उलूक टाइम्स: थोड़े
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रविवार, 12 जुलाई 2015

थोड़े बहुत शब्द होने पर भी अच्छा लिखा जाता है

अब कैसे
समझाया जाये
एक थोड़ा सा
कम पढ़ा लिखा
जब लिखना ही
शुरु हो जाये
अच्छा है
युद्ध का मैदान
नहीं है वर्ना
हथियारों की
कमी हो जाये
मरने जीने की
बात भी यहाँ
नहीं होती है
छीलने काटने
को घास भी
नहीं होती है
लेकिन दिखता है
समझ में आता है
अपने अपने
हथियार हर
कोई चलाता है
घाव नहीं दिखता
है कहीं किसी
के लगा हुआ
लाल रंग का
खून भी निकल
कर नहीं
आता है
पर कोशिश
करना कोई
नहीं छोड़ता है
घड़ा फोड़ने
के लिये कुर्सी
दौड़ में जैसे
एक भागीदार
आँख में पट्टी
बाँध कर
दौड़ता है
निकल नहीं
पाता है
खोल से अपने
उतार नहीं
पाता है
ढोंग के कपड़े
कितना ही
छिपाता है
पढ़ा लिखा
अपने शब्दों
के भंडार के
साथ पीछे
रह जाता है
कम पढ़ा लिखा
थोड़े शब्दों में
समझा जाता है
जो वास्तविक
जीवन में
जैसा होता है
लिखने लिखाने
से भी कुछ
नहीं होता है
जैसा वहाँ होता है
वैसा ही यहाँ आ
कर भी रह जाता है
‘उलूक’ ठीक है
चलाता चल
कौन देख रहा है
कोई अपनी नाव
रेत में रखे रखे ही
चप्पू चलाता है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com