उलूक टाइम्स: इशारा
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बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

समझना चाहो तो एक इशारा एक पता होता है

लिख देना किसी के 
पढ़ने के लिये ही
नहीं होता है 
पढ़ने वालों को 
अच्छी तरह से 
ये पता होता है 
बहुत भीड़ होती है 
बहुत सी जगहों पर 
सब होता है वहाँ 
अपना ही बस 
पता नहीं होता है 
बगल में होता है 
जब तक कि 
छूना होता है 
छू लेता है
महसूस भी होता है 
हटता है जाकर 
बस दो गज
की दूरी कहीं
मीलों दूर का 
पता उसी जगह पर 
कहीं लिखा होता है 
गहराई लिये बहुत
कुछ दिखाई देता है 
खुद के अंदर ही 
कहीं डूबने का 
इंतजाम होता है 
पता देता है जरूर 
हमेशा एक नया 
हर बार एक नये 
दुश्मन के ठिकाने 
का मगर  देता है 
मयखाने में शराब हो 
इतना जरूरी नहीं 
साकी का गिलास 
खाली भी होता
तो बहुत होता है 
सब कुछ बिकता है 
हर चीज बाजारी है 
कोई पैसे से 
कोई बस बिकने 
के लिये भी कहीं भी 
किसी भी तरह 
से बिकता है 
खरीददार हर कोई है 
इस बाजार में 
कोई दे कर 
खरीद लेता है 
कोई ले कर 
खरीद देता है  
बहुत देख ली
हो दुनियाँ जिसने
उसके लिये कफन
से अजीज कोई
और नहीं होता है 
बहुत सा गोबर 
होता है दिमाग 
में भी ‘उलूक 
भैंस पालना 
इतना जरूरी 
नहीं होता है।

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

दीमक है इतनी जल्दी हरियाली देख कर कैसे हार जायेगा

सड़े हुऐ पेड़
की फुनगी पर
कुछ हरे
पत्ते दिखाई
दे रहे हैं

का समाचार लेकर
अखबारी दीमक
दीमकों की
रानी के पास
डरते डरते
जा पहुँचा

उसके मुँह पर
उड़ रही हवा
को देखकर
रानी ने अपने
मंत्री दीमक
को इशारा
करके पूछा

क्या बात है
क्या हो गया
इस को देख कर
तो लग रहा है
जैसे कहीं कोई
बहुत बड़ा तूफान
है आ बैठा

मंत्री मुस्कुराया
थोड़ा उठा
रानी जी के
नजदीक पहुँच कर
कान में फुसफुसाया

महारानी जी
कुछ भी कहीं
नहीं हुआ है
इसको थोड़ी
देर के लिये
कुछ मतिभ्रम सा
कुछ हो गया है

दो चार हरे पत्ते
पेड़ पर देख कर
क्या आ गया है

सारा जंगल हरा
हो जाने वाला है
सोच कर ही
फालतू में
चकरा गया है

आप क्यों
बेकार में
परेशान होने
जा रही हैं

कुछ मजबूत
दीमकों को
आज से
नई तरह से
काम शुरु करने
का न्योता
भेजा गया है

हमारे दीमक
इतना चाट चुके
हैं पेड़ की लकड़ी को

वैसे भी चाटने
के लिये कहीं
कुछ बचा क्या है

पुराने दीमकों को
छुट्टी पर इसलिये
कल से ही
भेज दिया गया है

नये दीमक
नई उर्जा से
चाटेंगे पेड़ के
कण कण को

यही संदेश
हर कोने कोने पर
पहुँचा दिया गया है

पीले दीमक
पीछे को
चले जा रहे हैं

लाल दीमक
झंडा अपना
अब लहरा रहे हैं

इस
बेवकूफ को
क्या पता
कहाँ कहाँ
इस युग में
क्या से क्या
हो गया है

पेड़ को भी
पता नहीं
आज ही
आज में
ना जाने
क्या हो गया है

बुझते हुऐ दिये
की जैसे एक
लौ हो गया है

चार हरे पत्तों से
क्या कुछ हो जायेगा

बेवकूफ
जानता ही नहीं

नया दीमक
लकड़ी के
साथ साथ
हरे पत्ते
सलाद
समझ कर
स्वाद से
खा जायेगा ।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

भीड़

भीड़ को
पढा़ते पढ़ाते
अब वो
भीड़ बनाना
अच्छा सीख
गया है

भीड़ पहले
कभी भी
उसका पेशा
नहीं रही

भीड़ से
निपटने में
अचानक
उसे लगा
भीड़ बहुत
काम की
चीज हो
सकती है

उस दिन
से उसने
पेशा ही
बदल डाला

अब वो
केवल एक
इशारा भर
करता है

कुछ
अजीब सा
वो भी
आसमान
की तरफ
देख कर

भीड़
चली आती है
भीड़
आपस में
बात करती है
खुले हाथ
लहराती है

लौटते हुवे
भीड़ की
मुट्ठियाँ
बंद होती हैं

एक दूसरे
से कुछ
छिपाते हुवे

एक भीड़
लौटी
वो फिर
इशारा
शुरू
कर देता है

मैने
बहुत दिन
असफल
कोशिश की
उस भीड़
का हिस्सा
बन जाने
के लिए

अब मैंने
भी वही
इशारा
करना शुरु
कर दिया है

पर कोई
नहीं आता
मेरे आसपास

भीड़
रोज
देखती है
मुझे उसी
इशारे के
साथ
जो उसका
भी है
और मैं
भीड़
देखता हूँ
जाते हुवे
उसकी तरफ
उसी इशारे
की तरफ
जिस इशारे
को सीखने
के लिये
मैने
भी अपना
पेशा छोड़
दिया है ।