उलूक टाइम्स: बंदा
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शुक्रवार, 30 मार्च 2012

देखता है क्या

कोई कुछ देखता है कोई कुछ देखता है
कोई कुछ भी कभी यहाँ नहीं देखता है।

तू जहर देखता है वो शहर देखता है

बैचेनी तुम्हारी कोई बेखबर देखता है।

कोई आता इधर है और उधर देखता है

कहता कुछ भी नहीं है अगर देखता है।

चमचा धीरे से आकर एक नजर देखता है

बताने को उसको एक खबर देखता है।

भटकना हो किस्मत तो कुवां देखता है

बंदा मासूम सा एक बस दुवा देखता है।

अपने सपनो को जाता वहाँ देखता है

उसके कदमों की आहट यहां देखता है।

सबको मालूम है कि वो क्या देखता है

हर कोई यहाँ नहीं एक खुदा देखता है।