उलूक टाइम्स: छिपकली
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गुरुवार, 22 नवंबर 2018

पता ही नहीं चलता है कि बिकवा कोई और रहा है कुछ अपना और गालियाँ मैं खा रहा हूँ

शेर
लिखते होंगे
शेर
सुनते होंगे
शेर
समझते भी होंगे
शेर हैं
कहने नहीं
जा रहा हूँ


एक शेर
जंगल का देख कर
लिख देने से शेर
नहीं बन जाते हैं

कुछ
लम्बी शहरी
छिपकलियाँ हैं

जो आज
लिखने जा रहा हूँ

भ्रम रहता है
कई सालों
तक रहता है

कि अपनी
दुकान का
एक विज्ञापन

खुद ही
बन कर
आ रहा हूँ

लोग
मुस्कुराहट
के साथ मिलते हैं

बताते भी नहीं है
कि खुद की नहीं
किसी और की
दुकान चला रहा हूँ

दुकानें
चल रही हैं
एक नहीं हैं
कई हैं

मिल कर
चलाते हैं लोग

मैं बस अपना
अनुभव बता रहा हूँ

किस के लिये बेचा
क्या बेच दिया
किसको बेच दिया
कितना बेच दिया

हिसाब नहीं
लगा पा रहा हूँ

जब से
समझ में आनी
शुरु हुई है दुकान

कोशिश
कर रहा हूँ
बाजार बहुत
कम जा रहा हूँ

जिसकी दुकान
चलाने के नाम
पर बदनाम था

उसकी बेरुखी
इधर
बढ़ गयी है बहुत

कुछ कुछ
समझ पा रहा हूँ

पुरानी
एक दुकान के
नये दुकानदारों
के चुने जाने का

एक नया
समाचार
पढ़ कर
अखबार में
अभी अभी
आ रहा हूँ

कोई कहीं था
कोई कहीं था

सुबह के
अखबार में
उनके साथ साथ
किसी हमाम में
होने की
खबर मिली है
वो सुना रहा हूँ

कितनी
देर में देता
है अक्ल खुदा भी

खुदा भगवान है
या भगवान खुदा है
सिक्का उछालने
के लिये जा रहा हूँ

 ‘उलूक’
देर से आयी
दुरुस्त आयी
आयी तो सही

मत कह देना
अभी से कि
कब्र में
लटके हुऐ
पावों की
बिवाइयों को
सहला रहा हूँ ।

चित्र साभार: https://www.gograph.com

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

मत कह बैठना कहानी में आज मोड़ है आ रहा

मकड़ी के
जाले में फंसी
फड़फड़ाती
एक मक्खी

छिपकली
के मुँह से
लटकता
कॉकरोच

हिलते डुलते
कटे फटे केंचुऐ

खाने के लिये
लटके छिले हुऐ
सांप और मेंढक

गर्दन कटी
खून से सनी
तड़फती
हुई मुर्गियाँ

भाले से
गोदे जा रहे
सुअर के
चिल्लाने
की आवाज

शमशान घाट
से आ रही
मांस जलने
की बदबू

और भी
ऐसा बहुत कुछ

पढ़ लिया ना
अब दिमाग
मत लगाना

ये मत सोचना
शुरु हो जाना

लिखने वाला
आगे अब
शायद है कुछ
नई कहानी
सुनाने वाला

ऐसा कुछ
कहीं नहीं है
सूंई से लेकर
हाथी तक पर
बहुत कुछ
जगह जगह
यहां है लिखा
जा रहा

अपनी अपनी
हैसियत से
गधे लोमड़ी
पर भी फिलम
एक से एक
कोई है
बनाये जा रहा

पढ़ना जो
जैसा है चाहता
उसी तरह
की गली में
है चक्कर
लगा रहा

लेखक की
मानसिक
स्थिति को
कौन यहां
सही सही
पहचान
है पा रहा

कभी एक
अच्छे दिन
दिखाई दी थी
सुन्दर व्यक्तित्व
की मालकिन एक
चाँद से उतरते हुऐ

वही दिख रही थी
झाड़ू पर बैठ कर
चाँद पर उड़ती हुई
एक चुड़ैल जैसे
कुछ करतब करते हुऐ

मूड है
बहुत खराब
'उलूक'
का बेहिसाब
कुछ ऐसा
वैसा ही
है आज

जैसा लिखा
हुआ तुझे
यहाँ नजर
है आ रहा ।