उलूक टाइम्स: पब्लिक
पब्लिक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पब्लिक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 25 मई 2013

कमल बनना है तो कीचड़ पहले बना !

पढे़ लिखे लोग
यूं ही बुद्धिजीवी
नहीं कहलाते हैं
कभी देखा
कुछ हो भी जाये
उनके आस पास
बहुत सारे होते हैं
उसपर भी
कहने को कोई
कुछ नहीं आते हैं
कहते भी हैं तो
कान में कहते हैं
अखबार में नहीं
वो जो भी
छपवाते हैं
आई एस बी एन
होने पर ही
छपवाते हैं
माना कि तू भी
गलती से कुछ
पढ़ लिख ले गया
पर किस ने
कह दिया तुझसे
कि तू भी उसी
कैटेगरी का हो गया
हर बात पर
कुछ ना कुछ
कहने को चला
यहां आता है
गन्दी बातें बस
दिमाग में रखता है
गन्दगी यहाँ फैलाता है
देखा कभी कोई
पौसिटिव सोच वाला
तेरे से बात भी करना
कुछ चाहता है
निगेटिव देखता है
निगेटिव सोचता है
निगेटिव ही
बस फैलाता है
अब किसी कीचड़
फैलाने वाले को
यूँ ही फालतू में नहीं
गलियाना चाहिये
ये भी देखना चाहिये
अखबार में वो
कमल की तरह
दिख रहा है
इतना तो समझ
ही जाना चाहिये
कीचड़ अगर
नहीं फैलाया जायेगा
तो कमल कैसे
एक उगाया जायेगा
समझा कर
ये बात शायद
तेरे पिताजी ने तुझे
नहीं बतायी होगी
कमल बनाने के लिये
कीचड़ बनाने की विधि
तुझे नहीं समझाई होगी
देखता नहीं
तेरे आसपास के
सारे सफेदपोश
पैजामा उठा
कर चलते हैं
कीचड़ के छीटे
उछलते हैं तो
बस उछलते हैं
किसी को
उस कीचड़ से
कोई परेशानी
नहीं होती है
सरकार को
पता होता है
वो तो कमल की
दीवानी होती है
इसलिये
अब भी समय है
कुछ तो सुधर जा
पब्लिक को बेवकूफ
मत समझा कर
अपना भी समय
ऎसे वैसे में ना गंवा
कुछ काम धाम
करने की सोच बना
समान सोच के लोग
जो फैला रहे हैं कीचड़
उनकी शरण में जा
कमल ना भी बन पाया
तो कोई बात नहीं
कमल बनाने की
तकनीक सीख कर
वैज्ञानिक सोच ही
पैदा कर ले जा
कुछ प्रोजेक्ट ही ले आ
कुछ कर रहा है
वो ही चल दे दिखा ।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

शर्म

शर्म होती है
या
कहते हैं शरम
फर्क पड़ता है
क्या
कर लेते हैं
शरम का ही
चलो भरम
शरम नहीं
आती है तो
बन जाते हैं
सभी होने ना
होने वाले काम
शरमाने वाले को
तो लगता है
हो गया हो
जैसे
खतरनाक जुखाम
वो जुखाम को देखे
या करवाले
अपने कोई काम
आपको आती है क्या
आती है तो अभी
भी सम्भल जाइये
कुछ तो सीख लीजिये
शरमाना तो
कम से कम
भूल ही जाइये
जिसने की शरम
उसके फूटे करम
आपसे कोई कभी
नहीं कह पायेगा
आपकी हो
जायेगी चाँदी
पांचों अंगुलियां
होंगी घी में                
और
सर कढ़ाई
में डूब जायेगा
जनज्वार वाले
लगे हैं एक
खबर पढ़वाने में
जोर लगा रहे हैं
डाक्टरों के शर्माने में
अरे छोड़ भी
दीजिये जनाब
किस किस
को शरमाना
इस जमाने
में सिखायेंगे
ज्याद किया
तो खुद ही
शरमाना
भूल जायेंगे
मास्टरों ने
छोड़ दिया
कब से
शरमाना
डाक्टर भी
अब नहीं
शरमा रहा
मिल गया ना
आप को
एक बहाना
चलिये बताइये
या
कुछ गिनवाइये
कितनो को
आ रही है
इस देश में
इस समय शरम
नहीं गिनवा
पा रहे तो
करवा ही लिजिये
चलिये चुनाव
शरम आती है
या नहीं आती है
अब तो पता ही
नहीं लग पाता
लोकतंत्र है
शरमाता या
अन्ना को ही
आनी चाहिये
कुछ तो शरम
ये शरम भी ना
अब बड़ी
अजीब ही
होने लगी है
जिसको आती है
उसको हर जगह
मार खिलवाती है
जिसको नहीं आती
उसके पीछे पता नहीं
क्यूं खामखां पब्लिक
झाडू़ ले के पड़ जाती है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com