उलूक टाइम्स: चमचा
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बुधवार, 23 अगस्त 2017

पढ़ने वाला हर कोई लिखे पर ही टिप्पणी करे जरूरी नहीं होता है



जो लिखता है उसे पता होता है 
वो क्या लिखता है किस लिये लिखता है 
किस पर लिखता है क्यों लिखता है

जो पढ़ता है उसे पता होता है 
वो क्या पढ़ता है किसका पढ़ता है क्यों पढ़ता है 

लिखे को पढ़ कर उस पर कुछ कहने वाले को पता होता है 
उसे क्या कहना होता है 

दुनियाँ में बहुत कुछ होता है 
जिसका सबको सब पता नहीं होता है 

चमचा होना बुरा नहीं होता है 
कटोरा अपना अपना अलग अलग होता है 

पूजा करना बहुत अच्छा होता है 
मन्दिर दूसरे का भी कहीं होता है 

भगवान तैंतीस करोड़ बताये गये हैं 
कोई हनुमान होता है कोई राम होता है 
बन्दर होना भी बुरा नहीं होता है 

सामने से आकर धो देना 
होली का एक मौका होता है 

पीठ पीछे बहुत करते हैं तलवार बाजी 

‘उलूक’ कहीं भी नजर नहीं आने वाले 
रायशुमारी करने वालों का 
सारे देश में एक जैसा एक ही ठेका होता है । 

चित्र साभार: Cupped hands clip art

शनिवार, 13 सितंबर 2014

मित्र “अविनाश विद्रोही” आपके आदेश पर इतना ही कुछ मुझ से आज कहा जायेगा

मित्र आपने
आदेश दिया है

उस पर
और उसके
चित्र के पाँव
सड़क पर
दिखा दिखा कर
धो कर पीने
वालों पर
कुछ लिखने
को कहा है

आपके
आदेश का
पालन करने
जा रहा हूँ

मैं आपके
उस सबसे
बड़े महान
के ऊपर
आज कुछ
लिखने ही
जा रहा हूँ

नाम
इसलिये नहीं
ले पा रहा हूँ

कहीं
इस बदनामी
का फायदा भी वो
उठा ले जायेगा

बहुत दिन
पोस्टरों में
रहा है गली गली
इस देश की

आने वाले
समय के
मंदिरों की
मूर्ति हो जायेगा

आज
साईं बाबा
को बाहर
फेंका जा रहा है

कल
हर उस
खाली जगह
पर वो
खुद ही जाकर
अपना बैठ जायेगा

उसके
चमचों की
बात कर के क्यों
अपना दिमाग
खराब करते हो

अभी
बहुत सालों तक
हर गली हर पेड़ पर
वो ही लटका हुआ
नजर आयेगा

इस देश
की किस्मत
अच्छी कही जाये
या बुरी

तेरी मेरी
किस्मत में
फुल स्टोप
उसके चमचे
का कोई चमचा
ही लगायेगा

सोच कर
आया था
‘उलूक’

पाँच साल
पूरे हो चुके
ब्लाग पर

अब शायद
गली की
बातों को छोड़
घर की रोशनी पर
कुछ लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
फेस बुक के
संदेश बक्से में

तेरा संदेश
उस पर
और
उसके चमचों पर
कुछ ना कुछ
लिख ले जाने
को उकसायेगा

उसके
पाँच सालों पर है
तेरी काली नजर

पर
अगले पाँच साल भी
उसका कोई ना कोई

चमचा
तुझे जरूर
कहीं ना कहीं रुलायेगा

क्या पता

उसकी
हजार फीट
की प्रतिमा
बनाने के
नाम पर
कुछ लोहा
माँगने ही
तेरे घर ही
आ जायेगा ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

देखता है क्या

कोई कुछ देखता है कोई कुछ देखता है
कोई कुछ भी कभी यहाँ नहीं देखता है।

तू जहर देखता है वो शहर देखता है

बैचेनी तुम्हारी कोई बेखबर देखता है।

कोई आता इधर है और उधर देखता है

कहता कुछ भी नहीं है अगर देखता है।

चमचा धीरे से आकर एक नजर देखता है

बताने को उसको एक खबर देखता है।

भटकना हो किस्मत तो कुवां देखता है

बंदा मासूम सा एक बस दुवा देखता है।

अपने सपनो को जाता वहाँ देखता है

उसके कदमों की आहट यहां देखता है।

सबको मालूम है कि वो क्या देखता है

हर कोई यहाँ नहीं एक खुदा देखता है।