उलूक टाइम्स: बैंक
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बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

सपने लिखने के लिये नहीं देखने के लिये रखना

इतना सब
उट पटांग
लिखने से
अच्छा ये नहीं है
कि कुछ सपने
ही देख लो
कुछ सपने
ही लिख लो
क्या सपने भी
नहीं आते हैं अब
किसे क्या
बताया जाये
किसे क्या
समझाया जाये
सपने किसे
नहीं आते हैं
कहने को सभी
कोशिश करते हैं
बड़े सपने
देखने के लिये
उकसाते भी हैं
पर सपने भी तो
वही सब कुछ
दिखाते हैं जैसा
आस पास अपने
सब देख सुन कर
रोज सो जाते हैं
फिर भी कुछ
सपने अपने
होते ही हैं
किसी से भी
साझा नहीं
किये जाते हैं
रोज बनते हैं
एक नहीं कई
हो जाते हैं
जमा होते रहते हैं
जैसे बैंक के खाते
में चले जाते हैं
कुछ लोग याद
नहीं रखते हैं
कुछ बार बार
देखना चाहते हैं
जैसे एक पुराने
रद्दी अखबार के
ढेर में से कभी
पुराना एक
अखबार निकाल कर
एक पुरानी खबर
ढूँढना शुरु हो जाते हैं
मनमाफिक मिल
गया होता है
चले आते हैं
नहीं मिलता है अगर
अखबार के ढेर से
फिर उलझ जाते हैं
अच्छे होते हैं सपने
ढेर सारे सपनों के
ढेर से उलझना
एक निकालकर उसे
उलटना पलटना
फिर जहाँ से
उठाया गया हो
वहीं उसी जगह
एक तह किये गये
कपड़े की तरह
रख देना
फिर कभी किसी दिन
निकाल कर देख
लेने के लिये
बाकी करने को
बहुत कुछ होता है
करते चले जाना
कुछ इसका गिराना
कुछ उसका लुढ़काना
बस इस सब में
सपने कभी मत
लिख देना
गलती से भी
ऐसी बेवकूफी
भूल कर भी कभी
मत कर जाना
लिखना रोज
यहाँ भी आना | 

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

लिखने में अभी उतना कुछ नहीं जा रहा है

सभी के आसपास 
इतना कुछ होता है
जिसे वो अगर
लिखना चाहे तो
किताबें लिख सकता है
किसी ने नहीं कहा है
सब पर लिखना
जरूरी होता है
अब जो लिखता है
वो अपनी सोच
के अनुसार ही
तो लिखता है
ये भी जरूरी नहीं
जो जैसा दिखता है
वो वैसा ही लिखता है
दिखना तो ऊपर वाले
के हाथ में होता है
लिखना मगर अपनी
सोच के साथ होता है
अब कोई सोचे कुछ और
और लिखे कुछ और
इसमें कोई भी कुछ
नहीं कर सकता है
एक जमाना था
जो लिखा हुआ
सामने आता था
उससे आदमी की
शक्लो सूरत का भी
अन्दाज आ जाता था
अब भी बहुत कुछ
बहुतों के द्वारा
लिखा जा रहा है
पर उस सब को
पढ़कर के लिखने
वाले के बारे में
कुछ भी नहीं
कहा जा रहा है
अब क्या किया जाये
जब जमाना ही नहीं
पहचाना जा रहा है
एक गरीब होता है
अमीर बनना नहीं
बल्की अमीर जैसा
दिखना चाहता है
सड़क में चलने से
परहेज करता है
दो से लेकर चार
पहियों में चढ़ कर
आना जाना चाहता है
उधर बैंक उसको
उसके उधार के
ना लौटाने के कारण
उसके गवाहों को
तक जेल के अंदर
भिजवाना चाहता है
इसलिये अगर कुछ
लिखने के लिये
दिमाग में आ रहा है
तो उसको लिखकर
कहीं भी क्यों नहीं
चिपका रहा है
मान लिया अपने
इलाके में कोई भी
तुझे मुँह भी
नहीं लगा रहा है
दूसरी जगह तेरा लिखा
किसी के समझ में
कुछ नहीं आ रहा है
तो भी खाली परेशान
क्यों हुऎ जा रहा है
खैर मना अभी भी
कहने पर कोई लगाम
नहीं लगा रहा है
ऎसा भी समय
देख लेना जल्दी ही
आने जा रहा है
जब तू सुनेगा
अखबार के
मुख्यपृष्ठ में
ये समाचार
आ रहा है  
गांंधी अपनी
लिखी किताब
“सत्य के साथ 

किये गये प्रयोग “
के कारण मृ्त्योपरांत
एक सदी के लिये
कारावास की सजा
पाने जा रहा है ।

सोमवार, 25 जून 2012

कार ला दो एक उधार ला दो


सुनो जी 

सुनो जी 

एक कार 

अब तो
ले ही 
आते हैं

पैसा 
अपना 
किसी बैंक में 

पहले
फिक्स 
करवाते है 

उसके बाद 

किसी से 
कुछ उधार 
लेने की 

योजना 
एक 
बनाते हैं

बैंक से 
उधार 
लेने पर तो 

ब्याज 
सिर चढ़ता 
चला जायेगा

किसी 
पड़ोसी 
या दोस्त
को फसाने से 

काम 
बहुत आसान 
हो जायेगा

कुछ लम्बा 
समय भी 
मिल जायेगा 

और 
खाली मूलधन 
लौटाने से भी 

काम
हमारा चल 
ही जायेगा

आज से ही 
रेकी करना
आप शुरू 
कर डालिये

पहले 

पैसे वाले 
जो पैदल 
चला करते हैं

उन पर 
नजर डालिये

ऎसे लोग 
बड़ी किफायत
के साथ 
चला करते हैं

पैसा बर्बाद 
बिल्कुल नहीं
कभी करते हैं 

बस 
जरूरत 
की चीजें 
ही खरीदा 
करते हैं

छोटे 
समय में 
इन लोगों 
के पास 

अच्छी
पूंजी जमा 
हो जाती है

जो किसी 
के भी कहीं
काम में नहीं 
आ पाती है

इन 
लोगों को 
अपने 
पैसे को 

कहीं 
लगाना 
आप 
सिखलाइये

जमाना 
कहाँ से कहाँ
पहुँच गया है 

इनको 
आईना 
दिखलाइये

जीने चढ़ 
उतर कर

ये 
इधर 
उधर 
पैदल 
जाते रहें 
कहीं भी

हमें 
मतलब नहीं

बस 
हमारे ऊपर 
थोड़ा सा 
तरस 
ये खा सकें 

इसके लिये
इनके सामने 
गिड़गिड़ाने में 

आप 
बिल्कुल 
भी ना 
शर्माइये

सफाई 
कर्मचारी तक
आजकल 

झाडू़
लेकर
कार पर 
आने लगे हैं

हमें भी 
एक कार 
दिलवाकर 

इज्जत 
हमारी 

नीलाम 

सरेआम 
होने से 
बचाइये।

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

भारतीय ..... बैंक देश का सबसे बड़ा बैंक ।

छुट्टी लो
बैंक हो आओ
बचे हुवे काम
निपटाओ

छोटे बैंक में
जा कर आओ
कोई डिपोसिट
मत दे आओ

चाय पियो
मिठाई भी खाओ
आते समय
कैलेण्डर ले जाओ

देश के
सबसे बड़े
बैंक में जाओ
लम्बी लाईन में
खड़े हो जाओ
आधा घंटा
दाढ़ी खुजलाओ

नम्बर आये
तो घबराओ
कुर्सी सामने की
खाली पाओ

इधर उधर
नजर दौड़ाओ
साहब जी
बतियाते पाओ
किस्मत अच्छी
धन्य हो जाओ
साहब जी
काउंटर पर पाओ

पासबुक अपनी
आगे बढ़ाओ
दो बड़ी आँखे
घूरते पाओ
अपना पैसा
दे तो जाओ
भीख माँगने तो
मत आओ

प्रिंटर की
शक्ल पर मत जाओ
पासबुक फंसे
मत घबराओ
वापस लेलो
डाँठ भी खाओ
फिर करवाना
सुन ले जाओ
लौट लो बुद्धू
घर को जाओ।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

खरीददार


रद्दी बेच डाल लोहा लक्कड़ बेच डाल
शीशी बोतल बेच डाल 
पुराना कपड़ा निकाल नये बर्तन में बदल डाल

बैंक से उधार निकाल
जो जरूरत नहीं उसे ही खरीद डाल
होना जरूरी है जेब में माल

बाजार को घर बुला डाल
माल नहीं है परेशानी कोई मत पाल 
सब बिकाउ है जमीर ही बेच डाल 

बस एक मेरी परेशानी का तोड़ निकाल 
बैचेनी है बेचनी कोई तो खरीददार ढूँढ निकाल।

चित्र साभार: Active India