उलूक टाइम्स: भविष्य
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रविवार, 17 नवंबर 2019

वाकया है घर का है आज का है और अभी का है होना बस उसी के हिसाब का है पूछ्ना नहीं है कि होना क्या है


खुले
दरवाजे पर

लात
मारते
ललकारते

गुस्से
से भरे
बच्चों को
पता है

उनको
जाना कहाँ हैं

फुँफकारते
हुऐ

गाली
देने के बाद

पुलिस
वाले से
मुस्कुराते हुऐ

कुछ
साँस लेने
का सा
इशारा

उनका
अपना सा है

समय
 के साथ
दिशायें
पकड़ते हुऐ

भविष्य
के सिपाही
जानते हैं

अपना भविष्य

ये
नहीं करेंगे

तो
उनके लिये

फिर
बचा क्या है

पढ़ना पढ़ाना
परीक्षा दे लेना

एक
अंकपत्र

गलतियों
से भरा

हाथ में
होने से
होना क्या है

ना खायेंगे
ना खाने देंगे

से ही

ना पढ़ेगे
ना पढ़ने देंगे

प्रस्फुटित
हुआ है

समझा क्या है

पढ़ाने लिखाने
वाले
का
रास्ता भी

किताबों
कापियों से
हटकर

देश
की
बागडोर में

चिपट
लेने के
सपने में
नशा

किसी
नशे से
कम कहाँ है

कश्मीर
जरूरी है

पाकिस्तान
भी
चाहिये

जे एन यू
बनायेंगे

अब
कहना
छोड़ दियों
का
रास्ता भी

अब
बदला बदला
सा है

गफलत
में
जी रहें
कुछ शरीफ

नंगों से
घिरे हुऐ

नंगे
हो जाने के
मनसूबे लिये हुऐ

सोच रहे है

जब
कुछ
पहना ही
नहीं है
तो

गिरोह में
शामिल
हो
लेने के लिये

फिर
खोलना
क्या है

 ‘उलूक’

‘पाश’
के
सपनो
का
मर जाने
को
मर जाना
कहने से
भी

सपने

जरा भी
नहीं
देखने वालों
का
होना क्या है ?


बुधवार, 27 जून 2018

आओ भूत खोद कर लायें भविष्य की बात आये उससे पहले उसकी कब्र वर्तमान में ही बनाकर मंगलगीत मिलकर गायें

छोड़ें
शराफतें
करें
शरारतें
कुछ
खुराफातें

अपनी
नहीं भी हों
कोई बात नहीं

पर गिनें

सामने वाले की
बड़ी या छोटी
जो भी दिख जाये
सामने से

वो वाली आतें

रोकें
लटक कर
आगे बढ़ रही
घड़ी की सूईयों पर

समय
को 
खींचें
पीछे ले जायें

बायीं नाक से
खींच कर हवा
आहिस्ता
दायीं नाक से
बाहर का रास्ता
बना कर दिखायें
उल्टा पीछे को
चलने का
रास्ता सिखायेंं

बहुत
जरूरी है
समय को भी
सीख लेना
इस जमाने में
करना प्राणायाम

उसके भी
निकाले
जा सकते हैं
कभी भी
कैसे भी
कहीं भी
प्राण

लिखाकर
थाने में

चोर रहा था
बेशरम

आने वाले
समय के
पेड़ों से
समय से
पहले ही
पके हुऐ
लाल पीले
हरे आम

पीछे चलें
उल्टे पैरों से
मुँह आगे कर

कहीं भी
जाकर गिनें
गिरे हुऐ मरे हुऐ
बटेर और तीतर
शिकारी को
बिल्कुल भी
नहीं पकड़ना
है ठानकर

गिनती बढ़ायें
सौ के दस
हजार दिखायें

उस
समय के चित्र
इस समय
के अखबार
में छपवायें
ढोल नगाड़े
बजवायें

तीतर बटेरों
की आत्मायें
आकर
बता गयी हैं
शिकारी
के नाम पते

हरे पेड़ों के
झड़ गये
पत्तों पत्तों
पर लिखवा
लिखवा
कर बटवायें
मुनादी करवायें

पिछ्ली पीढ़ी
के भूत पिशाचों
को फाँसी की
सजा दिलवायें

आओ
‘उलूक’
संकल्प करें

प्राणवान
कुछ भी
समझ
में आये
उसका श्राद्ध
गया जाकर
प्राण
निकलवाने
से पहले
करवाने
का आदेश
करवायें

आओ
भूत खोद
कर लायें
भविष्य की
बात आये
उससे पहले
उसकी कब्र
वर्तमान में
ही बनाकर
मंगलगीत
मिलकर गायें।

चित्र साभार: https://www.fotosearch.com/

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश



इधर
कुछ 
पढ़े लिखे कुछ अनपढ़
एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुऐ

एक सरकारी 
कागज हाथ में
कुछ जवान कुछ बूढ़े
किसी को कुछ पता नहीं
किसी से कोई कुछ पूछता नहीं

भीड़
जैसे भेड़ 
और बकरियों का एक रेहड़
कुछ लैप टौप तेज रोशनी फोटोग्राफी
अंगुलियों और अंगूठे के निशान
सरकार बनाने वालों को मिलती एक खुद की पहचान
एक कागज का टुकड़ा 'आधार' का अभियान

उसी भीड़ का अभिन्न 
हिस्सा 'उलूक'
गोते लगाती हुई उसकी अपनी पहचान
डूबने से अपने को बचाती हुई

दूसरी तरफ
शहर की सड़कों पर बजते ढोल और नगाड़े
हरे पीले गेरुए रंग में बटा हुआ देश का भविष्य

थम्स अप लिमका 
औरेंज जूस 
प्लास्टिक की खाली बोतलें 
सड़क पर बिखरे
खाली 
यूज एण्ड थ्रो गिलास 
हजारों पैंप्लेट्स

नाच और नारे
परफ्यूम से ढकी सी आती एल्कोहोल की महक
लड़के और लड़कियां
कहीं खिसियाता हुआ
लिंगदोह

फिर कहीं 'उलूक'
बचते बचाते अपनी पहचान को
निकलता हुआ दूसरी भीड़ के बीच से

और
तीसरी तरफ 
प्रेस में छपते हुए
एक आदमी के पोस्टर

जो कल 
सारी देश की दीवार पर होंगे

और
यही भीड़ पढ़ रही होगी
दीवार पर लिखे हुऐ
देश के भविष्य को
जिसे इसे ही तय करना है ।

चित्र साभार: https://www.pikpng.com/

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ज्योतिष हो गया अखबार

जन्म पत्री बाँचते हैं
बहुत ही ज्ञानी हैं
पंडित जी का
नहीं कोई सानी है
हर साल आते हैं
मेरे घर पर दो बार
माँगते हैं जन्म पत्री
सबकी हर बार
बताते हैं कुछ भूत
और कुछ भविष्य
वैसे का वैसा ही
जैसा बता गये थे
पिछली बार
आये कल भी
उसी तरह इस बार
पोथी निकाल कर
बैठे महानुभाव
शुरू किया बाँचना
हमेशा की तरह
नक्षत्रों को
सुनाने लगे
वही पुरानी रामायण
सुनते ही पुरानी कथा
जब नहीं रहा गया
पंडित जी से मैने
तब कह ही दिया
गुरू कुछ नई बात भी
कभी कभी बताया करो
जन्मपत्री से भी अगर
कुछ खोद नहीं
पा रहे हो तो
कम से से कम
अखबार तो पढ़ कर
के आया करो
आजकल तो जो
होना है आगे वो
पहले अखबार में
ही आता है
उसके बाद ही
होना है जो तभी
तो हो पाता है
मजे की बात
इसमें ये है
कि  ग्रह नक्षत्र
को भी पता नहीं
चल पाता है
कि अखबार
वालों को
ये सब कौन जा
के बताता है
इसीलिये तो
जो वाकई में
हो रहा है वो
अखबार में
कम ही
जगह पाता है
अखबार से
बढ़िया जन्मपत्री
पंडित अब तू भी
नहीं बाँच पाता है ।