उलूक टाइम्स: खुद का
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गुरुवार, 25 जून 2015

इकाई दहाई नहीं सैकड़े का अंतिम पन्ना




कुछ
जग बीती हो 
या
कुछ आप बीती 

यहाँ
सब बराबर होता है 
ये भी
एक मिसाल है 
 :) 


कभी
किसी समय 
सब कुछ छोड़ कर 

अपनी
खुद की एक
बात कह देने में 
कोई बुराई नहीं है 

बाकी बातें 
अपनी जगह हैं 

ये भी सही है 
कोई
सुनता नहीं है 

ना
किसी को
कोई 
फर्क पड़ता है 
किसी के 
कहते रहने से 

अपना
सब कुछ 
समेटते समेटते 
इधर उधर के
कुछ 

कुछ
उलझे उलझते 
किसी और के 

कटोरों
में
बटोरे हुऐ 

तुड़े मुड़े
कागजों की 
सिलवटों को

सीधा 
करते चले जाने से 

ना ही
सिलवटे‌ 
सीधी होती हैं 

ना ही
कागज के 
दर्द ही कम होते हैं 

उधर की दुनियाँ में 

उसके
सच्चे होने 
का
भ्रम ही 
तो होता है 

इधर
तो सभी 
कुछ भ्रम है 

भूलभुलइया 
की
गलियों में
बने हुऐ रास्तों 
के निशान

जिन्हें 
कोई भी आने 
जाने वाला 
देखने समझने 
की कोशिश 
नहीं करता है 

फिर भी
भीड़ 
आ भी रही है 
और 
जा भी रही है 

ऐसे में
सब कुछ 
सबका लिख 
दिया जाये 
या
कभी अपनी 
किताब का 
एक कोरा पन्ना 
खोल के रख 
दिया जाये 

एक ही बात है 

उसपर

सबकुछ 
लिख दिये गये 

और 
खुद पर
कुछ नहीं 
लिखे गये

दोनो 
एक ही बात हैं 

उनके लिये

जिन्हे 
गलियाँ पसंद हैं 

निशान लगी
दीवारें नहीं ।
चित्र साभार: www.canstockphoto.com

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

किसी के दिल को कैसे टटोला जाता है कहीं भी तो नहीं बताया जाता है


बहुत कोशिश 
और
बहुत मेहनत 
करनी पड़ती है 
सामने वाले के दिल को 
टटोलने के लिये 

पहले तो
दिल 
कहाँ पर है 
यही अँदाज नहीं हो पाता है 

दूसरा 
अपना 
नहीं किसी और का 
दिल टटोलना होता है 
इसलिये 
उससे पूछा भी नहीं जाता है 

डाक्टर दिल का 
साथ लेकर 
खोजना शुरु करने का भी 
एक रास्ता नजर आता है 

लेकिन
डाक्टर 
तो उस दिल की 
बात समझ ही नहीं पाता है 
जिसे पान के पत्ते की शक्लों में 
ज्यादातर फिल्मों के पोस्टरों में 

या फिर
किसी 
स्कूल के पास 
के पेड़ो की छालों में 

ज्यादातर 
कीलों से खोद कर उकेरा जाता है 

इस सब के बीच में 
कई कई जमाने गुजर जाते हैं 
और बेचारा अपना खुद का दिल 
खुद से ही भूला जाता है 

अच्छा नहीं होता है 
बहुत ज्यादा उधेड़बुन में उलझ कर रहना 

और फिर
क्यों 
टटोलना किसी और का दिल 
होते हुऐ अपने खुद के पास भी 

अच्छा होता है 
अपने ही दिल से पूछ लेना 
अपने ही दिल का हाल भी 
कभी कभी 

वो बात अलग है 
खाली दिल को टटोलने में 
मजा उतना नहीं आता है 

ना ही कुछ 
मिलता है 
खुद के दिल को टटोलने के बाद 

वैसे भी
खाली 
जगहों को आखिर 
कितनी बार किसी से खाली खाली में 
बस एक खालीपन को ढूँढने के लिये 
टटोला जाता है । 

चित्र साभार: www.freelargeimages.com

सोमवार, 17 नवंबर 2014

खुद का आईना है खुद ही देख रहा हूँ

अपने आईने
को अपने
हाथ में लेकर
घूम रहा हूँ

परेशान होने
की जरूरत
नहीं है
खुद अपना
ही चेहरा
ढूँढ रहा हूँ

तुम्हारे
पास होगा
तुम्हारा आईना
तुमसे अपने
आईने में कुछ
ढूँढने के लिये
नहीं बोल रहा हूँ

कौन क्या
देखता है जब
अपने आईने में
अपने को देखता है

मैंने कब कहा
मैं भी झूठ
नहीं बोल रहा हूँ

खयाल में नहीं
आ रहा है
अक्स अपना ही
जब से बैठा हूँ
लिखने की
सोचकर

उसके आईने में
खुद को देखकर
उसके बारे में
ही सोच रहा हूँ

सब अपने
आईने में
अपने को
देखते हैं

मैं अपने आईने
को देख रहा हूँ

उसने देखा हो
शायद मेरे
आईने में कुछ

मैं
उसपर पड़ी
हुई धूल में
जब से
देख रहा हूँ

कुछ ऐसा
और
कुछ वैसा
जैसा ही
देख रहा हूँ ।

चित्र साभार: vgmirrors.blogspot.com