उलूक टाइम्स: बबूल
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शनिवार, 26 सितंबर 2020

चिट्ठों के बीच बारह साल/ नवें महीने की चालीसवीं बकवास/ जरा बच के/ नजूल है/

 


याद करने की कोशिश है 
 फजूल है 

क्या लिखा कितना लिखा
लिखा लिखाया सारा सब है
बस है
ऊल जलूल है 

कवियों कथाकारों के बीच
घुस घुसा कर
करतब दिखाता रहा
एक जमूरा बिन मदारी 
ये सच है
कबूल है

कविता कहानियों की दौड़
होती रही है 
होती रहेगी हमेशा 
शामिल होने का निमंत्रण है
डर है इतना है
बबूल है

लिखने को गिनना गिनकर फ़िर लिखना 
एक आदत हो चली है
लिखना लिखाना अलग बात है
गिनना गिनाना जरूरी है
मकबूल है

लेखक लेखिका
यूँ ही नहीं लिखा करते 
कुछ भी कहीं भी कभी भी
हर कलम अलग है स्याही अलग है
पन्ना अलग है बिखरा हुआ है
कुछ उसूल है

लिखना उसी का लिखाना उसी का
गलफहमी कहें
कहें सब से बड़ी है
भूल है

‘उलूक’
पागल भी लिखे किसे रोकना है
बकवास करने के पीछे
कहीं छुपा है
रसूल है।

चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/

रविवार, 14 जून 2015

कोशिश कर घर में पहचान महानों में महान



एक खेत 
सौ दो सौ किसान 
किसी का हल किसी का बैल 
बबूल के बीज आम की दुकान 

जवानों में
बस 
वही जवान 
जिसके पास एक से निशान 

बंदूकें जंग 
खाई हुई 
उधार की गोलियाँ 
घोड़े दबाने के लिये अपने छोड़ 
सामने वाले कंधे को पहचान 

मुँह में
रामायण 
गीता बाईबिल और कुरान 
हाथ में गिलास बोतल में सामान 

अपने मुद्दे मुद्दे 
दूसरे के मुद्दे बे‌ईमान 
घर में लगे तो लगे आग पानी ले चल रेगिस्तान 

‘उलूक’
बंद रख 
नाक मुँह और कान 
अपनी अपनी ढपली अपने अपने गान 
जय जवान जय किसान ।

चित्र साभार: cybernag.in

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

हे राम !

राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी

दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है

बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है

घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं

कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं

फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं

बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं

आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं

दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया

अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है

बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है

जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में

जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है

दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।