उलूक टाइम्स: खाना
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बुधवार, 13 अगस्त 2014

आज ही छपा है अखबार में कहने को कल परसों भी कह दिया है

पूरे पके
और
सूखे हुऐ
कददू
को हाथ में
लेकर
संकल्प
ले लिया है

ना
खुद खाउँगा
ना
खाने दूँगा

बहुत
जोर से
बहुत बड़ा
एक लाउडस्पीकर
हाथ में लेकर
कह दिया है

सावधान
बड़ा
खाने वालो

खाना पीना
दिखना
कहीं किसी
को भी नजर

भूल से
भी नहीं
आना चाहिये

बहुत पुराना
खा चुके
मोटे लोगों को भी
अपना भार
अब घटाना चाहिये

सब कुछ
बदल डालूँगा
एक नहीं कई कई
बार कह दिया है

खाने पीने को
छोड़ कर
बाकी सब कुछ
कर लेने का
लाइसेंस
बस अपने ही
ईमानदारों
को ही दिया है

अभी तो
बस बड़े बड़े
खाने वालों
के लिये
सी सी कैमरे
लगाये जा रहे हैं

कद्दू
के अंदर
पनप रहे कीड़े
कौन सा
किसी को
बाहर से कहीं
नजर आ रहे हैं

छोटे मोटे
बिल पर्चे
टी ऐ डी ऐ
कमीशन
सब हजार
दस हजार
तक के

अभी
पाँच साल
तक नोटिस में
नहीं लिये जायेंगे

अगले
पाँच साल में
छोटे खाने
वाले भी
ट्रेनिंग
रिफ्रेशर कोर्सेस
के लिये
बुला लिये जायेंगे

अभी चोगे
धो धुला के
स्त्री कर करा कर
शरीर पे डालना ही
सिखाया जा रहा है

मैले मन
को धोने
धुलाने का
पाउडर भी

जल्दी ही
चीन या
अमेरिका का ही
आने जा रहा है

देश भक्तो
बेकार की
फालतू बातों में
ध्यान क्यों
लगा रहे हो

पंद्रह अगस्त
दो ही दिन के
बाद आ रहा है

इतनी
बड़ी बात
भूल क्यों
जा रहे हो

खाना पीना
पीना खाना
होता रहता है

कम बाकी कल
परसों भी हो
ही जायेगा

अभी
झंडे बेचने हैं
उनको बेचने
और
खरीदने को

कौन
कहाँ से आयेगा
कहाँ को जायेगा

चीन से
बन कर भी
आता है तो
क्या होता है

झंडा ऊँचा
रहे हमारा

अपने
देश में ही
गाया जायेगा ।

रविवार, 1 जून 2014

जैसा यहाँ होता है वहाँ कहाँ होता है

कभी कभी
बहुत अच्छा
होता है

जहाँ आपको
पहचानने वाला
कोई नहीं होता है

कुछ देर के
लिये ही सही
बहुत चैन होता है

कोई कहने सुनने
वाला भी नहीं
कोई चकचक
कोई बकबक नहीं

जो मन में
आये करो
कुछ सोचो
कुछ और
लिख दो

शब्दों को
उल्टा करो
सीधा कर
कहीं भी
लगा दो

किसे पता
चल रहा है कि
अंदर कहीं कुछ
और चल रहा है

कोई भी
किसी को
देख भी नहीं
रहा होता है

सच सच
सब कुछ सच
और साफ साफ
बता भी देने से
कोई मान जो
क्या लेता है

वैसे भी
हर जगह
का मौसम
अलग होता है

सब की अपनी
लड़ाईयाँ
सबके अपने
हथियार होते हैं

किसी के दुश्मन
किसी और के
यार होते है

पर जो भी
होता है
यहाँ बहुत
ईमानदारी
से होता है

बेईमानी कर
भी लो थोड़ा
बहुत कुछ अगर
तब भी किसी को
कुछ नहीं होता है

सबको जो भी
कहना होता है
अपने लिये
कहना होता है

अपना कहना
अपने लिये
उसी तरह से

जैसे
अपना खाना
अपना पीना
होता है ।

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

डाँठ खाना सीख जा मास्टर से हैडमास्टर हो जा

घर में मां बाप
डाँठ खाते है
किसी को नहीं
कुछ बताते हैं
बाहर निकलते
ही बस थोड़ा
मुस्कुराते हैं
छात्रों का
अधिकार क्षेत्र
विस्तृत हो
जाता है
उस दिन से
जिस दिन से
वो छात्र नेता
हो जाते है
स्कूल के
मास्साब को
हड़काते हैं
घर का तो
पता ही नहीं
चल पाता है
वहाँ जो होता है
कोई बाहर
आकर नहीं
बताता है
मास्टर बेचारा
बड़बडाता ही
रह जाता है
कुछ कहने की
करता भी
है कोशिश
कह नहीं
पाता है
कुछ भी
छुप नहीं
पाता है
बहुत से
छात्रों के
बीच में
जो हड़काया
जाता है
छात्र नेता
का झंडा
बुलंद हो
जाता है
आने वाले
चुनावों में
अपने चारों
ओर अपने
जैसे मास्टर
हड़काने वाले
छात्रों की
भीड़ से
घिरा हुआ
अपने को
पाता है
कालर कमीज
का खुद
ही खड़ा
हो जाता है
मास्टर जिंदगी
भर मास्टर
एक रह
जाता है
छात्र नेता
स्कूल से
पार्लियामेंट
तक पहुँच
जाता है
हाँ जो
मास्टर डांठ
खाना सीख
ले जाता है
धीरे से
मुस्कुराता है
नेता जी
उतारते रहें
इज्जत कभी
भी कहीं भी
प्रतिक्रिया नहीं
दिखलाता है
कभी सरकार
से कुछ उसे
दे दिलवा
दिया जाता है
जो नहीं
मुस्कुरा पाता है
डांठ खाने
पर मुँह
बनाता है
ऎसे मास्टरों
को समाज
भी इज्जत
नहीं दे
पाता है
हड़का हुआ
एक मास्टर
जो अपनी
इज्जत नहीं
बचा पाता है
किसी के काम
कहीं भी नहीं
आ पाता है ।