उलूक टाइम्स: कत्लेआम
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बुधवार, 21 जुलाई 2021

रोके गये अन्दर कहीं खुद के छिपाये हुऐ सारे बे‌ईमान लिख दें

 



रुकें थोड़ी देर
भागती जिंदगी के पर थाम कर
थोड़ी सी सुबह थोड़ी शाम लिख दें

कोशिश करें
कुछ दोपहरी कुछ अंधेरे में सिमटते
रात के पहर के पैगाम लिख दें

फिर से शुरु करें
सीखना बाराहखड़ी
ठहर कर थोड़ा कुछ किताबों के नाम लिख दें

रोकें नहीं
सैलाब आने दें
इससे पहले मिटें धूल में लिखे सारे सुर्ख नाम
चलो खुद को खुलेआम बदनाम लिख दें

छान कर
लिख लिया कुछ कुछ कभी कुछ कभी
कभी बेधड़क होकर अपने सारे किये कत्लेआम लिख दें

किसलिये झाँके
सुन्दर लिखे के पीछे से एक वीभत्स चेहरा
आईने लिखना छोड़ दें
पर्दे गिरा सारा सभीकुछ सरेआम लिख दें 

उनको
लिखने दें ‘उलूक’
सलीके से अपने सलीके
 खुल कर बदतमीजियां अपनी
बैखोफ होकर अपने हमाम लिख दें ।

चित्र साभार: https://www.clipartmax.com/

सोमवार, 10 जून 2013

कुछ नहीं हुआ

कुछ नहीं हुआ

 बस एक कूँची
चलाना सिखाने
वाले ने पेपर
कटर घुमा दिया

अपनी ही एक
शिष्या को
सुना है
हस्पताल में
पहुँचा दिया

सुबह से खबर
पर खबर
चल रही थी

इधर से उधर
भी आ और
जा रही थी

इसके मुँह में
बीज थी उसके
मुँह में फूल सा
एक बनता हुआ
दिखा रही थी

अखबार वाले
टी वी वाले
पुलिस वाले
हाँ असली
भूल गया
मेरे घर के
अंदर के ,
डंडे वाले

सभी टाईम
से आ गये थे
अपना अपना
धरम सब ही
निभा गये थे


टी वी में
कच्ची खबर
चलना शुरू
हो चुकी थी


असली खबर
मसाले के साथ
प्रेस में पकना
शुरु हो चुकी थी


कल सुबह
सारे अखबारों
के फ्रंट पेज में
आ भी जायेगी


क्या बतायेगी
ये तो कल को
ही पता
चल पायेगी


बहुत से मेडल
मिल रहे हैं
मेरी संस्था को
उसमें एक को
और
जोड़ ले जायेगी


मैंने जो क्या
किया है कुछ
मुझको क्यों
शरम आ जायेगी


सारी दुनियाँ
में जब हो
रहे हैं हजारों
कत्लेआम
रोज का रोज


एक बस
मेरे घर में
होने को हुआ
तो क्या हुआ


बस इतना सा
ही तो हुआ
और किसी
को कुछ भी
तो नहीं हुआ


चिंता किसी
को बिल्कुल
भी नहीं हुई


ये सबसे
अच्छा हुआ
जवाबदेही
किसी की
नहीं बनती है

थोड़ी सी भी
जब कुछ भी
कहीं भी
नहीं हुआ ।