उलूक टाइम्स: बुद्बुदाना
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शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

बुखार कैसा भी हो निकलता ही है कुछ बाहर बुदबुदाने में

बस चार
दिन की है
बची बैचेनी

फिर बजा
लेना बाँसुरी
लगा कर आग
रोम को पूरे

सब कुछ
बदल
जायेगा जब
बनेगी राख
देख लेना
मिचमिचाती
सी अगर
बन्द भी होगी
तब भी आँख

धुआँ खाँसेगा
खुद बूढ़ा
होकर जले
जंगल का
बहेगी नाक
आपदा के
पानी की
बहुत जोरों से

सारा हरा भूरा
और सारा भूरा
हरा हो लेगा
यूँ ही बातों
बातों के बीच

घुस लेंगे सारे
दीमक छोड़
कर कुतरना
जीते हुऐ और
मरे हुऐ को
जैसे थे जहाँ थे
की स्थिति में

उगना शुरु
होंगे जंगल
के जंगल
लदने लगेंगे
फल फूल
पौंधों में पेड़
बनने से
ही पहले

दौड़ेंगे उल्टे
पाँव बंदर
सुअर
और बाघ
घर वापसी
के लिये
खुशी से

दीवाली
के दीये
खनखनायेंगे
पुराने पीतल
के बने घर के
भरे लबलबा
तेल ही तेल से

उधरते घरों
के आंगन
में रम्भायेंगी
भैसें गायें और
बकरियाँ

सूखे खुरदरे
उधरते पहाड़ों
के हाड़ों से
निकलते
सारे के सारे
नदी धारे
दिखेंगे
छलछलाते

सपने बेचने
निकले हैं अपने
खुद के
लोग कुछ
थोड़े से
खरीददार
सारे सब
लगे हैं
साथ में
अपने

अपने
हिसाब से
अपनी
किताबें
पढ़ कर
समझ कर
गणित
दो में दो
जोड़ कर
करने पाँच
सात या
और
ज्यादा
जितना
हो सके
जहाँ तक

चल तैयार
हो ले तू भी
‘उलूक’
लगाने
स्याही
कहीं
थोड़ी सी
अपने भी
गवाही देगें
सुना हैं
रंग नाखूनों के
आने वाले
दिनो में
उत्सवों में
जीत के
पहाड़ों की।

चित्र साभार: Freepik

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

बात करने का सलीका बातें करते करते ही आ पाता है

अपने
मतलब
की बातें
करने के
लिये ही
हर कोई
बात करने
के लिये
आता है

नहीं भी
करना चाहो
अगर बात
कोई अपनी
तरफ से
अपनी बात
को घुमा
फिरा कर
उसी तरह
की बातों
की तरफ
खींच तान
कर सारी
बातों का
रास्ता
बनाता है

सब को
आती है
होशियारी
अपने अपने
हिसाब की
दूसरे के
हिसाब के
घाटे के
बारे में
कौन जानना
चाहता है

पता रहता है
उबल रही है
कोई चाय
दिमाग के अंदर

पत्तियों को
छानने के
लिये छलनी
अपनी
अपने घर
से ही ले
आता है

खुदगर्ज
जितना
होता है बड़ा
खुद उतनी
ही बड़ी
बातों में उसे
सामने वाले
को उलझाना
आता है

उसकी
इसकी
बातों की
बातें ही
बस बातें
होती है
अपनी बात
करने में
बात ही
बात में
बातों से
कन्नी काट
जाता है

बातों ही
बातों में
बातों से
बातों को
खोदना भी
बात करने
वालों से
ही सीखा
जाता है

और
कोई ऐसा
भी होता
है कहीं
करता है
खुद की
बातें खुद
से ही
पर क्यों

‘उलूक’
देखता है
किसी के
बुदबुदाने
को बरसों
से अपने
सामने से
पर समझ ही
नहीं पाता है

खुद से
खुद की
बातें
करने वाला
उसे बात
ही नहीं
मानता है
कवि की
कविता
कहने पर
कुछ दाँत
दिखाता है।

चित्र साभार : http://galleryhip.com/kids-conversation-clipart.html