उलूक टाइम्स: बटन
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बुधवार, 7 मई 2014

सच्चाई लिखने का ही बस कोई कायदा कानून नहीं होता है

दिल ने कहा गिन
अरे कुछ तो गिन
गिनती भूल गये
पता नहीं क्यों
इसी बार बस
दिन गिने
ही नहीं गये
बहुत देर में
पहुँचे आँखिरकार
आया बटन
दबाने का दिन
उसकी सोचो
उसे भी तो
चादर से ढके
गधों को
हाँकते हाँकते
हो गये हैं
कितने दिन
मान कर
चलना पड़ेगा
किसी ने किसी
गधे को नहीं
देखा होगा
आगे क्या
होने वाला है
पता नहीं किसी
को शायद
पता भी होगा
उसको देख कर
ही तसल्ली
कर रहा होगा
काफिला सही
जगह पर जाकर
पहुँच रहा होगा
गधे आश्वस्त होंगे
बहुत खुश होंगे
व्यस्त होंगे
मन ही मन
बेचैन होंगे
दावत के सपने
काले सफेद नहीं
सभी रंगीन होंगे
होता है होता है
ऐसा ही होता है
किसी को कहाँ
मतलब होता है
जब गधे के
आगे गधा और
गधे के पीछे भी
गधा होता है
गधे चल या
दौड़ रहे होते हैं
देखने सुनने वाले
भी गधे होते हैं
क्या करे बेचारा
उस ही के बारे में
हर कोई कुछ ना कुछ
सोच रहा होता है
मानना पड़ता है
जाँबाज होता है
गधे हैं पता
होने पर भी
खुशी खुशी
हाँक रहा होता है
अनगिनत गधों में
एक भी गधा
ऐसा नहीं होता है
जिसके गले में
कोई पट्टा या
रस्सी का फंदा
दिख रहा होता है
उसकी सोचो जरा
जो इतनो को
इतने समय से
एक साथ खींच
घसीट रहा होता है
गधों में से एक गधा
तब से अब तक
गधों की बात ही
सोच रहा होता है
गुब्बारों में हवा
भरने का भी
कोई सहूर होता है
ज्यादा भर गई
हवा को भी तो
कहीं ना कहीं से
निकलना ही होता है
आदमी का इस सब में
कोई कसूर नहीं होता है
जहाँ कुछ भी होना
मंजूरे खुदा के होने
से ही होना होता है
कुछ नहीं कर
सकता है कोई
उसके लिये
जिसकी किस्मत
में बस यही सब
लिखना लिखा
होता है
पढ़ने वाले के
लिये दुआऐं
ढेर सारी लिखने
के साथ साथ
'उलूक' हमेशा
बहुत सारी जरूर
माँग रहा होता है ।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

समझदार लोग़ मील के पत्थरों को हटाते हुऐ ही आगे जाते हैं

छोटी छोटी
दूरियों तक
साथ चले
कुछ लोग

कभी एक
लम्बे समय
के बाद
फिर कभी
दुबारा भी
नजर आ
जाते हैं

बहुत कुछ
बदल चुका
होता है

उनका
अन्दाज
उनकी चाल
गजब की
एक तेजी
के साथ

कहीं बहुत
दूर निकले
हुऐ खुद
अपने से ही
अजनबी
जैसे एक
हो जाते हैं

समय
सभी को
मौका देता है

लेकिन
सबके
बस में नहीं
होता है
उसे भुनाना
अपने लिये
अकेले
साथ लेकर
किसी ना
किसी का
सहारा
कूदते फाँदते
हवा हवा में
हवा जैसे ही
हो जाते हैं

सहारे
नहीं रखे
जाते हैं
हमेशा के
लिये
साथ में
कभी भी

मील के
पत्थर
बना बना
कर रास्ते
में ही कहीं
टिका दिये
जाते हैं

लौटते हैं
बहुत कम
लोग उसी
रास्ते से
जिस
रास्ते से
किसी दिन
बहुत पहले
चले जाते हैं

समझना
हर किसी
का आना
और
चले जाना
नहीं इतना
आसान
होता है

जहाँ
बहुत से
लोग
अपने साथ
नये रास्ते
हर बार
ही ले कर
चले आते हैं

कुछ नहीं
कर सकता
है “उलूक”
देख कर
किसी का
करना या
नहीं करना

जमाना जब
बदल चुका है
अपने रास्ते
खुद ही कई

उस जगह
जहाँ
कफन भी
सिले सिलाये
मिलने लगे हैं
और
जेब भी
दिखती हैं
उसमें
कई सारी
यहां तक
बटन तक
जिनमें अब
कई सारे
लगाये जाते हैं ।