उलूक टाइम्स: फैल
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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

बात की बात

बात पहले भी
निकलती थी
दूर तलक
भी जाती थी
बहुत समय
नहीं लगता था
पता नहीं कैसे
फैल जाती थी
साधन नहीं थे
आज के जैसे
बात तब भी
उछल जाती थी
आज भी बहुत
बात होती है
बात कभी तो
बाद में होती है
उससे पहले किसी
ना किसी के
पास होती है
कोई किसी से
नहीं पूछता है
अपने आप ही
आ जाती है
आज की बात में
वो बात पर नजर
नहीं  आती है
बात बडी़ बडी़
बातों के बीच में
कहीं खो जाती है
बहुत मुश्किल से
कोई बात का होना
बता पाता है
बात का ठिकाना
भी खोज लाता है
दबी हुई जबान से
बातों के बीच से
बात को निकाल
कर लाता है
उस बात की बात
लोग बस बनाते
ही चले जाते हैं
गाँधी जो क्या हैं 
कोई यहाँ जो
बात कहते कहते
देश को आजाद
कर ले जाते हैं
बात वैसे ही
कच्ची निकला
करती है अभी भी
लेकिन अब बात
को पहले लोग
पूरा पकाते हैं
मसाले नमक
मिर्च साथ में
मिलाते  हैं
जब बात के
होने का मतलब
निकल जाता है
बात बनाने वाला
खतरे को पार कर
अपने को बचा
ले जाता है
बात को तरीके से
सजाया जाता है
मौका देख कर
पूरा का पूरा
फैलाया जाता है ।

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

सोच दिखती नहीं फैल जाती है

चल रहा था
मुस्कुरा रहा था
हाथ की अंगुलियां
हिलाये जा रहा था
बड़बड़ा रहा था
उसके आस पास
जबकि कोई भी
दूर दूर तक कहीं
नजर नहीं आ रहा था
ये सब मैं उसके
सामने से देखता
हुआ आ रहा था
बगल से जैसे ही
वो निकला
मेरा दिमाग ऎसे चला
जैसे चलने वाली मशीन
का बटन किसी ने हो
तुरंत ही दबा दिया
मुस्कुरा रहा था
पक्का कोई अच्छी
खबर अभी अभी
सुन कर आ रहा था
हाथ हिला रहा था
पक्का क्या करने
जा रहा था
उसका प्लौट
अपने सामने से
देख पा रहा था
बड़बड़ा रहा था
पक्का शादी शुदा
होगा बता रहा था
जो कुछ बीबी से
कह नहीं पा रहा था
कह ले जा रहा था
अरे अरे देखिये
उसको तो जो भी
हुऎ जा रहा था
ये सब मैं काहे
सोच ले जा रहा था
अच्छा हुआ इस सब
के बीच मेरे अपने
सामने से कोई नहीं
दूर दूर तक आ रहा था।