोकन

साफ पानी में जैसे दिखा रहा हो
सब शीशे की तरह
तेज भागती हुई  जिंदगी का सच

कुछ देर का विराम
बता देता है असलियत
खोल देता है कुछ बंद खिड़कियाँ

जिनकी तरफ देखने की भी फुरसत
नहीं होती है दौड़ते हुऐ दिनों में

और बहना महसूस होता है
कुछ ठंडी सोच का

कुछ रुक रुक कर ही सही
बहुत आगे बढ़ जाने के बाद

ऐसे ही समय महसूस होता है
अच्छा होता है कभी कभी यूँ ही लौट लेना
बहुत और बहुत पीछे की ओर भी
जहाँ से चलना शुरु हुऐ थे हम कभी

पर ऐसा होता नहीं है
बिजली रोज आती है जाती बहुत कम है
बहुत कम कभी कभी बहुत दिनो के लिये ।