उलूक टाइम्स: कव्वे
कव्वे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कव्वे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 5 जनवरी 2015

चूहे मारने वाली बिल्लियों को कुत्तों की देखभाल करने के काम दिये जाते हैं

एक नहीं कई जगहों पर
कोयले मोहर लगाते हैं
सब कुछ काला काला
हो जाता है फिर भी
कव्वे शोर नहीं मचाते हैं
हीरे बहुत से होते हैं
कोयलों के बीच से ही
कोयलों में से ही कुछ
दब दबा कर
बन बना जाते हैं
यहाँ कोयले कहने से
मतलब उड़ती काली
चीज से मत
निकाल बैठियेगा
वो बात अलग है
कोयला जला के
काला हुआ पदार्थ
कोयल से भी
बनाया जा सकता है
जब कोयल को हम
आग में जलाते हैं
बात कोयले के मोहर
लगाने से शुरु हुई थी
भटक गई उड़ती
चिड़िया के पंखों की
फड़फड़ाहट में
घबराने की बात नहीं है
घबराने वाले ही
असली जगह पर
हीरों को कोयलों से
कम आँके जाने का
हिसाब किताब बना
कर सिखाते हैं
कोई भी दो आँखों वाला
आँखों को कष्ट नहीं देता है
हर सजावट की जगह पर
हीरे नहीं आने दिये जाते हैं
राज काज राजा को
ही चलाना होता है
समझदार लोग भी
राजकाज में मदद
करने के लिये आते हैं
काम दिया जाने से पहले
जरूरी होता है बताना
अपने काम करने
की अच्छाईयों को
दूध देने वाली गायों को
बकरी कटने वाले
कारखाने के रास्ते
पर दौड़ाते हैं
सीख लेते हैं
इस कलाकारी
को जो भी कलाकार
दीवार पर लगी सीढ़ी में
बहुत ऊपर तक
चढ़े नजर आते हैं
जिसको आता है
दीवार पर चूना लगाना
सीढ़ी पकड़े उसे गिरने से
रोकते हुऐ नजर आते हैं ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आहा मेरा पेड़

मुर्गे
मुर्गियां
कबूतर तीतर
मेरे पेड़ की
एक मिसाल हैं

हर एक
अपना
अपनी
जगह पर
धर्म निभाते हैं

मुर्गियां
मुर्गियों के साथ
कबूतर
कबूतर के साथ
हमेशा
ही पाये जाते हैं
कव्वे
कव्वों से ही
चोंच लड़ाते हैं
धर्म
निरपेक्षता का एक
उत्तम
उदाहरण दिखाते हैं

जंगल के
कानून
किसी को भी
नहीं पढ़ाये जाते हैं
बड़े छोटे
का कोई भेद
नहीं किया जाता है
कभी कभी
उल्लू को भी
राजा बनाया जाता है

कोई
झगड़ा फसाद
नहीं होता है
मेरे पेड़ पर कभी
सरकारी चावल
ताकत के अनुसार
घौंसलों में ही
पहुंचा दिया जाता है

पेड़
के अंदर
कोई लाल बत्ती
नहीं लगाता है

जंगल
जाने पर ही
लाल बत्ती है करके
बस शेर को ही बताता है

कोई किसी
को कभी
थोड़ा सा भी
नहीं डराता है
जिसकी जो
मन में आये
कर ले जाता है

बहुत ही
भाईचारा है,
आनन्द ही
आ जाता है
साल के
किसी दिन जब
सफेद कौआ
काले कौऎ को
साथ लेकर
कबूतर के
घर जाता हुवा
दिखाई दे जाता है।

रविवार, 4 दिसंबर 2011

पहचान

शब्दों
के समुंदर
में गोते लगाना

और

ढूँढ
के लाना
कुछ मोती

इतना
आसान
कहां होता है

कविता
बता देती है
तुम्हारे अंदर के
कव्वे का पता

जो
सफेद शब्द
खोज के
लाता तो है हमेशा

पर
कव्वे की
काली छाया

उन्हे भी
बना देती
है काला

और

कोयल
की कूँक
होते हुवे भी

वो
न जाने क्यूं
कांव कांव ही
सुनायी देते हैं

और

लोग जान
जाते हैं मुझे ।