उलूक टाइम्स: दाँव
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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

चूहों से बचाने के लिये बहुत कुछ को थोड़े कुछ को कुछ चूहों पर दाँव पर लगाना ही होता है

होता है

निगाहें
कहीं और

को लगी होती हैं

और
निशाना

कहीं और को
लगा होता है

इस
सब के लिये

आँखों का
सेढ़ा होना

जरूरी
नहीं होता है


ये भी होता है

बकवास को
पढ़ना नहीं होता है

बढ़ती
आवत जावत
की घड़ी की सूईं
पढ़ने पढ़ाने का
पैमाना नहीं होता है

ये मजबूरी होता है

हरी भरी
कविताओं से भरी
क्यारियों के बीच में
पनपती हुयी भुर भुरी
खरपतवार को
उखाड़ने के लिये
ध्यान देना
बहुत जरूरी होता है

इसे होना होता है

देर रात
सड़क पर
दल बल सहित
निकले पहरेदार को

सायरन
बजाना ही होता है

किनारे हो लो
जहाँ भी 
हो

सेंध में लगे 
चोर भाईयों को
सन्देश दूर से
पहुँचाना होता है

ये जरूरी होता है

ज्यादा चूहों से
अनाज को
बचाने के लिये
दिमाग
लगाना होता है

कुछ चूहों की
एक समीति बनाकर

सारे अनाज को
उनकी देखरेख में
थोड़ा थोड़ा कर
कुतरवाना होता है

इसका
कुछ नहीं होता है

गाय की तरह
बातों की घास को
दिनभर निगल कर

‘उलूक’ ने
रातभर
जुगाली
करने में
बिताना ही
होता है।

चित्र साभार:
https://www.deviantart.com

गुरुवार, 15 मार्च 2012

अपना कल याद नहीं

वो कल नंगा
हो गया था
आज उसे
कुछ याद नहीं

हंस रहा है
आज सुबह से
सामने खड़े हुवे
नंगो को
देख देख कर

बिना कपड़ों के
भूखे की रोटी
छीन कर खाने
मरीज की
दवा बेच कर
उसे ऊपर पहुंचाने
में माहिर होने के
आरोपों के मेडल
छाती से चिपकाये

आज भौंक रहा है
सुबह से उन्ही
भाई भतीजों पर
जिनको आज उसने
इस लायक बना के
यहां तक आने के
लिये तैयार किया है

उससे दो
कदम आगे
पहुंचने वाले
उसके शागिर्द
काट खा रहे हैं
एक दूसरे को
खुले आम

कर रहे हैं
वो काम
जो उसने
भी किया

चुटकी में
पटक दिया
अपने सांथी को
बिना भनक लगे

सुना था
देख
भी लिया
गुरू सब
दाँव सिखाता है

एक को
छोड़ कर
अपने बचाव
के लिये।