उलूक टाइम्स: कर्म
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रविवार, 24 मार्च 2019

हर कोई किसी गिरोह में है फिर कैसे कहें आजादी के बाद सोच भी आज आजाद हो गयी है


आजादी 

चुनने की
एक आजाद सोच

पहेली 

नहीं हो गयी है 

सोचने 

की बात है 

सोच
आज क्यों

विरुद्ध
सामूहिक
कर्म/कुकर्म
हो गयी है ।


बर्फी 
के ऊपर
चढ़ाई गयी

चाँदी का
सुनहरा
वर्क हो गयी है

स्वर्ग
हो गयी है
का विज्ञापन है

मगर
बेशर्म
नर्क हो गयी है

अपोहन
की खबर
कौन दे

किसे
सुननी है

व्यस्त
चुनावों में

गुलाम
नर्स हो गयी है

मरेगी
भी नहीं

जिंदा भी
नहीं रहने
दिया जायेगा

बिस्तरे
में पड़ी

बेड़ा गर्क
हो गयी है

गहन
चिकित्सा केंद्र में
है भी

तो भी

कौन सी
किस के लिये

शर्म हो गयी है 

ठंडे हो गये

ज्यादा
लोगों
के देश में

सिर्फ
दो लोगों
के लिये

हर खबर

गर्म
हो गयी है 

पूजा पाठ
नमाज समाज

सोचने
वालों के लिये

फाल्तू
का एक

कर्म
हो गयी है

मन्दिर
के साथ

मसजिद
की बात
करना

सबसे
बड़ा
अंधेर है

अधर्म
हो गयी है 

नंगा होना

नंगई करना

करने धरने
वालों की

सूची में
आने की
शर्त हो गयी है

लोक भी है
तंत्र भी है

लोकतंत्र
की बात

फिर
करनी क्यों

बात ही
व्यर्थ हो गयी है 

जीतना
उसी को है

आज
चुनाव
करवाने
की बात भी

फालतू
सा एक

खर्च
हो गयी है 

मर जायेंगे

लुटेरे
घर मोहल्ले के

हार
पर बात
कहना भी

खाने में

तीखी मिर्च
हो गयी है 

क्या
लिखता है

क्या
सोच है

‘उलूक’ तेरी

समझनी
भी
किसे हैं

बातें सारी

अनर्थ
हो गयी हैं

लूट में

हिस्सेदारी
 लेने वाली

सारी
जनता को

देखता भी
नहीं है

आज

सबसे
समर्थ हो
गयी है । 




सोमवार, 24 नवंबर 2014

कुछ करने वाले खुद नहीं लिखते हैं अपने किये कराये पर किसी से लिखाते हैं

कुछ मत
कह ना
लिखने
दे ना

लिख ही तो
रहें हैं
कुछ
कर तो
नहीं रहे हैं

वैसे भी
जो करते हैं
वो
ना लिखते हैं
ना लिखे हुऐ
को पढ़ते हैं

गीता पर
दिये गये
कृष्ण भगवान
के कर्म
के संदेश
को अपने
दिल में
रखते है

बीच बीच
में लिखने
वाले को
याद दिलाते हैं
अपना खुद
काम पर
लग जाते हैं

करने के
साथ साथ
लिख लेने
वाले भी
कुछ हुआ
करते हैं

लिख लेने
के बाद
कर लेने
वाले कुछ
हुआ करते हैं

अब
अपवाद
तो हर
जगह ही
हुआ
करते हैं

करने वाले
को हम
कौन सा
रोक पाते हैं

करते हुऐ
देखते हैं
और
लिखने के
लिये आ
जाते हैं

लिख
लेने से
करने वालों
पर कोई
प्रभाव नहीं
पढ़ता है

उनके करने
कराने
पर कहानी
बनाने वाले
कुछ अलग
तरह के लोग
अलग जगह
पर पाये
जाते हैं

वो ही
करने वालों
के करने
पर लिखते
चले जाते हैं

जिसे
सारे लोग
पढ़ते भी हैं
और
पढ़ाते भी हैं
जिसे
सारे लोग
समझते भी हैं
और
साथ में
समझाते भी हैं

‘उलूक’ के
लिखे को
ना ये
पढ़ते हैं
ना वो
पढ़ते है

करने वालों
के करने
का लिखना
तू जा कर
पढ़ ना

कुछ नहीं
करने वाले से
तुझे क्या
लेना देना
उसे लिखने
ही दे ना ।

चित्र साभार: becuo.com

शनिवार, 19 मई 2012

ब्राह्मण और मीट

ब्राह्मणों ने शुरु किया
जब से मीट है खाना
बूचडो़ ने सोच लिया
मीट का दाम है बढ़ाना
चाह रहे थे बैंक वाले भाई
तिवारी जी को समझाना
कालेज को जाते समय
ये वाकया सामने आया
तिवारी जी ने जब मुझे
आवाज दे कर बुलाया
एक जमाना था पुराना
कर्म आधार था
वर्ण व्यवस्था का
चार वर्ण में मेरे देश
का आदमी आपस
में बंटता था
जमाना बहुत ही आगे
चला आज आया
आदमी ने भी अपने
कर्मों का दायरा बढा़या
मास्टर स्कूल में
पढा़ना छोड़ के आया
डाक्टर हस्पताल की
दवाई ही बेच आया
बैंक वाले ने गरीब की
भैंस के लोन पर खाया
हर कोई आज ऊपर की
कमाई चाहता है
करता खुद कुछ है और
सामने वाले को समझाता है
बिना कुछ करे किसी के भी
कंधे पर चढ़ कर ऊपर की
ओर जाना चाहता है
उस समय वो वर्ण व्यवस्था
को पूरा पूरा भुनाता है
एक वर्णी लोगों से मिलकर
कहीं भी हाथ मारने में
बिल्कुल नही हिचकिचाता है
काम पूरा जब हो जाता है
वर्ण व्यवस्था के खिलाफ
झंडा खुद उठाता है
सफेद टोपी निकाल के
अन्ना के जलूस की
आगवानी करने भी
आ जाता है
आज जब अधिकतर लोग
देश में हर तरफ कुछ
भी खाते चले जा रहे हैं
फिर भी बाजार में हम
रुपये का भाव गिरता
हुआ देखते चले जा रहे हैं
ऎसे में समझ में नहीं
मेरे आ पा रहा है
ब्राह्मण का मीट खाना
मीट के दाम को
कैसे बढा़ रहा है
तिवारी जी हम ये बात
बिल्कुल भी नहीं
पचा पा रहे हैं
हम भी वैसे शिकार नहीं
खा पा रहे हैं और आपके
प्रश्न का उत्तर भी नहीं
आज दे पा रहे हैं।