उलूक टाइम्स: कशिश
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बुधवार, 26 नवंबर 2014

हैवानियत है कि इंसानियत का दीमक हुई जा रही है

शर्म आती है

कहने में भी
शर्म आ रही है

सात साल की
मासूम ‘कशिश’

जिस दरिंदगी
का हुई है शिकार

किसकी
रही गलती
कहाँ हो गई कमी


इंसानियत
क्यों हैवानियत
होती जा रही है

दानवों की सी
नोच खसोट जारी है

कितनी द्रोपदी

पता नहीं
कहाँ कहाँ

दुशासन की
पकड़ में
बस कसमसा रही हैं

भगवान
कृष्ण भी
कहाँ कहाँ पहुँचें

सारी घटनायें
सामने कहाँ
आ रही हैं

देवताओ
कुछ तो कहो

देव भूमि
पीड़ा से
छ्टपटा रही है

माँ की ममता
कितनी
हो चुकी है बेबस

गिद्धों की
नोची हुई
लाश को
देख देख कर
बेहोश हुई
जा रही है

इंसान
कलियुग़ में
इंसानियत का
कितना करेगा
और कत्ल

सजा
पता नहीं
कब और किसे
दी जा रही है

आँखें हैं नमी है
सिले हुऐ मुँह हैं

मोमबत्तियाँ
हाथों में ही
पिघलती
जा रही हैं

शर्म आ रही है

कहने में भी
शर्म आ रही है ।

चित्र साभार: imgarcade.com