उलूक टाइम्स: जड़मति
जड़मति लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जड़मति लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 28 फ़रवरी 2021

किसी महीने बरसात कम होती किसी महीने बकवास कम होती



करते करते
बकवास निरन्तर
सुजान हो चले जड़मति
ये भी तो किस्मत है होती

अभ्यास
समझ रोज का लेखन
आभासी कलम पन्ने जोतती
खुद ही कुछ बोती

जमा होते चले 
आगे के पीछे पीछे के आगे
आँखें मूंद वर्णमाला के मोती पर मोती

वाक्य चढ़े वाक्य के ऊपर
शब्दों की पहन कहीं अटपटी
कहीं फटी एक धोती

चित्र जड़े श्रँगार समझ कर
कुछ हल्के पर कुछ भार पटक कर
लिख डाली पोथी पर पोथी

धुँआ सोच कर हवा नोच कर
राख बनाते लिखे लिखाये अंगार दहक कर
कविता घोड़े बेच कर सोती

समझ समझ कर समझा लिखना
घुप्प अँधेरा जिसको दिन दिखना
सुबह सवेरे शुरु रात है होती

लिखना भर कर पेट गले तक
घिस घिस लिख कर गले गले तक
‘उलूक’ बेशरम पढ़ने वाले की आँखे
रोती हैं तो रोती।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

बुधवार, 10 जनवरी 2018

क्या लिखना है इस पर कुछ नहीं कहा गया है हिन्दी सीखिये रोज कुछ लिखिये गुरु जी ने वर्षों पहले एक मन्त्र दिया है

वृन्द के दोहे
‘करत करत
अभ्यास के
जड़मति
होत सुजान’
के
याद आते ही
याद आने शुरु
हो जाते हैं


हिन्दी के
मास्टर साहब
श्यामपट चौक
हिन्दी की कक्षा

याद आने
लगता है
‘मार मार कर
मुसलमान
बना दूँगा मगर
हिन्दी जरूर
सिखा दूँगा’
वाली उनकी
कहावत में
मुसलमान
शब्द का प्रयोग

और जब भी
याद आता है
उनका दिया
गुरु मन्त्र

‘लिख
कर पढ़
फिर पढ़
कर समझ’

जड़मति
‘उलूक’
फिर से लिखना
शुरु हो जाता है

लिखना
रोज का रोज
वो सब जो
उसकी समझ में
नहीं आ पाता है

लिखते लिखते
पता नहीं कितना
कितना लिखता
चला जाता है

ना जड़ मिलती है
ना मति सुधरती है
ना ही मुसलमान
हो पाता है

मार पड़ने का
तरीका बदलता
चला जाता है

मार खाता है
लिखता है
लिख कर
चिल्लाता है

फिर भी
ना जाने क्यों
ना हिन्दी ही
आ पाती है

ना
समझ ही
अपनी समझ
को समझ
पाती है

एक पन्ने के
रोज के
अभ्यास को
पढ़ने के लिये

कोई
आता है
कोई नहीं
आता है

कहाँ पता
हो पाता है
यही
‘करत करत
अभ्यास के
जड़मति
होत सुजान’

उससे
पता नहीं
कब तक
कितना कितना
और ना जाने
क्या क्या आगे
लिखवाता है ?

चित्र साभार: http://www.clipartguide.com