उलूक टाइम्स: बचपन
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सोमवार, 27 अप्रैल 2015

बचपन का खिलौना भी कभी बड़ा और जवान होता है एक खिलाड़ी जानता है इस बात को उसे पता होता है


जब तक पहचान नहीं पाता है खिलौनों को
खेल लेता है किसी के भी खिलौने से
किसी के भी साथ कहीं भी किसी भी समय

समय के साथ ही आने शुरु होते हैं समझ में खिलौने और खेल भी
खेलना खेल को खिलौने के साथ होना शुरु होता है
तब आनंददायक और भी

कौन चाहता है खेलना वही खेल उसी खिलौने से 
पर किसी और के

ना खेल ही चाहता है बदलना
ना खिलौना ही ना ही नियम खेल के
इमानदारी के साथ ही

पर खेल होना होता है उसके ही खिलौने से 
खेलना होता है खेल को उसके साथ ही
तब खेल खेलने में उसे कोई एतराज नहीं होता है

खेल होता चला जाता है
उस समय तक जब तक खेल में
खिलौना होता है और उसी का होता है ।

चित्र साभार: johancaneel.blogspot.com

शनिवार, 9 अगस्त 2014

बचपन से चलकर यहाँ तक गिनती करते या नहीं भी करते पर पहुँच ही जाते

दिन के आसमान
में उड़ते हुऐ चील
कौओं कबूतरों के झुंड
और रात में
आकाश गंगा के
चारों ओर बिखरे
मोती जैसे तारों की
गिनती करते करते
एक दो तीन से
अस्सी नब्बे होते जाते
कहीं थोड़ा सा भी
ध्यान भटकते
ही गड़बड़ा जाते
गिनती भूलते भूलते
उसी समय लौट आते
उतनी ही उर्जा और
जोश से फिर से
किसी एक जगह से
गिनती करना
शुरु हो जाते
ऐसा एक दो दिन
की बात हो
ऐसा भी नहीं
रोज के पसंदीदा
खेल हो जाते
कोई थकान नहीं
कोई शिकन नहीं
कोई गिला नहीं
किसी से शिकवा नहीं
सारे ही अपने होते
और इसी होते
होते के बीच
झुंड बदल जाते
कब गिनतियाँ
आदमी और
भीड़ हो जाते
ना दिखते कहीं
तारे और चाँद
ना ही चील के
विशाल डैने
ही नजर आते
थकान ही थकान
मकान ही मकान
पेड़ पौँधे दूर दूर
तक नजर नहीं आते
गिला शिकवा
किसी से करे या ना करें
समझना चाह कर
भी नहीं समझ पाते
समझ में आना शुरु
होने लगता यात्रा का
बहुत दूर तक आ जाना
कारवाँ में कारवाँओं
के समाते समाते
होता ही है होता ही है
कोई बड़ी बात फिर
भी नहीं होती इस सब में
कम से कम अपनापन
और अपने अगर
इन सब में कहीं
नहीं खो जाते ।
  

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

क्या करे कोई अगर अच्छा देखने का भी बुरा नजरिया होता है

सबका शहर
सबके लिये
बहुत ही 
खास होता है

बहुत सी
खासियत
होती हैं
हर शहर की
जाना जाता है
पहचाना जाता है
देश ही नहीं
विदेश में भी
हर किसी के लिये
अपना शहर
उसकी नजर में
कुछ ना कुछ
विशेष होता है
सब के लिये
एक ही नहीं
कुछ अलग
भी होता है 
किसी का
बचपन होता है
किसी की
जवानी होती है
किसी का
बुढ़ापा होता है
कोई शहर
छोड़ भी
चुका होता है
पर उसकी
यादों में कुछ
जरूर होता है
मेरी यादों में
पागलों का एक
काफिला होता है
बचपन से आज
तक मैने शहर
की गलियों में
देखा होता है
बहुत ज्यादा मगर
अफसोस होता है
जब याद आता है
बचपन के जाने से
बुढ़ापे के आने  तक
बहुत कुछ बोलते
बहुत कुछ लिखते
बहुत सी जगहों पर
इसी शहर की
गलियों में बहुत से
पागलों को देखा है
बहुत कुछ
खो दिया होता है
जब खुद के
लिखे में उनका
लिखा हुआ
जैसा बहुत
कुछ होता है
मेरे शहर का
मिजाज तब
और होता था
आज कुछ
और होता है
पागल पहले
भी हुऐ है
लिखने और
बोलने वाले

आज भी होते हैं
बाकी हर शहर में
कुछ तो
अलग और

विषेश होता है
जो यहाँ होता है
उससे अलग
कहीं और भी
क्या पता
कुछ और
भी होता है

और बहुत ही
खास होता है ।

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

खिलौना सोच

कुछ लोग बडे़
तो हो जाते हैं
पर खिलौनों से
खेलने के अपने
बचपन के दिन
नहीं भूल पाते हैं
खिलौनों में चाभी
भर कर भालू
को नचाना
बार्बी डौल में
बैटरी डाल कर
बटन दबाना
आँखे मटकाती
गुड़िया देख कर
खुश हो जाना
उनकी सोच से
निकल ही
नहीं पाता है
सामने किसी के
आते ही उनको
अपना बचपन
याद आ जाता है
खिलौना प्रेम पुन:
एक बार और
जागृत हो जाता है
खिलौनों की तरह
करता रहे कोई
उनके आगे या पीछे
कहीं भी कभी भी
तब तक वो
दिखाते हैं ऎसा
जैसे उनको कुछ
मजा नहीं आता है
जरा सा खिलौनापन
को छोड़ कर कोई
अगर कुछ अलग
करना चाहता है
तुरंत उनको समझ
में आ जाता है
अब उनका खिलौना
उनके हाथ से
निकल जाता है
सोच कर कि अब
आगे तो नहीं
कोई उनसे कहीं
बढ़ जाता है
फटाफट वो कुछ
ऎसा काम ढूँढ कर
ले आते है
खिलौने तो क्या
अच्छे भले आदमी
जो नहीं कर पाते है
फिर तो जब
उनका खिलौना
आदमी वाला काम
नहीं कर पाता है
तो वो ऎसा
दिखाते है
जैसा कि
खिलौने तो
उनको बिल्कुल
भी पसंद
नहीं आते हैं ।

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

तितली उड़ तोता उड़ कौआ उड़ पेड़ उड़

तितली उड़ तोता उड़ कौआ उड़
कहते कहते बीच में 
पेड़ उड़ कह जाना

सामने वाले के पेड़ उड़ कहते ही 
तालियाँ बजाना

बेवकूफ बन गया 
पेड़ उड़ कह गया
सोच सोच के बहुत खुश हो जाना

ऎसे ही 
बचपन के खेल और तमाशों का
धीरे धीरे धुंधला पड़ते चले जाना

समय की बलिहारी
कोहरे का धीरे धीरे हटते चले जाना

गुणा भाग करते करते
उम्र निकाल ले जाना
पेड़ नहीं उड़ता है सबको समझाना

परीक्षा करवाना परीक्षाफल का आना

पेड़ उड़ कहने वालों का
बहुत ज्यादा अंको से पास हो जाना 

तितली तोते कौऎ उड़ कहने वालों का
ढेर हो जाना

लोक और उनके तंत्र का 
उदाहरण सहित समझ में आ जाना ।