उलूक टाइम्स: काला चश्मा
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रविवार, 29 सितंबर 2013

मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है

समय के साथ बहुत सी
आदतें आदमी की
बदलती चली जाती हैं
सड़क पर चलते चलते
किसी जमाने में
गर्दन पीछे को
बहुत बार अपने आप
मुड़ जाती है
कभी कभी दोपहिये पर
बैठे हुऐ के साथ
दुर्घटनाऐं तक ऐसे
में हो जाती हैं
जब तक अकेले होता है
पीछे मुड़ने में जरा सा
भी नहीं हिचकिचाता है
उम्र बढ़ने के साथ
पीछे मुड़ना कम
जरूर हो जाता है
सामने से आ रहे
जोड़े में से बस
एक को ही
देखा जाता है
आदमी आदमी को
नहीं देखता है
महिला को भी
आदमी नजर
नहीं आता है
अब आँखें होती हैं
तो कुछ ना कुछ
तो देखा ही जाता है
चेहरे चेहरे पर
अलग अलग भाव
नजर आता है
कोई मुस्कुराता है
कोई उदास हो जाता है
पर कौन क्या देख रहा है
किसी को कभी भी
कुछ नहीं बताता है
सब से समझदार
जो होता है वो
दिन हो या शाम
एक काला चश्मा
जरूर लगाता है ।