उलूक टाइम्स: पड़ोसी
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शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

जी डी पी और पी पी पी में कितने पी बस गिने कितने हैं मगर किसी को ना बतायें



कुछ
चुटकुले

अगर
समझ में
ना भी आयें

खुल के
खिलखिला के

अगर
हँस
ना भी पायें

कोशिश
कर लें
थोड़ा सा

बिना
बात भी
कभी यूँ ही
मुस्कुरा
जायें 

किस लिये
समझनी
हर बात
अपने
आस पास की

कुछ
हट के
माहौल
भी

जरा जरा
मरा मरा
छोड़ कर

बनाने
को
कहीं चले जायें

कविता कहानी
गजल शेर के
मज़मून
भरे पड़े हैं

जब
फिजाँ में हर तरफ

किसलिये
बेकार में

उलझे हुऐ से
विषय
कबाड़ से
उठा उठा कर
ले आयें

मजबूत हैं
खम्बें
पुलों के
मान कर

उफनती
नदी में
उछलती
नावों में
अफीम ले के
थोड़ी सी

हो सके
तो
सो जायें

खबर
मान लें
बेकार सी
फिसली हुई
‘उलूक’
के
झोले के छेदों से

जी डी पी
पी पी पी
जैसी
अफवाहों को

सपने देखें
खूबसूरत
से
दिन के
चाँद और तारों के

 बॉक्स आफिस
में
हिट होगी
फिर से
फिलम
पड़ोसी के
घर में लगी आग
की
अगले पाँच सालों
में एक बार

जल जला
कर
हो गया होगा
राख

मान लें 

शोर कर
ढोल
और
नगाड़ों का
इतना

कि
पूछने का
रोग लगे
रोगी

किसी से

क्या हुआ
कैसे हुआ
और
कब हुआ

पूछ ही
ना पायें।
चित्र साभार: https://www.cleanpng.com

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

जिज्ञासाओं को शांत करने के लिये कुछ भी कर लिया जाता है

अब
सब की
अपनी अपनी
सोच

अपनी
तरह की होती है

एक
की आदत
एक तरह की

तो
दूसरे की
दूसरे तरह
की होती है

क्या
किया जाये
अगर
कोई तुमसे
रोज ही
रास्ते में
टकराता है

अपना होता है
दुआ सलाम
करता है
और
मुस्कुराता है

बस एक
छोटी सी
बात को
समझना

जरा
मुश्किल सा
हो जाता है

जब
तुम्हारे ही
बारे में

कुछ
प्रश्नों का
एक प्रश्नपत्र
बना कर

तुम्हारे
ही पड़ोसी से

सड़क पर
कहीं
पूछ्ना शुरू
हो जाता है

पड़ोसी
बेचारा
जब हल नहीं
ढूँढ पाता है

गूगल
करके भी
हार जाता है

तुम्हारे
अपनों के
प्रश्नो के

प्रश्न पत्र
को लेकर

तुमसे ही
हल
करवाने
के लिये

कुछ फूल
मिठाई लेकर
सुबह सुबह

तुम्हारे ही
घर पहुँच
जाता है ।

बुधवार, 4 जून 2014

पूँछ नहीं हिला रहा है नाराज नजर आ रहा है

मेरे
पालतू कुत्ते ने

मुझ से
कुछ कहा तो नहीं

कहेगा भी कैसे

कुत्ते कहाँ
कुछ कहते हैं

मुझे लग रहा है

बस यूं ही

कि शायद वो
बहुत नाराज है

वैसे
उसने कहीं
कुछ लिखा
भी नहीं है
इस बारे में

लिखेगा भी कैसे

कुत्तों का
फेसबुक एकाउंट
या ब्लाग
नहीं होते हैं

कुत्ते भौंकते
जरूर हैं

उसके
भौँकने में
वैसे कोई फर्क
तो नहीं है

पर मुझे
लग रहा है

कुछ अलग
तरीके से
भौँक रहा है

ये सब
मैं सोच रहा हूँ

कुत्ता नहीं
सोच रहा है

कुत्ते
सोचते भी हैं
या नहीं

ये मुझे पक्का
कहाँ पता है

ऐसा शायद

इस कारण
हो रहा है

पड़ोसी ने
कुत्ते से शायद
कुछ कहा है

जिस पर मैंने
ध्यान नहीं
दिया है

बस मुझे ही
लग रहा है

मालिक अपने
वफादार के लिये
कुछ नहीं
कर पा रहा है

अपने
दुश्मनो से
अपने को
बचाने के लिये

कुत्ते को
सामने मगर
ले आ रहा है

इसीलिये
कुत्ते को
शायद गुस्सा
आ जा रहा है

पर वो
ये सब भी
कहाँ 
बता रहा है ।

बुधवार, 27 मार्च 2013

एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया: होली है

होली
के दिन

बेटा
बाजार से
लौट कर
आ रहा था


मुस्कुराकर
अपनी बुआ
को बता
रहा था


पड़ोस के
एक
चाचा जी
को 
सड़क पर
हिलता डुलता
चलता देख
कर आ
रहा था


एक और 
पड़ोसी चाचा
उनको 
हेल्प
करने के लिये

हाथ बढ़ा रहा था

बुआ
परेशान सी
नजर आई
सोच कर
पूछने पर
उतर आई


उसकी
दुकान पर
क्या अच्छा
काम आजकल
हुऎ जा रहा है


 जो वो
रोज रोज
घूँट लगाने
लगा है
सुना जा
रहा है

बेटे ने
बुआ को
बताया
फिर फंडा
चाचा का
समझाया


बुआ जी
चाचा जी
के पिता जी
का जब से
हुआ है
स्वर्गवास


पेंशन
का पट्टा
उनका
बेवा
 बीबी
के तब से
आ गया
है हाथ


ए टी ऎम
कार्ड
खाते का
उनके
लेकिन
रहने
लगा है
चाचा
के पास

चाचा अब
रोज बस
एक पाव
लगाता है
पेंशन
पा रही
माँ के
पूछने पर
उसको भी
समझाता है


पारिवारिक
पेंशन
मिली है
तुझ बेवा
को
समझा
कर जरा


इस पैसे
से परिवार
के लोगों का
खयाल
रखा जाता है


तुझे क्यों
होती है
इसमें इतनी
परेशानी
अगर
एक पाव
मेरे हाथ भी
आ जाता है ?

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

वोट घुस गया

लम्बे इंतजार के बाद
हुवा आज मैं सपरिवार
वोट देने के लिये तैयार
बहुत खुश था जैसे
बनाने जा रहा था अपनी
केवल अपनी सरकार
वोटर आई डी कार्ड
लौकर से निकाला
बटुवे की चोर जेब
के अंदर डाला
जूते को पौलिश लगाया
सिर में तेल डाल
बालों को संवारा
छोटे बेटे को बताया
पड़ोसी को सुनाया
दरवाजा अंदर से
बंद जरूर कर लेना
वोट डालने जा रहा हूँ
यूँ गया और यूँ ही
वापस आ रहा हूँ
एक बूथ के बगल
से निकल रहा था
हर पार्टी का आदमी
बड़ी आशा भरी
निगाहो से हमे
तौल रहा था
हौले हौले अपने
बूथ पर पहुंच पाया
लिस्ट देखने वाले को
वोटर आई डी कार्ड
मैने हाथ में थमाया
पूरी लिस्ट जब छान
मारी तो अपना ही
नहीं पूरे परिवार के
नामों को गायब पाया
निराश हो कर
अगल बगल
के कुछ और बूथों में
चक्कर लगाया
मैं अपने परिवार के
सांंथ खो चुका था
किसी को कहीं
भी नहीं ढूंड पाया
वापस लौट के जब आ
रहा था चाल में वो
तेजी नहीं पा रहा था
मन ही मन चुनाव आयोग
को धन्यवाद देता जा रहा था
एक कविता अपनी भड़ास का
अंतिम हथियार कुड़ता हुवा
सोचता चला जा रहा था
आज शायद एक पाप
करने से ऊपर वाले
ने मुझे बचा लिया
इसीलिये मेरा
और मेरे परिवार
वालों के नाम को
वोटर लिस्ट से
ही हटा लिया ।