उलूक टाइम्स: छोटी बात
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रविवार, 19 अप्रैल 2015

अपने घर की छोटी बातों में एक बड़ा देश नजर अंदाज हो रहा होता है

एक बार नहीं
कई बार होता है
अपना खुद का
घर होता है और
किसी और का
करोबार होता है
हर कोई जानता है
हर किसी को
उस के घर के
अंदर अंदर तक
गली के बाहर
निकलते ही
सबसे ज्यादा
अजनबी खुद का
यार होता है
खबर होती है
घर की एक एक
घर वालों को
बहुत अच्छी तरह
घर में रहता है
फिर भी घर की
बात में ही
समाचार होता है
लिखते लिखते
भरते जाते हैं
पन्ने एक एक
करके कई
लिखा दिखता है
बहुत सारा मगर
उसका मतलब
कुछ नहीं होता है
उनके आने के
निशान कई
दिखते हैं रोज
ही अपने
आसपास
शुक्रिया कहना
भी चाहे तो
कोई कैसे कहे
नाम होता तो है
पर एक शहर
का ही होता है
शहर तक ही नहीं
पहुँच पाता है
घर से निकल
कर ‘उलूक’
देश की बात
करने वाला
उससे बहुत ही
आगे कहीं होता है ।

चित्र साभार: imgarcade.com

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

सुधर क्यों नहीं जाता है छोटी सी बात करना सीखने के लिये क्यों नहीं कहीं दूर चला जाता है


छोटी छोटी बातों के ऊपर बातें बनाने से 
बात बहुत लम्बी हो जाती है 

अपने आस पास की धुंध गहरी होते होते 
धूल भरी एक आँधी हो जाती है 

बड़ी बात करने वाले को देखने सुनने से 
समझ में आ जाता है 

अच्छी 
मगर एक छोटी पक्की बात 
एक छोटे आदमी को 
कहाँ से कहाँ उठा ले जाती है 

एक छोटी बात से चिपका हुआ आदमी 
अपनी ही बनाई आँधी में आँखें मलता रह जाता है 

एक दिमागदार 
छोटी सी बात का मसीहा 
साल के हर दिन क्रिसमस मनाता है 

सोचने में अच्छा लगता है 
और बात भी समझ में आती है 

मगर 
छोटी छोटी बातों को खोजने परखने में 
सारी जिंदगी गुजर जाती है 

अपने आस पास के देश को देख देख कर 
देश प्रेम उमड़ने से पहले गायब हो जाता है 

देशभक्ति करने की सोच बनाने से पहले 
पुजारी को धंधा और धंधे का फंडा 
कदम कदम पर उलझाता है 

समझदार अपनी आँखों पर दूरबीन 
नाक पर कपड़ा और कान में रुई अंदर तक घुसाता है 

उसका दिखाना दूर आसमान में 
एक चमकता तारा 
गजब का माहौल बनाता है 
तालियों की गड़गड़ाहट में 
सारा आसमान गुंजायमान हो जाता है 

‘उलूक’ आदतन अपनी 
अपने अगल बगल के 
दियों से चोरे गये तेल के 
निशानों के पीछे पीछे 
इस गली से उस गली में चक्कर लगाता है 

कुछ भी हाथ में नहीं लगने के बाद 
खीजता हुआ 
एक लम्बे रास्ते का नक्शा बना कर 
यहाँ छाप जाता है 
छोटे दिमाग की छोटी सोच का 
एक लम्बा उदाहरण और तैयार हो जाता है । 


चित्र साभार: www.gograph.com

सोमवार, 3 नवंबर 2014

आज आपके पढ़ने के लिये नहीं लिखा है कुछ भी नहीं है पहले ही बता दिया है

एक छोटी सी बात
छोटी सी कहानी
छोटी सी कविता
छोटी सी गजल

या और कुछ
बहुत छोटा सा

बहुत से लोगों को
लिखना सुनाना
बताना या फिर
दिखाना ही
कह दिया जाये
बहुत ही अच्छी
तरह से आता है

उस छोटे से में ही
पता नहीं कैसे
बहुत कुछ
बहुत ज्यादा घुसाना
बहुत ज्यादा घुमाना
भी साथ साथ
हो पाता है

पर तेरी बीमारी
लाईलाज हो जाती है
जब तू इधर उधर का
यही सब पढ़ने
के लिये चला जाता है

खुद ही देखा कर
खुद ही सोचा कर
खुद ही समझा कर

जब जब तू
खुद लिखता है
और खुद का लिखा
खुद पढ़ता है
तब तक कुछ
नहीं होता है

सब कुछ तुझे
बिना किसी
से कुछ पूछे

बहुत अच्छी तरह

खुद ही समझ में
आ जाता है

और जब भी
किसी दिन तू
किसी दूसरे का
लिखा पढ़ने के लिये
दूसरी जगह
चला जाता है

भटक जाता है
तेरा लिखना
इधर उधर
हो जाता है

तू क्या लिख देता है
तेरी समझ में
खुद नहीं आता है

तो सीखता क्यों नहीं
‘उलूक’

चुपचाप बैठ के
लिख देना कुछ
खुद ही खुद के लिये

और देना नहीं
खबर किसी को भी
लिख देने की
कुछ कहीं भी

और खुद ही
समझ लेना अपने
लिखे को

और फिर
कुछ और लिख देना
बिना भटके बिना सोचे

छोटा लिखने वाले
कितना छोटा भी
लिखते रहें

तुझे खींचते रहना है
जहाँ तक खींच सके
कुत्ते की पूँछ को

तुझे पता ही है
उसे कभी भी
सीधा नहीं होना है

उसके सीधे होने से
तुझे करना भी क्या है
तुझे तो अपना लिखा
अपने आप पढ़ कर
अपने आप
समझ लेना है

तो लगा रह खींचने में
कोई बुराई नहीं है
खींचता रह पूँछ को
और छोड़ना
भी मत कभी

फिर घूम कर
गोल हो जायेगी
तो सीधी नहीं
हो पायेगी ।

चित्र साभार: barkbusterssouthflorida.blogspot.in

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

चिढ़

लगती है चिढ़

हो जाती है चिढ़

हंसी में भी
साफ साफ नजर
आती जाती
दिख जाती है चिढ़

बहुत सारे गुल
खिलाती है चिढ़

कोई क्या करे
लग रही है
समझ में भी
आती है चिढ़

बहुत लगती है
खुद को भी
चिढ़ाती है

बहुत चिढ़ाती
है चिढ़

फेवीकौल
नहीं होती है
फिर भी चिपक
जाती है चिढ़

कई कई बार
लग जाती है चिढ़

बहुत जोर की
लगती है
बता कर नहीं
आती है चिढ़

घरवालों से
हो जाती है चिढ़
घरवाली भी
दिखलाती है चिढ़
रिश्तेदारों से
हो जाती है चिढ़

पड़ोसी को
पड़ोसन से
करवाती है चिढ़

दोस्तों के बीच में भी
घुस आती है चिढ़

नौकरी में
सतरंगी रंग
दिखाती है चिढ़

कहाँ नहीं जाती है चिढ़

यहां तक की
फोटो में भी
आ जाती है चिढ़

पेंट का रंग
बन जाती है चिढ़
जीन्स की लम्बाई
कराती है चिढ़
साड़ी की कीमत
सुनाती है चिढ़

किस किस से
नहीं हो जाती है चिढ़

कई तरीकों से
घुस जाती है चिढ़

हर एक की
एक अलग
हो जाती है चिढ़

सबको ही
कभी तो
लग ही
जाती है चिढ़

कब कैसे किस को
कहाँ लग जाती चिढ़

छोटी सी बात पर
उठ जाती है चिढ़

पहले से नहीं
रहती है कहीं
बता कर भी
नहीं आती जाती है चिढ़

क्या आप को
अपना कुछ पता
बताती है चिढ़

चिढ़ थी चिढ़ है
और रहेगी भी चिढ़

समझते समझते
आग में डाले
घीं की तरह से
और भी भड़क
जाती है चिढ़ ।