उलूक टाइम्स: बारहवीं
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शनिवार, 21 जून 2014

कहानी का सच सुना ना या सच की कहानी बता ना

बहुत से बहुत सारे
खूबसूरत लोग
बहुत कायदे से
शराफत से
रहने वाले लोग
बहुत ही अच्छे लोग
जिनके चमकते जूते में
ही नजर आ जाता हो
अपना चेहरा भी
बहुत दूर से
कपड़ों में ना कोई
सिलवट ना कोई
दाग धूल और धब्बा
चेहरे में बस
मुस्कुराना और
केवल मुस्कुराना
कुछ नहीं कहना
बस सिर हिलाना
किसी को भी
इस दृश्य को
देखने से ही
अच्छा महसूस होना
शुरु हो जाना
एक नहीं एक
के साथ दूसरा
दूसरे के साथ तीसरा
तीसरे के साथ चौथे
का जुड़ते चले जाना
बहुत होता है
उसके आसपास
जिसको इन सब
सलीकों को
सीखने का कभी भी
ना मिला हो
कोई बहाना
लेकिन किसी को
नहीं नजर आ पाता है
खूबसूरती के साथ
 इन सब का
फाँसी की गाँठ
लगी हुई एक रस्सी
को कोट की ऊपर की
जेब में छिपाना
बस एक सिरा जिसका
बाहर की तरफ
थोड़ा सा दिखाना
रोज कहीं किसी का
तिल तिल
कर मर जाना
किसी भी जनाजे का
सड़क से निकल
कर नहीं जाना
मौत की कोई खबर
अखबार में ना आना
ना कोई आहट
ना कोई शोर
ना कोई अफसाना
मुस्कुराहटें
अपनी जगह पर
रस्सियाँ
अपनी जगह पर
कितनी बारहवीं
कितनी तेरहवीं का
यूँ ही हो जाना
जूते की चमक से
चेहरे की दमक का
बढ़ता चले जाना
‘उलूक’ तेरे बस का
कुछ नहीं था कभी भी
तू फिर किसी दिन
पूछ्ने के लिये
यहां चले आना
अभी मस्त है जमाना
बिना आवाज की
चीखों का बहुत जगह
बज रहा है गाना
सोच जरा सा
फाँसी की गाँठ
वाली रस्सी को
दिखाने से
किसी को कभी
जेल पड़ा है जाना ।