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गुरुवार, 14 नवंबर 2019

नये चाचा याद करो अंकल कह कर ही सही चिल्लाओ


गुलाब
लाल हो
शेरवानी हो
जरूरी नहीं बच्चो

समय देखो
चाचा
पुरानी सोच
का रिश्ता है

नये
रिश्ते खोजो

नये चाचा में
नया जोश होगा

पुराने
की कब्र में
बरबाद
ना करो फूल

फूल
मालायें बनाओ
नये रिश्तों पर
ले जाकर चढ़ाओ

चौदह
नवम्बर

एक
अंक है

वोट के
हिसाब से
रंक है

मत फैलाओ

देखो
सामने
कोई है

चाचा
ही नही
सब है

मतलब
रब है

रब के
गुणगान
गाओ

पूजो
कुछ चढ़ाओ

बच्चो
संगठित होकर
कोई संगठन बनाओ

चाचा के
कुछ तो
काम आओ

हर
जगह हैं
फैले हुऐ हैंं 
चाचा

पहचानो
अपने अपने
आस पास के
चाचाओं को

चरण
वंदन करो
चाचाओं के

मोक्ष
पा लेने
के लिये
कुछ बलिदान
कर ले जाओ

‘उलूक’
की आँख

रात की
रोशनी में

जगमगाते
दिये के
तेल में
डूबती
बाती की
तरह है

कभी
एक
दियासलाई
जलाओ

आग
लगाओ
कहीं भी

कुछ पके
कुछ नया बने

नया
चाचा तैयार है
पुकार कर बुलाओ

बच्चो
समय के
साथ बदलो

लाल
गुलाब
शेरवानी
भूल जाओ

नये चाचा
याद करो

अंकल
कह कर
ही सही
जोर से
चिल्लाओ

बाल
दिवस मनाओ।

चित्र साभार: https://khabar.ndtv.com/

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

ठंड रखना सीखना अच्छा होता है वो जो भी कहता है भले के लिये ही कह रहा होता है

अब सभी कुछ
हमेशा खराब और
गंदा नहीं होता है
सोच कर देखना
चाहिये फूल कमल
को देख कर इतना
तो कम से कम
गंदे कीचड़ में भी
मुस्कुराता हुआ
हमेशा ही जो
खिला होता है
सपने बना कर
बताने वाले को
अच्छी तरह से
ये पता होता है
सपना कौन से
पाँव में कैसे
किस तरीके से
और कब कहाँ
पर खड़ा होता है
करोड़ों की बात
सुनकर होता है
किसी के नीचे से
कहीं कुछ खिसक
सा रहा होता है
सौ हजार लाख का
कोई सपना अब
बाजार में कहीं भी
किसी भी दुकान
में नहीं होता है
खाली जमीन
दिखती है बंजर
पड़ी हुई सामने से
बंजर खाली दिमाग
के बस में बंजर
सोच लेना ही बड़ा
सोच लेना होता है
हो क्लास स्कूल
बाजार गली मैंदान
शहर हस्पताल
या कुछ और भी
स्मार्ट आज कहाँ
और किस पर
फिट हो रहा है
पूछना ही किसी
से नहीं होता है
सपने के ऊपर
से सपना
सपने के
आगे से सपना
सपने के पीछे
से सपना
कितना सपना सपना
हो रहा होता है
सपना सोचने सोचने
तक सामने से रख
कर एक और सपना
सपनों के कलाकार
ने इतना क्या
कम सीखा होता है
और ऐसे में
कहीं बीच से
करोड़ों के निकल
लेने का  इधर से
कहीं उधर को
सपनो सपनो में
किसी को आभास भी
नहीं कुछ होता है
‘उलूक’ आँखें फोड़
कर अपनी
गजब के ऐसे
सपनों को
सपनों में ही कहीं
खोद रहा होता है ।

चित्र साभार: www.clipartbagus.com

शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

आठ सौंवा पन्ना ‘उलूक’ का बालिकाओं को समर्पित आज उनके अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर



छोटे छोटे 
फूल 

रंग बिरंगे 

और 
कोमल 
भी 

बिखेरते हुऐ 

खुश्बू 
रंग 
और 
खुशियाँ 

चारों तरफ 

दिखता है 

हर
किसी को 

अपने
आस पास

एक
इंद्रधनुष 

पहुँचते
ही 

इस
दुनियाँ में 

किसे
अच्छा 
नहीं लगता 

कोमल 
अहसास 

अपने पास 

जिंदगी 
की
दौड़ 
शुरु होते 

बिना पैरों के 

‘ठुमुक
चलत 
राम चंद्र
बाजत 
पैजनियाँ’ 

फिर 

यही
अहसास 
बन जाते हैं 

सतरंगी धागे 

कलाई
के 
चारों ओर 

फिर 
एक और 

इंद्रधनुषी 
छटा 
बिखेरते हुऐ 

सृष्टि 
अधूरी होगी 

समझ में 
भी आता है 

अनजाने
से 
किसी पल में 

बचपन 
से
लेकर 
घर छोड़ते 

नमी के साथ 

और 

लौटते 

खुशी
के 
पलों में 

हमेशा 

बहुत 
जल्दी 

बढ़ी होती 
उँचाई के 
साथ

झिझक 
जरूरी नहीं रही 

बदलते 
समय के साथ 

मजबूत 
किया है 
इरादों को 

सिक्के
के 
दोनो पहलू 
भी
जरूरी हैं 

और 
उन दोनो 
का
बराबर 
चमकीला 

और 
मजबूत होना
भी 

आज 
का दिन 

रोज के 
दिन में 
बदले 

सभी दिन 
साल के
तुम्हारे 

यही
दुआ है 
अपने लिये 

क्योंकि 
खुद की
ही 

आने वाली 
पीढ़ियों
की 

सीढ़ियों का 

बहुत 
मजबूत होना 

बहुत 
जरूरी है । 

चित्र साभार: http://retroclipart.co

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

अभी अपनी अपनी बातें है बहुत हैं तेरी मेरी बातें कभी मिल आ वो भी करते हैं

कभी
मिलेगी फुरसत
इन सब बातों से
तो तेरी कुछ बात भी
लिख के कहीं रख लूंंगा

अभी तो
समेटने में
लगा हूँ
अपने आस पास
के फैल चुके रेगिस्तानी
कांंटो की फसल को

जो
जाने अन्जाने में
खु
द ही बोता
चला जा रहा हूँ

देख कर उगे हुऐ
बहुत ही खूबसूरत
फूल कैक्टस के
बहुत से रेगिस्तानों में
बिना पानी और
मिट्टी के भी

कई कई तो उगते हैं
कई कई सालों में
बस एक बार ही
और हमेशा इंतजार
रहता है उनके
किसी सुबह मुँह अंधेरे
खिल उठने का

चुभने वाली चीजें
वैसे तो वास्तु
के अनुसार
घर के सामने से
नहीं रखी जाती हैं

लेकिन
बैचेनियाँ
कोई बेचे
या ना बेचे
अपने लिये
अपने आप ही
खरीदी जाती हैं

धुंंऐ और
कोहरे में
वैसे भी
दूर से कोई
फर्क नजर
नहीं आता है

एक कहीं कुछ
जलने से बनता है
और दूसरा कहीं
कुछ बुझाने के बाद ही
राख के ऊपर से मडराता है

अब
कैसे कहे कोई
कि इतना कुछ है
उलझा हुआ
आस पास
एक दूसरे से

सुलझाने की
कौन सोचे
बस लिख कर
रख देने से ही
काम चल जाता है

तुझ पर है
और
बहुत कुछ है
लिखने के लिये

लिखूंंगा भी
किसी दिन

अभी तो
अपने बही खाते
के हिसाब किताब
को ही कुछ
लिख लिखा
कर रख लूँ कहीं
किसी पन्ने पर

तब तक
तेरे पास भी
बहुत मौके हैं
अपने हिसाब किताब
निबटाने के लिये

मिलते हैं
किसी दिन
कभी बैठ कर
अपने अपने
बही खातों
के साथ

कुछ
सवालों के हल
हर किताब में
एक जैसे ही
मिला करते हैं ।

चित्र साभार: http://www.clipartillustration.com

सोमवार, 15 सितंबर 2014

बात एक नहीं है अलग है वो इधर से उधर जाता है और ये उधर से इधर आता है

कितना कुछ ही नहीं
बहुत कुछ बहुत अच्छा
लिखा हुआ बहुत सी
जगहों पर नजर आता है
सोच में पढ़ जाती है
खुद की सोच ही
वैसा ही सब कुछ
मुझसे भी क्यों नहीं
लिखा जाता है
लिखना शुरु करो नहीं
कि दिन भर का देखा सुना
सामने से आ जाता है
दूरदर्शन रेडियो अखबार
में भी आता है बहुत कुछ
मगर हमेशा और ही
और कुछ आता है
उन सबकी होती है
अपनी अपनी सोच पर पकड़
फिसलती हुई सोच को
पकड़ कर जकड़ना भी
जिनको अच्छी तरह आता है
कोशिश हमेशा ही होती है
चलने की सीधे सीधे ही
पता ही नहीं चलता
कौन सा मोड़ सोच में
मोच ले आता है
कहीं भी किसी भी
पन्ने में वो सब
नहीं लिखा दिखता है
जो लगभग हर चेहरे के
पारदर्शी मुखौटे के
पीछे नजर आता है
लगने लगता है
ऐसे ही समय में
जैसे बस ‘उलूक’ ही
दिवास्वपनों का
खोमचा जानबूझ
कर लगाता है
अपनी अपनी
प्रायिकता होती है
होनी भी चाहिये
कोई खाने पीने और
कोई पीने खाने को
अच्छा बताता है
किसी को आदत
हो जाती है
नशा करने की
किसी पीने की
या खाने की चीज से
किसी को लिखने
लिखाने से ही
नशा हो जाता है
नशा होना ही
इस तरह का
कलम को कहाँ से
कहाँ बहका ले जाता है
फूल की सोचता है सोच में
मगर कलम तक आते आते
गाजर का हलुआ हो जाता है
समझ में आ ही गया होगा
उससे अच्छा कुछ मुझसे
कभी क्यों नहीं लिखा जाता है ।

चित्र साभार: http://wecort.com/

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

जिज्ञासाओं को शांत करने के लिये कुछ भी कर लिया जाता है

अब
सब की
अपनी अपनी
सोच

अपनी
तरह की होती है

एक
की आदत
एक तरह की

तो
दूसरे की
दूसरे तरह
की होती है

क्या
किया जाये
अगर
कोई तुमसे
रोज ही
रास्ते में
टकराता है

अपना होता है
दुआ सलाम
करता है
और
मुस्कुराता है

बस एक
छोटी सी
बात को
समझना

जरा
मुश्किल सा
हो जाता है

जब
तुम्हारे ही
बारे में

कुछ
प्रश्नों का
एक प्रश्नपत्र
बना कर

तुम्हारे
ही पड़ोसी से

सड़क पर
कहीं
पूछ्ना शुरू
हो जाता है

पड़ोसी
बेचारा
जब हल नहीं
ढूँढ पाता है

गूगल
करके भी
हार जाता है

तुम्हारे
अपनों के
प्रश्नो के

प्रश्न पत्र
को लेकर

तुमसे ही
हल
करवाने
के लिये

कुछ फूल
मिठाई लेकर
सुबह सुबह

तुम्हारे ही
घर पहुँच
जाता है ।

बुधवार, 18 जून 2014

पुरानी किताब का पन्ना सूखे हुऐ फूल से चिपक कर सो रहा था


वो गुलाब
पौंधे पर खिला हुआ नहीं था

पुरानी
एक 
किताब के
किसी फटे हुऐ अपने ही एक
पुराने पेज पर चिपका हुआ पड़ा था

खुश्बू वैसे भी
पुराने 
फूलों से आती है कुछ
कहीं भी किसी फूल वाले से नहीं सुना था

कुछ कुछ बेरंंगा कुछ दाग दाग
कुछ किताबी कीड़ोंं का नोचा खाया हुआ
बहुत कुछ
ऐसे ही 
कह दे रहा था

फूल के पीछे
कागज 
में कुछ भी
लिखा हुआ 
नहीं दिख रहा था 
ना जाने फिर भी
सब कुछ एक आइने में जैसा ही हो रहा था

बहुत सी
आड़ी तिरछी 
शक्लों से भरा पड़ा था

खुद को भी
पहचानना 
उन सब के बीच में कहीं
बहुत मुश्किल हो रहा था

कारवाँ चला था 
दिख भी रहा था कुछ धुंंधला सा 
रास्ते में ही कहीं बहुत शोर हो रहा था

बहुत कुछ था 
इतना कुछ कि पन्ना अपने ही बोझ से
जैसे
बहुत बोझिल हो रहा था

कहाँ से चलकर 
कहाँ पहुंंच गया था ‘उलूक’
बिना पंखों के धीरे धीरे

पुराने एक सूखे हुऐ
गुलाब के काँटो को चुभोने से भी
दर्द 
थोड़ा सा भी नहीं हो रहा था

कारवाँ भी पहुँचा होगा
कहीं और
किसी 
दूसरे पन्ने में किताब के

कहाँ तक पहुँचा
कहाँ
जा कर रुक गया
बस इतना ही पता नहीं हो रहा था ।

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

शनिवार, 3 मई 2014

सब पी रहे हों जिसको उसी के लिये तुझको जहर के ख्वाब आते हैं

रेगिस्तान की रेत के
बीच का कैक्टस
फूलोंं के बीज बेच रहा है

कैक्टस 
बहुत कम लोग पसंद करते हैं

कम से कम
वास्तु शास्त्री की बातों को
मानने वाले तो कतई नहीं

कुछ रखते हैं गमलों में
क्योंकि फैशन है रखने का

पर किंवदंतियों के भूत से भी
पीछा नहीं छुड़ा पाते हैं
गमले 
घर के पिछवाड़े रख कर आते हैं

कैक्टस के कांटे निकलने
का मौसम अभी नहीं है
आजकल उनमें फूल आते हैं

फूल के बीज बिक रहे हैं बेतहाशा भीड़ है

और भीड़ की
बस दो ही आँखें होती हैं
उनको कैक्टस से कोई मतलब नहीं होता है
उनके सपने में फूल ही फूल तो आते हैं

काँटो से लहूलुहान ऐसे लोग
भूखी बिल्ली की तरह होते हैं

जो बस दूध की फोटो देख कर ही तृप्त हो जाते हैं

इसी भूख को बेचना सिखाने वाले कैक्टस
उस मौसम में 
जब उनके काँटे गिर चुके होते हैं

और कुछ फूल
जो उनके बस फोड़े होते हैं 
सामने वाले को फूल जैसे ही नजर आते हैं

सारे फूलों को फूलों के बीज बेचना सिखाते हैं

फूल कैक्टस को महसूस नहीं करते हैं
उसके फूलों पर फिदा हो जाते हैं

और बेचना शुरु कर देते हैं कैक्टस के बीज

‘उलूक’
बहुत दूर तक देखना अच्छा नहीं है
कांटे तेरे दिमाग में भी हैं
जिनपर फूल कभी भी नहीं आते हैं

कैक्टस
इसी बात को बहुत सफाई के साथ
भुना ले जाते हैं

और यूँ ही खेल ही खेल में
सारे के सारे बीज बिक जाते हैं

देखना भर रह गया है
कितने बीजों से 
रक्तबीज फिर से उग कर आते हैं ।

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

अपनी अक्ल के हिसाब से ही तो कोई हिसाब किताब लगा पायेगा

सोचता हुआ
आ रहा था
शायद आज
कुछ अच्छा सा
लिखा जायेगा
क्या पता कहीं
कोई फूल सुंदर
एक दिख जायेगा
कोई तो आकर
भूली हुई एक
कोयल की याद
दिला जायेगा
मीठी कुहू कुहू से
कान में कुछ
नया सा रस
घुल के आयेगा
किसे पता था
किराये का चूहा
उसका फिर से
मकान की नींव
खोदता हुआ
सामने सामने
से दिख जायेगा
जंगली होता तो भी
समझ में आता
समझाने पर कुछ
तो समझ जायेगा
पालतू सिखाये हुऐ से
कौन क्या कुछ
कहाँ कह पायेगा
पढ़ाया लिखाया हुआ
इतनी आसानी से
कहाँ धुल पायेगा
बताया गया हो
जिसको बहुत
मजबूती से
खोदता खोदता
दुनियाँ के दूसरे
छोर पर वो
पहुँच जायेगा
उतना ही तो
सोच सकता है कोई
जितना उसकी
सोच के दायरे
में आ पायेगा
भीड़ की भेड़ को
गरडिये का कुत्ता
ही तो रास्ते पर
ले के आयेगा
‘उलूक’ नहीं तेरी
किस्मत में कहना
कुछ बहुत अच्छा
यहाँ तेरे घर को
खोदने वाला ही
तुझे तेरे घर के
गिरने के फायदे
गिनवायेगा
और अपना
खोदता हुआ
पता नहीं कहाँ से
कहाँ पहुँच जायेगा ।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

उधर ना जाने की कसम खाने से क्या हो वो जब इधर को ही अब आने में लगे हैं

जंगल के
सियार
तेंदुऐ
जब से
शहर की
तरफ
अपने पेट
की भूख
मिटाने
के लिये
भाग आने
लगे हैं

किसी
बहुत दूर
के शहर
के शेर का
मुखौटा लगा

मेरे शहर
के कुत्ते
दहाड़ने का
टेप बजाने
लगे हैं

सारे
बिना पूँछ
के कुत्ते
अब एक
ही जगह
पर खेलते
नजर आने
लगे हैं

पूँछ वाले
पूँछ वालों
के लिये ही
बस अब
पूँछ हिलाने
डुलाने लगे हैं

चलने लगे हैं
जब से कुछ
इस तरीके के
अजब गजब
से रिवाज

जरा सी बात
पर अपने ही
अपनों से दूरी
बनाने लगे हैं

कहाँ से चल
कर मिले थे
कई सालों
में कुछ
हम खयाल

कारवाँ बनने
से पहले ही
रास्ते बदल
बिखर
जाने लगे हैं

आँखो में आँखे
डाल कर बात
करने की
हिम्मत नहीं
पैदा कर सके
आज तक भी

चश्मे के ऊपर
एक और
चश्मा लगा
दिन ही नहीं
रात में तक
आने लगे हैं

अपने ही
घर को
आबाद
करने की
सोच पैदा
क्यों नहीं
कर पा
रहे हो
'उलूक'

कुछ आबाद
खुद की ही
बगिया के
फूलों को
रौँदने के
तरीके

अपनो को
ही सिखाने
लगे हैं ।

सोमवार, 24 सितंबर 2012

खरपतवार से प्यार

जंगल की सब्जियों
फल फूल को छोड़

घास फूस खरपतवार
के लिये थी जो होड़

उसपर शेर ने जैसे
ही विराम लगवाया

फालतू पैदावार
के सब ठेकों को

दूसरे
जंगल के
घोडों को
दिलवाने का
पक्का
भरोसा दिलवाया

लोमड़ी के
आह्वाहन पर
भेड़ बकरियों ने
सियारों के साथ
मिलकर आज
प्रदर्शन करवाया

परेशानी क्या है
पूछने पर
ऎसा कुछ
समझ में है आया

बकरियों ने
अब तक
घास के साथ
खरपतवार को
जबसे है उगाया

हर साल की बोली में
हजारों लाखों का
हेर फेर है करवाया

जिसका
हिसाब किताब
आज तक कभी भी
आडिट में नहीं आया

लम्बी चौड़ी
खरपतवार के बीच में
सियारों ने भी
बहुत से खरगोशों
को भी शिकार बनाया

जिसका पता
किसी को
कभी नहीं चल पाया

एक दो खरगोश
का हिस्सा
लोमड़ी के हाथ भी
हमेशा ही है आया

माना कि अब
खाली सब्जी ही
उगायी जायेगी

सबकी सेहत भी
वो बनायेगी

पर घास
खरपतवार की
ऊपर की कमाई
किसी के हाथ
नहीं आयेगी

सीधे सीधे
हवा में घुस जायेगी

इसपर नाराजगी
को है दर्ज कराया

बीस की भीड़ ने
एक आवाज से
सरकार को
है चेताया

सौ के नाम
एक पर्ची में
लिखकर

कल के
अखबार में
छपने के लिये
भी है भिजवाया ।

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

बाहर कर लिया /अब अंदर जायेंगे

खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे
अन्दर जा कर होगा क्या
ये अन्दर से ही बतायेंगे
अन्दर वाले उसके बाद
क्या बाहर फेंके जायेंगे
या बाहर से अन्दर घुसने
से वो रोके जायेंगे
सारी की सारी बातें
हम तुमको आज
अभी नहीं बतायेंगे
अन्दर भेजे तो जायेंगे
पर धक्के कौन लगायेंगे
सफेद टोपियों को अब
रंगने का कारोबार चलायेंगे
एक भाई से गेरूआ रंग
उसमें करवायेंगे
दूसरे भाई से हरा रंग
भरने का काम करायेंगे
चाचा जी से सफेद टोपी
पर तिरंगा बनवायेंगे
इनको अंदर जाने देंगे
हम उद्योग लगायेंगे
अपने अपने घर को
सब बाहर  वाले जायेंगे
घर में जाकर घरवालों
का ही तो हाथ बटायेंगे
कुछ फिर से अपनी
साईकिल चलायेंगे
कुछ जाकर हाथी की
पीठ पर चढ़ जायेंगे
फूल वाले फूल का
गुलदस्ता बनायेंगे
हाथ हिलाने वाले लोग
अब भी हाथ हिलायेंगे
खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे ।

शुक्रवार, 11 मई 2012

धैर्य मित्र धैर्य

आज प्रात:
उठने से ही

विचार
आ रहा था

श्रीमती जी पर
कुछ लिखने का
दिल चाह रहा था

सोच बैठा
पूरे दिन
इधर उधर
कहीं भी
नहीं देखूंगा

कुछ
अच्छा सा
उन पर लिख कर
शाम को दे दूंगा

घर से
विद्यालय तक
अच्छी बातें
सोचता रहा

कूड़ा
दिखा भी तो
उसमें बस
फूल ही
ढूंढता रहा

पर
कौए की
किस्मत मेंं
कहां
मोर का
पंख आता है

वैसे
लगा
भी ले
अगर तो
वह मोर नहीं
हो जाता है

कितना भी
सीधा देखने
की कोशिश करे

भैंगे को
किनारे में
हो रहा सब
नजर आ
ही जाता है

उधर
मेरा एक साथी
रोता हुआ सा
कहीं से
आ रहा था

एक
महिला साथी से
बुरी तरह
डांठ
उसने
अभी अभी
खायी है

सबको
आ कर के
बता रहा था

ऎसा
पता चला
कि
महिला को
महिला पर ही
गुस्सा आ रहा था

मेरे को तो
भाई जी पर
बहुत तरस
आ रहा था

इसी
उधेड़बुन में
घर वापस आया
तो श्रीमती जी 
मैने अपनी भुलायी

कलम
निकाली मगर
श्रीमती तो दूर दूर
तक कहीं भी
नजर नहीं आयी

दिमाग ने
बस एक
निरीह मित्र को
किसी से मार
खाते हुवे जैसी
छवि एक दिखाई

योजना
आज की
मैंने खटाई
में डुबायी

कोई बात नहीं
कुम्भ जो क्या है
फिर कभी मना लूंगा

अपनी ही
हैंं श्रीमती
उसपर
कविता एक
किसी और दिन
चलो बना लूंगा।

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

मौन की ताकत

कुछ
मौन रहे
कुछ रहे
चुप चुप

कुछ
लगे रहे
कोशिश में

लम्बे
अर्से तक
उनको
सुनने की
छुप छुप

पर
कहां
कैसे सुन पाते

कोई
मूड में
होता
सुनाने के
जो सुनाते

एक
लम्बे दौर
का आतंक
अत्याचार
भ्रष्टाचार

धीरे धीरे
चुपचाप
गुमसुम
बना देता है

हिलता
रहता मौन

अंदर से
सिमटते
सिमटते

अपने
को ठोस
बना देता है
मजबूत
बना देता है

ऎसे
मौन की
आवाज

कोई
ऎसे ही

कैसे
सुन सकता है

वो
जो ना
बोल सकता है

ना कुछ
कह सकता है

ऎसे
सारे मौन
व्यक्त
कर चुके हैं

अपने अपने
आक्रोश

बना चुके हैं
एक कोश

किसने
क्या कहा
किसने
क्या सुना
कोई नहीं
जान पायेगा

पर
हरेक
का मौन

एक होकर
अपनी बात

सबको
एक साथ
चिल्ला चिल्ला
के सुनायेगा

आतंकियों
भ्रष्टाचारियों
अत्याचारियों को

पता है
मौन की बात

अब ये
सारे लोग

खुद
आतंकित
होते चले जायेंगे

मौन
ने बोये हैं
जो बीज
इस बीच

प्रस्फुटित होंगे

बस
इंतजार है
कुछ और
दिनो का

धीरे धीरे
सारे मौन
खिलते
चले जायेंगे

किसका
कौन सा
मौन रहा होगा

कोई कैसे
जान पायेगा

जब
सब से
एक सा
एक साथ
प्रत्युत्तर पायेगा

खिलेगा
मौन का फूल

महकेगा

आतंक
अत्याचार
व्यभिचार
भ्रष्टाचार
की जमीन पर

ठीक
उसी कमल
की तरह

जिसे
कीचड़ में
भी खिलना
मंजूर होता है

मौन
मुखरित होगा

मौन
सुनेगा
मौन के गीत

मौन गायेगा
मौन मुस्कुरायेगा ।