उलूक टाइम्स: तबला
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शनिवार, 26 जुलाई 2014

कुछ दिनों के लिये मुँह पर ताला लगाने थोड़ा अलीगढ़ की तरफ जा रहा हूँ



आज की 
ताजा खबर 
बस
बताने के लिये 
यहाँ
आ रहा हूँ 

कल से 
कुछ दिनों 
के लिये 
अपने अखबार 
के दफ्तर में 
ताला
लगाने जा रहा हूँ 

बहुत दिन 
हो चुके कुऐं के 
अंदर ही अंदर 
टर्राते हुऐ 

गला रवाँ 
करने के लिये 
निकल कर 
बाहर आ रहा हूँ 

कुछ दिन 
चैन की बंसी 
बजा सकते हैं 
बजाने
बजवाने वाले 

अपना
तबला 
और 
हार्मोनियम 
खुला हुआ 
छोड़ कर
जा रहा हूँ 

बहुत
हो चुकी
बक बक 
काम की
बेकाम की 

सब का 
दिमाग खाने 
के
बाद अब 

अपने
दिमाग को 
थोड़ी सी
हवा 
लगाने के लिये 
खुली
हवा में
साँस 
लेने के लिये
जा रहा हूँ 

थोड़े थोड़े
अंधे 
सभी
होना चाहते हैं 
लोग
इस जमाने के 

बहुतों का
बहुत कुछ 
देख देख कर 
मैं भी
आँख पर 
कुछ दिन 
पट्टी
लगाना
चाह रहा हूँ 

खुश रहें 
आबाद रहें 
पढ़ने पढ़ाने
वाले 
लौट कर
आने 
तक के लिये 

सफेद
पन्ने कुछ 
खाली
पतंग बनाने 
के लिये
छोड़ कर
जा रहा हूँ 

आते जाते
रहियेगा 
कुछ
कहियेगा 
कुछ
लिखियेगा 

टिप्प्णी वाले 
बक्से का
दान पात्र 
खुला
छोड़ कर
जा रहा हूँ 

‘उलूक’ 
जरूरत नहीं है 
मेरे जाने से बहुत 
खुश हो जाने की 

काफी
कर चुका है 
तू भी
उलूल जलूल 
बहुत
दिनों तक 
इधर और उधर
भी 

तेरी
कोटरी पर भी 
टाट की
एक पट्टी 
चिपकाने
जा रहा हूँ 

जा रहा हूँ 
सोच कर 
पूरा
चला गया 
भी
मत सोच बैठना 

कुछ दिनों
के बाद 
लौट कर फिर 
यहीं आ रहा हूँ ।