उलूक टाइम्स: कपड़ा
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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

क्या धोया ना कपड़ा रहा ना साबुन रहा सब कुछ पानी पानी हो गया

अब क्या कहूँ
कहने के लिये
कुछ भी नहीं
कहीं रह गया
कुछ मैला तो
नहीं हो गया
सोचने सोचने
तक बिना साबुन
बिना पानी के
हवा हवा में
ही धो दिया
धोना बुरी
बात नहीं पर
इतना भी
क्या धोना
पता चला
कपड़ा ही
धोते धोते
कहीं खो गया
साबुन गल
गया पूरा
बुलबुलों भरा
झाग ही झाग
बस दोनों ही
हाथों में रह गया
हे राम
तू निकला
गाँधी के मुँह से
उनकी अंतिम
यात्रा के पहले
उसके बाद
आज निकल
रहा है एक नहीं
कई कई मुँहों से
एक साथ
हे राम
ये क्या हो गया
भक्तों की पूजा
अर्चना करना
क्या सब
मिट्टी मिट्टी
हो गया
आदमी मेरे
गाँव का लगा
आज तेरे से
ज्यादा ही
पावरफुल
हो गया
अब क्या कहूँ
किससे कहूँ
रोना आ रहा है
धोने के लिये
बाकी कहीं भी
कुछ नहीं रह गया ।

चित्र साभार: www.4to40.com

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

जानवर पढ़ के इस लिखे लिखाये को कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा


नंगों के लिये कपड़े लिख देने से
ढका कुछ भी नहीं जायेगा
कुछ नहीं किया जा सकता है
कुछ बेशर्मियों के लिये
जिन्हें ढकने के लिये
पता होता है कपड़ा ही छोटा पड़ जायेगा

आँखों को ढकना सीखना सिखाना
चल रहा होता है सब जगह जहाँ
मालूम होता है अच्छी तरह
एक छोटे से कपड़े के टुकड़े से भी काम चल जायेगा

दिखता है सबको सब कुछ
दिख गया लेकिन किसी से नहीं कहा जायेगा
ऐसे देखने वालों की आँखों का देखना
देखने का चश्मा कहाँ मिल पायेगा

दिखने को लिखना बहुत ही आसान है
मगर यहीं पर हर कोई
गंवार और अनपढ़ बन जायेगा

लिखता रहेगा रात भर अंधेरे को ‘उलूक’
हमेशा ही सवेरे के आने तक 
सवेरा निकलेगा उजाले के साथ
आँखों में धूप का चश्मा बहुत काला मगर लगायेगा

जल्दी नहीं आयेगा समझ में कुछ
कुछ समय खुद ही समय के साथ सिखायेगा

नंगेपन को ढकना नहीं है
लिखना सीखना है ज्यादा जरूरी
लिखते लिखते नंगापन ही एक फैशन भी हो जायेगा

कपड़ा सोचना कपड़ा लिखना
कपड़े का इतिहास बने या ना बने
बंद कुछ पढ़ने से खुला सब पढ़ना
हमेशा ही अच्छा कहा जायेगा ।

चित्र साभार: www.picsgag.com

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

पुराने फटे कपड़े के दो टुकड़े कर दो नये करने वाले हैं

एक पुरानी दीवार के पलस्तर को ढकने वाले हैं पुराने फटे कपड़े के दो टुकड़े कर दो नये करने वाले हैं    
संदर्भ: कुमाऊँ विश्वविद्यालय





खबर
हवा में 
हो तो

खुश्बू 


खुश्बू?
कहना 
ठीक नहीं 

गंध कहना 
सही रहेगा 

सड़ी गली 
चीजों के साथ 
रहते उठते बैठते
आदत 
हो जाती है 

और दुर्गंध भी 
किसी के लिये 
एक सुगँध हो जाती है 
अपनी अपनी नाक से
अपने अपने हिसाब से सूँघना 

हाँ तो
मैं 
कहते कहते 
गंध पर ही अटक गया 

क्या क्या नहीं 
होता है
अपने ही 
आस पास भी 
अटकने के लिये 
ध्यान बंट ही जाता है 

खबर की गंध थी 
आज आ भी गई 
टी वी में अखबार में 
जगह जगह के समाचार में 

एक फटे पैबंद से 
पट चुके कपड़े के 
दिन फिर से फिरने वाले हैं 
सरकार तैयार हो गई है 
दो टुकड़े करके इधर उधर के 
दो चार फटे कपड़ों के साथ
जोड़ जुगाड़ 
कर फिर से 
सिलने वाले हैं 

जिसे नया कपड़ा 
कह कर
उसी 
पुराने नंगे बदन को
फिर से 
ढकने वाले हैं 

जिसके कपड़े 
एक बार फिर से 
आजादी के साठ दशकों के बाद 
काट छाँट करने के लिये
जल्दी 
उतरने वाले हैं 

बहुत खुश हैं 
खुश होने वाले 
लिखने वाले का काम है लिखना 
एक दो पन्ने ‘उलूक’ के 
बही खाते में गीले आटे को 
पोत पात कर चिपकने वाले हैं 

चीटीं ने कौन 
सा उड़ना है 
अगर दिखे भी सामने सामने से 
उसके बदन पर पर निकलने वाले हैं 

जुगाड़ियों का 
क्या जुगाड़ है 
इस सब के पीछे 
क्या सोचना 

जुगाड़ियों के 
दिन फिरते रहते हैं 
जुगाड़ो से एक बार शायद
और भी 
फिरने वाले हैं 

भौंचक्का क्यों 
होता है सुन कर 
अच्छे दिन देश के लिये ही जरूरी नहीं हैं 

एक फटे कपड़े के 
भी दिन फिरने वाले हैं । 

चित्र साभार: http://www.123rf.com/