उलूक टाइम्स: बेरोजगार
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रविवार, 15 सितंबर 2019

काम है रोजगार है बेरोजगार मौज के लिये बेरोजगार है ना जाने कब बेवकूफों के समझ में आयेगा



कितने पन्ने 
और 
कब तलक 

आखिर कोई 

रद्दी में 
बेचने 
के 
लिये जायेगा

लिखते लिखते 
कुछ भी 
कहीं भी 

कभी 
किसी दिन 
कुछ तो 
सिखायेगा

शायद 
किसी दिन 
यूँ ही 
कभी कुछ 

ऐसा भी 
लिख 
लिया जायेगा

याद 
भी रहेगा 
क्या लिखा है 

और 
पूछने पर 
फिर से 

कह भी 
दिया जायेगा

रोज के 
तोड़ने 
मरोड़ने 
फिर 
जोड़ देने से 

कोई 
कुछ तो 
निजात पायेगा

घबराये 
से 
परेशान 
शब्दों को 

थोड़ी सी 
राहत ही सही 

कुछ 
दे पायेगा 

जिस 
दिन से 
छोड़ देगा 

देखना 
टूटते घर को 

और 
सुनना 

खण्डहर 
की 
खामोशियों को 

देखना 
उस दिन से 

एक 
खूबसूरत 
लिखा लिखाया 
चाँद 

घूँघट 
के 
नीचे से 
निखर 
कर आयेगा

अच्छा 
नहीं होता है 

खुद ही 
कर लेना 
फैसले 

लिखने लिखाने के 

रोज के 
देखे सुने 
पर 

कुछ नहीं 
लिखने वाले की 

नहीं लिखी 
किताबों 
को ही बस 

हर 
दुकान में 
बेचने 
का फरमान 

‘उलूक’ 
पढ़े लिखों का 
कोई खास 
अनपढ़ ही 

तेरे घर का 
ले कर के 
सामने से 
निकल 
के 
आयेगा।
चित्र साभार: https://myhrpartnerinc.com/

बुधवार, 5 मार्च 2014

जरूरी नहीं होती है हर बात की कब्र कहीं खुदी होना

बेरोजगार के दर्द की
दवा नहीं होती है
और रोजगारी में
बेरोजगार होने की
बात किसी से
कभी भी कहनी
नहीं होती है
बहुत तरह के होते हैं
क्या होते हैं
?
रहने दीजिये बेकार है
कुछ भी कहना
कुछ समझेंगे
कुछ नहीं समझेंगे
कुछ से तो कहनी
ही नहीं होती है
इस तरह की बातें कभी
उनके लिये कहने से
अच्छा होता है
कुछ भी नहीं कहना
इसलिये खाली पीली
क्यों बेकार का पंगा
किसी से इस तरह
का ले लेना
अच्छा है रोज की तरह
दस पाँच मिंनट
फाल्तू निकाल कर
बैठे ठाले की किताब का
एक नमूना ही
हल कर लेना
कुछ ऐसा लिख लेना
पड़े नहीं किसी के पल्ले
एक दिन आये देखने
दूसरे दिन से साफ
नजर आये रास्ता
ही बदल लेना
किसी का इस गली से
दुबारा नहीं आने की
तौबा ही कर लेना
वैसे भी अखबार
रेडियो टी वी से
ज्यादा खतरनाक
हो चुका है आज का
सोशियल मीडिया
कुछ लिखने दिखाने
का मतलब कब
निकल आये कुछ और
और मढ़ दिया जाये
कारण सिर पर
दंगों का हो लेना
अच्छा किया
नहीं बताया
पढ़े लिखों को
बन गया था नक्शा
बेलते समय रोटी आज
शाम के खाना
बनाने के समय
पाकिस्तान का
मैंने छुपाया ही छुपाया
हो सके तो तुम भी
किसी से इस बावत
कुछ भी कहीं भी
ना कह सको तो
नहीं कह देना ।