उलूक टाइम्स: बुहारना
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सोमवार, 16 जून 2014

किसी दिन बिना दवा दर्द को छुपाना भी जरूरी हो जाता है

नदी के बहते
पानी की तरह
बातों को लेने वाले
देखते जरूर हैं
पर बहने देते हैं
बातों को
बातों के सहारे
बातों की नाँव हो
या बातें किसी
तैरते हुऐ पत्ते
पर सवार हों
बातें आती हैं
और सामने से
गुजर जाती है
और वहीं पास में
खड़ा कोई उन
बातों में से बस
एक बात को
लेकर बवंडर
बना ले जाता है
कब होता है
कुछ होते होते
धुआँ धुआँ सा
धुआँ हो जाताहै
बस एक उसे
ही नजर आता है
बैचेनी एक होती है
पर चैन खोना
सबको नहीं आता है
उसी पर मौज
शुरु हो जाती है
किसी की और
कहीं पर किसी का
खून सूखना
शुरु हो जाता है
अब इसी को तो
दुनियाँ कहा जाता है
उँगलियाँ जब
मुड़कर जुड़ती हैं
मुट्ठी की मजबूती
का नमूना सामने
आ जाता है
पर सीधाई को
शहीद करने के बाद
ही इसे पाया जाता है
कौन इस बात
पर कभी जाता है
हर किसी के लिये
उसकी अपनी
प्रायिकताऐं
मजबूरी होती है
उसी के सहारे
वो अपना आशियाँना
बनाना चाहता है
कौन खम्बा बना
कौन फर्श
किस ने छत पे
निसार दिया खूँन
इस तरह से
कहाँ देखा जाता है
काम होना ही
बहुत जरूरी होता है
काम कभी कहीं
नहीं रुकता है
उसकी भी मजबूरी
कह लीजिये उसे
पूरा होना कम से
कम आता है
‘उलूक’ तुझे भी
कुछ ना कुछ
कूड़ा रोज लाकर
बिखेरना होता है यहाँ
बहुत जमा हो
जायेगा किसी दिन
फिकर कौन करता है
वहाँ जहाँ बुहारने वाला
कोई नहीं पाया जाता है ।