उलूक टाइम्स: खयाल
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रविवार, 14 अगस्त 2016

एक खयाल आजाद एक खयाल गुलाम एक गुलाम आजाद एक आजाद गुलाम

गुलामों के
गुलामों की

किसी एक
श्रृंखला के
गुलाम

तेरे आजाद
होने के
खयाल को

एक गुलाम
का सलाम

सोच ले
कर ले मनन
लगा ले ध्यान

लिखना चाहे
तो लिख
भी ले
एक कलाम

कल के दिन
आने वाली

एक दिन
की आजादी
के जश्न का
आज की शाम

देख कर
दिनदर्शिका में

अवकाश के
दिनों में
दिखाये गये

लाल रंग में रंगे
पन्द्रह अगस्त
का लेकर नाम

कल
निकल जायेगा
हाथ से

एक साल तक
नहीं मिलेगा
फिर मौका

हो जायेंगे
तेरे सारे
अरमान धड़ाम

करले करले
बिना शरमाये

किसी बड़े
गुलाम के
छोटे गुलाम को

झंडा तानते समय
जोर से जूता
ठोक कर सलाम

आजाद खयाल
आजाद रूहें
करें अपने
हिसाब किताब

लिये अपने
जारी और रुके
हुए जरूरी
देश के सारे काम

एक गुलाम
‘उलूक’ का

अपने जैसे
गुलामों के लिये

है बस ये

गुलाम खयाल

आजाद पैगाम ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

रविवार, 4 जनवरी 2015

है तो अच्छा है नहीं है तो बहुत अच्छा है


नया कहने के लिये उठ लिया जाये 
अच्छा है 
रहने दें नींद ही में रह लिया जाये 
तो भी अच्छा है 

खयाल के
खाली चावलों को बीनते बीनते नींद आ जाती है 
थोड़ा खयाली पुलाव पका लिया जाये 
अच्छा है 

उनको आता है खयाल के घोड़े दौड़ाना 
अपना गधा भी कम नहीं है 
गधा है फिर भी अच्छा है 

पाँच के दस के और बीस के नोट 
बहुत पुराने हैं मगर अच्छे हैं 
पंद्रह पच्चीस के भी आ जायें छप कर
और अच्छा है 

उसकी बारूद की टोकरी की खबर उसने दी 
अच्छा है 
इसने फोड़ कर उसके सिर में 
पीठ थपथपा ली अपनी 
बहुत अच्छा है 

इसका दिल है धड़कता है 
ये भी अच्छा है 
उसका दिल है धड़कता है 
वो भी अच्छा है 

अच्छी बात करना सबसे अच्छा है 
अच्छा दिन है अच्छी रात है 
बहुत अच्छा है 

अच्छी खबरें है अच्छी बात हैं 
जो है सो है बहुत अच्छा है 

और फिर से नया कहने के लिये 
उठ लिया जाये अच्छा है 
रहने दें नींद ही में रह लिया जाये 
और अच्छा है । 

चित्र साभार: www.christart.com

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

क्या करे कोई गालिब खयाल वो नहीं हैं अब

होते होंगे कुछ कहीं
इस तरह के खयाल
तेरे पास जरूर गालिब
दिल बहल जाता होगा
बहुत ही आसानी से
उन दिनो तेरे जमाने में
अब ना वो दिल
कहीं नजर आता है
ना ही कोई खयाल
सोच में उतरता है कभी
ना ही किसी गालिब की
बात कहीं दूर बहुत दूर
तक सुनाई देती है
ठंडे खून के दौरों से
कहाँ महसूस हो पाती है
कोई गरमाहट
किसी तरह की
चेहरे चेहरे में पुती
हुई नजदीकियां
उथले पानी की गहराई
सी दिखती है जगह जगह
मिलने जुलने उठने बैठने
के तरीकों की नहीं है
कोई कमी कहीं पर भी
वो होती ही नहीं है
कहीं पर भी बस
बहुत दूर से आई
हुई ही दिखती है
जब भी होता है कुछ
लिख देना सोच कर कुछ
तेरे लफ्जों में उतर कर
बारिश ही बारिश होती है
बस आँख ही से नमी
कुछ दूर हो आई सी
लगती है अजनबी सी
कैसे सम्भाले कोई
दिल को अपने
खयाल बहलाने के
नहीं होते हों जहाँ
जब भी सोचो तो
बाढ़ आई हुई सी
लगती है गालिब ।