उलूक टाइम्स: नियत
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शनिवार, 8 जुलाई 2017

बदचलन होती हैं कुछ कलमें चलन के खिलाफ होती हैं

 
खासों में आम सहमति से होती हैं कुछ खास बातें
कहीं किसी किताब में नहीं होती हैं

चलन में होती हैं कुछ पुरानी चवन्नियाँ और अठन्नियाँ
अपनी खरीददारियाँ अपनी दुकानें अपनी ही बाजार होती है

होती हैं लिखी बातें पुरानी सभी हर बार 
फिर से लिख कर सबमें बाँटनी होती हैं

पढ़ने के लिये नहीं होती हैं कुछ किताबें
छपने छपाने के खर्चे ठिकाने लगाने की रसीद काटनी होती हैं

लिखी  होती हैं किसी के पन्ने में हमेशा कुछ फजूल बातें
कैसे सारी हमेशा ही घर की हवा के खिलाफ होती हैं

कलमें भी बदचलन होती हैं ‘उलूक’
नियत भी किसी की खराब होती है ।

चित्र साभार: 123RF.com

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

प्रश्न हैं बने बनाये हैं बहुत हैं फिर किसलिये नये ढूँढने जाता है

प्रश्न उठना और
उठते प्रश्न को
तुरंत पूछ लेना
बहुत अच्छी बात है
लेकिन
किसी के लिये
समझना जरूरी है
किसी के लिये
बस एक मजबूरी है
प्रश्न कब पूछा जाये
किस से पूछा जाये
क्यों पूछा जाये
सबसे बड़ी बात
यह देखना
पूछने के लिये
उठे प्रश्न की
क्या औकात है
वैसे जैसा
साफ नजर आता है
पूछे गये प्रश्न से
पता चल जाता है
प्रश्न नियत होते हैं
उत्तर नियत होते हैं
प्रश्न पूछने वाले
नियत होते हैं
उत्तर देने वाले
नियत होते है
बस थोड़े से कुछ
दो चार बेवकूफ
सब कुछ समझते
बूझते हुऐ एक दूसरे
के साथ प्रश्नों की
अंताक्षरी फिर भी
खेल रहे होते हैं
रोज ही दूरदर्शन
में दूर से दर्शन होते है
बहस के लिये
हर तरफ की तरफ से
अपने अपने मुर्गे
खड़े किये होते हैं
किसी की कलगी
रंगीन होती है
किसी किसी ने
रामनामी दुपट्टे
ओढ़े हुऐ होते हैं
मुरगे लढ़ाने वाला
परदे के पीछे से
कहीं किसी अदृष्य
धागे से बंधा होता है
सामने से मगर
कठपुतलियों को
घो रहा है का जैसा
आभास दे रहा होता है
उसे पता होता है
वो खुद भी एक
कठपुतले के
हाथों खेल रहा
कठपुतला होता है
प्रश्न उठाये कोई
अपने आस पास से
एक नहीं अनेक
पड़े होते है
लेकिन प्रश्न पूछने
वाले हजार मील
दूर के पत्थर को
देख रहे होते हैं
अपना कुछ अपनी
सोच से बने वो
जमाने लद रहे होते हैं
 समय की बलिहारी है
ऐसे समय में गधे सारे
अपने अपने गधों की
लीद कुरेद रहे होते हैं
अपने गधे की लीद
की खुश्बू के नशे में
इतना झूम रहे होते हैं
सावन के सारे अंधे
जैसे हरी घास के
ढेर पर कूद रहे होते हैं
‘उलूक’
नोच सकता है
तू भी जितना
नोच ले प्रश्नों को
प्रश्नों के कपड़े
वैसे भी नहीं होते हैं
अपने आस पास से
उठे प्रश्नों पर आँख मूँद
और पूछ कहीं
आसमान के
नीले रंग पर
या सुबह की
सुर्ख धूप पर
या कुछ और
वो सब
जो भी तुझे
प्रश्न पूछना
सीखे  हुऐ
लोगो द्वारा
तुझसे पूछने
के लिये
सुझाया जाता है
आसपास के
ज्वलंत प्रश्नों से
जल जाने से अच्छा
किसी का सुझाया
किसी का बताया
प्रश्न पूछने से
साँप को मारना
और लाठी को टूटने
से बचाना भी सीखा
सिखाया जाता है
सबक भी मिलता है
बहुत दूर का
पूछा गया एक
छोटा सा प्रश्न
हमेशा अपने घर के
बड़े बड़े निरुत्तर
कर देने वाले प्रश्नो से
बचाना भी सिखाता है ।

 चित्र साभार: worldartsme.com