उलूक टाइम्स: बोतल
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रविवार, 13 दिसंबर 2020

चैन लिखना बेचैनी होते हुऐ किसलिये सोचना क्या रखी है और कहाँ रखी है

सारे बेचैनो ने
लिख दिये हैं चैन
दरो दीवार छोड़िये सड़क मैदानों तक में 

लिखे को पढ़िये पन्ने दर पन्ने
किसलिये  ढूंढनी है 
कलम किस की है और कहाँ रखी है 

कुछ कहां हो रहा है
किसलिये बैचेन है
चैन ढूंढ और जमा कर पैमाने तक में 

लिखते चले जा
खाली गिलास खाली बोतल
किसने देखनी है किसकी है और कहाँ रखी है 

चैन और बेचैनी
रिश्ता बहुत पुराना है
खोज ना जा कर घर से लेकर मैखाने तक में 

मिलेगा जरूर
कुछ राख कुछ धुआँ
कुछ टुकड़े बचे बीड़ी के भी
कौन लिखता है हिसाब बही कहाँ रखी है 

बेचैनी  लिखने में भी दिख जाता है चैन
चैन से नहीं लिखा कर बैचनी यूँ ही खदानों तक में 

खोदना तुम को आता है
किसे मालूम है जरूरी है कुदालें भी किसे पता है कहाँ रखी हैं 

‘उलूक’ जानता है
चैन है ही नहीं कहीं सारे 
बेचैन हैं बताते नहीं हैं 

लिखा करना जरूरी है चैन
अपने लिये ना सही
बेचैन के लिये सही बेचैनी है पता है कहाँ रखी है।

चित्र साभार: https://webstockreview.net/

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

रोज ही पढ़ने आता है साहिब नापागल लिखा पागल ‘उलूक’ का समझ में नहीं आता है कहता फिरता है किसी से कुछ पूछ क्यों नहीं लेता होगा

कपड़े सोच के उतार देने के बाद 
दौड़ने वाले की सोच में 
केवल और केवल यही होता होगा

अब इसके बाद कौन क्या कर लेगा 
इससे ज्यादा सोच में उसके 
होना भी नहीं होता होगा

कपड़े सोच के उतरे होते हैं कौन देखता है 
ना सोच पाता है ऐसा भी जलवा 
पहने हुऐ कपड़ों का होता होगा

कोशिश जारी रखता है उतारने की 
किसी का भी कुछ भी 
नहीं सोचता है 
खुदा भी ऊपर से कुछ तो देखता होगा

लगा रह खींचने में कपड़े रूह के 
अपने अपनों के भी 
कोई शक नहीं करता होगा कि खींचता होगा

आदत पड़ गयी हो शराब पीने की जिसे 
दिये के तेल की बोतल को देख कर 
उसी पर रीझता होगा 

आईना हो जाता है किसी के घर के हमाम का 
किसी का लिखा लिखाया 
क्या लिख दिया 
शर्मा कर थोड़ा सा तो कभी सोचता होगा

कहने को कहता फिर रहा होता है इस सब के बाद
 इक पढ़ा लिखा 
ये आदमी है या जानवर पता नहीं 

फालतू में क्या ऊल जलूल 
क्यों हर समय
कुछ ना कुछ लिखता दीखता होगा 

पागलों की भीड़ में किसी 
एक पागल के इशारे पर 
कपड़े उतार देने का खेल जमाने से चल रहा होगा 

कपड़े समझ में आना उतारना समझ में आना 
खेल समझ मे आने का खेल समझाने से चल रहा होगा

किसी भी शरीफ को शराफत के अलावा 
किसलिये क्यों देखना सुनना 

अपनी अपनी आँखें सबकी 
अपना अपना सब को अपने हिसाब का दीखता होगा

नंगे ‘उलूक’ के देखने को लिखा देख कर 
कुछ भी कहो 

टाई सूट पहन कर निकलते समय 
आईने के सामने साहिब जरा सा तो चीखता होगा।


चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

अचानक से सूरज रात को निकल लेता है फिर चाँद का सुबह सवेरे से आना जाना शुरु हो जाता है


जब भी
कभी
सैलाब आता है 

लिखना
भी 
चाहो
अगर कुछ

नहीं
लिखा जाता है 

लहरों
के ऊपर 
से
उठती हैं लहरें 
सूखी हुई सी कई

बस सोचना सारा
पानी पानी सा 
हो जाता है 

इसकी
बात से 
उठती है जरा 
सोच एक नयी 

उसकी याद 
आते ही सब  
पुराना पुराना 
सा हो जाता है 

अचानक
नींद से 
उठी दिखती है 

सालों से सोई 
हुई कहीं की
एक भीड़ 

फिर से
तमाशा 
कठपुतलियों का 

जल्दी
ही कहीं 
होने का आभास 
आना शुरू
हो जाता है 

जंक
लगता नहीं है 
धागों में
पुराने 
से पुराने
कभी भी 

उलझी हुई
गाँठों 
को सुलझाने में 
मजा लेने वालों का
मजा दिखाना 
शुरु हो जाता है  

पुरानी शराबें 
खुद ही चल देती हैं 
नयी बोतल के अन्दर 

कभी
इस तरह भी 
‘उलूक’ 

शराबों के
मजमें 
लगे हुऐ

जब कभी 
एक
लम्बा जमाना 
सा हो जाता है ।

चित्र साभार: recipevintage.blogspot.com

बुधवार, 8 मार्च 2017

गीता में कही गयी हैं बातें वही तो हो रही हैं नजर आ रहा है मत कहना ‘उलूक’ पगला रहा है


सीधी बोतल
उल्टी कर
खाली करना
फिर खाली
बोतल में
फूँक मार कर
कुछ भरना


रोज की
आदत हो
गयी है
देखो तो
खाली बोतलें
ही बोतलें
चारों ओर
हो गयी हैं

कुछ बोतलें
सीधी पड़ी
हुई हैं
कुछ उल्टी
सीधी हो
गयी हैं

बहुत कुछ
उल्टा सीधा
हुआ जा
रहा है
बहुत कुछ
सीधा उल्टा
किया जा
रहा है

पूछना
मना है
इस लिये
पूछा ही नहीं
जा रहा है

जो कुछ भी
हो रहा है
स्वत: हो
रहा है
होता चला
जा रहा है

जरूरत ही
नहीं है
किसी को
कुछ
पूछने की

कोई पूछने भी
नहीं आ रहा है

वो उसके लिये
लगा है उधर
गाने बजाने में

इसको इसके
लिये इधर
खुजलाने में
मजा आ रहा है

गधों की दौड़
हो गयी है
सुनाई दे रही है

खबर बहुत
दिनों से
हवा हवा
में है
और
होली भी
आ रही है

गधों में सबसे
अच्छा गधा भी
जल्दी ही
गधों के लिये
भेजा जा रहा है

‘उलूक’
तूने पेड़
पर ही
रहना है
रात गये ही
सुबह की
बात को
कहना है

तुझे
किस बात
का मजा
आ रहा है

खेलता रह
खाली
बोतलों से

गधे
का आना
फिर गधे
का जाना

कृष्ण जी
तक बता
गये हैं
गीता में

गधों के
बीच में
चल रही
उनकी
अपनी
बातें हैं

बोतलों में
फूँकने वाला
क्या फूँक
रहा है
जल्दी ही
होली
से पहले
सबके
सामने से
आ रहा है

किसलिये
छटपटा
रहा है ?

चित्र साभार: Dreamstime.com

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

खरीददार


रद्दी बेच डाल लोहा लक्कड़ बेच डाल
शीशी बोतल बेच डाल 
पुराना कपड़ा निकाल नये बर्तन में बदल डाल

बैंक से उधार निकाल
जो जरूरत नहीं उसे ही खरीद डाल
होना जरूरी है जेब में माल

बाजार को घर बुला डाल
माल नहीं है परेशानी कोई मत पाल 
सब बिकाउ है जमीर ही बेच डाल 

बस एक मेरी परेशानी का तोड़ निकाल 
बैचेनी है बेचनी कोई तो खरीददार ढूँढ निकाल।

चित्र साभार: Active India