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रविवार, 8 सितंबर 2019

नेहरू के भूत ने ही पक्का प्रज्ञान को चाँद पर गिराया है



भारत एक खोज

एक
बेवकूफ था

पता नहीं
क्या खोज पाया

क्या खोया
क्या पाया

चन्द्रयान
से भेजा गया
एक पार्सल

जरूर वही होगा

उसी
ने होगा
गिराया

परिपक्व
हो चुके हैं हम
समझते हैं
समझ होनी
जरूरी है

आस पास
बहुत कुछ
होता है
बताना
किसलिये
जरूरी है

मदारी
ने ध्यान
भटकाया है

उसी
भारत
एक खोज
वाले के
भूत ने
प्रज्ञान को
लुढ़काया है

रोना
छाती पीटना
गले लगाना
पीठ थपथपाना
भी स्वाभाविक था
समझ में आया है

चन्द्रयान
मंगलयान
फिर कभी
उड़ लेगा

मदारी
को मौका
फिर फिर
मिलेगा

जमूरे
गजब हैं
पता नहीं है
उनके चरण
किधर हैंं

तीव्र इच्छा है
चूमने हैं छूने हैं

ऐसा समय
भारत
का आयेगा
सपने में
कभी भी
नहीं आया है 

‘उलूक’
किसी
मंदिर में जा
पण्डित से
जॉप करवा

कुल्हाड़ी पर
पैर मारने
का आदेश
किसने दिया है
और
क्यों कर के आया है

‘ब्लॉग सेतू’
रैंक ने
नाराज
हो कर
फिर से
ऊपर की
ओर हो
मुँह
चिढ़ाया है ?

चित्र साभार: https://pixabay.com/

बुधवार, 27 जून 2018

आओ भूत खोद कर लायें भविष्य की बात आये उससे पहले उसकी कब्र वर्तमान में ही बनाकर मंगलगीत मिलकर गायें

छोड़ें
शराफतें
करें
शरारतें
कुछ
खुराफातें

अपनी
नहीं भी हों
कोई बात नहीं

पर गिनें

सामने वाले की
बड़ी या छोटी
जो भी दिख जाये
सामने से

वो वाली आतें

रोकें
लटक कर
आगे बढ़ रही
घड़ी की सूईयों पर

समय
को 
खींचें
पीछे ले जायें

बायीं नाक से
खींच कर हवा
आहिस्ता
दायीं नाक से
बाहर का रास्ता
बना कर दिखायें
उल्टा पीछे को
चलने का
रास्ता सिखायेंं

बहुत
जरूरी है
समय को भी
सीख लेना
इस जमाने में
करना प्राणायाम

उसके भी
निकाले
जा सकते हैं
कभी भी
कैसे भी
कहीं भी
प्राण

लिखाकर
थाने में

चोर रहा था
बेशरम

आने वाले
समय के
पेड़ों से
समय से
पहले ही
पके हुऐ
लाल पीले
हरे आम

पीछे चलें
उल्टे पैरों से
मुँह आगे कर

कहीं भी
जाकर गिनें
गिरे हुऐ मरे हुऐ
बटेर और तीतर
शिकारी को
बिल्कुल भी
नहीं पकड़ना
है ठानकर

गिनती बढ़ायें
सौ के दस
हजार दिखायें

उस
समय के चित्र
इस समय
के अखबार
में छपवायें
ढोल नगाड़े
बजवायें

तीतर बटेरों
की आत्मायें
आकर
बता गयी हैं
शिकारी
के नाम पते

हरे पेड़ों के
झड़ गये
पत्तों पत्तों
पर लिखवा
लिखवा
कर बटवायें
मुनादी करवायें

पिछ्ली पीढ़ी
के भूत पिशाचों
को फाँसी की
सजा दिलवायें

आओ
‘उलूक’
संकल्प करें

प्राणवान
कुछ भी
समझ
में आये
उसका श्राद्ध
गया जाकर
प्राण
निकलवाने
से पहले
करवाने
का आदेश
करवायें

आओ
भूत खोद
कर लायें
भविष्य की
बात आये
उससे पहले
उसकी कब्र
वर्तमान में
ही बनाकर
मंगलगीत
मिलकर गायें।

चित्र साभार: https://www.fotosearch.com/

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट है

एक नहीं 
कई कई हैं 

बहुत
से हैं 
सबूत हैं 

चलते फिरते 
नजर
आते हैं 

असल
में 
ताबूत हैं 

ख्वाबों
में 
कफन 
बेचते हैं

जीवन बीमा
के
दूत हैं 

नाटक
में 
पात्र हैं 

सुंदर
से 
देवदूत हैं

विज्ञापन
में 
इंसान हैं 

इंसानों
में 
भूत हैं 

बाहर
से 
सजने सवरने 
की
मन
चाही है 
और खुली छूट है 

अंदर
छुपी 
कहीं पर 
लम्बी एक 
सूची है 

पहली लिखी 
इबारत 

जिसमें 
लूट सके 
तो
लूट है । 

चित्र साभार: pixshark.com

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

कभी किसी बेखुदी में ऐसा भी हो जाता है

बताने की जरूरत
नहीं है उसे जिसे
पता है वो एक
अच्छा वक्ता नहीं है
बताने की जरूरत
नहीं है एक अच्छा
लेखक होना भी
जिसके बस में नहीं है
फिर भी अपने अंदर ही
सब कुछ जला कर
भस्म कर लेना और
पोत लेना उसी राख को
अपने मुँह बालों
और शरीर पर
शिव ना भी हो सके कोई
शिव की बारात का
एक पिशाच भूत
हो जाना क्या
कम नहीं होता है
जिसको और सिर्फ
जिसको पता होता है
शिव का गरल पीना
उसकी मजबूरी नहीं
बस उसकी आदतों में
शामिल एक आदत
आदतन हो गई है
जिसे केवल तिनेत्र धारी
शिव जानता है
और वो भी 
जो
अपने अंदर की राख
को मलता चला जाता है
अपने ही चेहरे पर
जैसे कुछ लिखा
जा रहा हो
सफेद मिट्टी से
काली जमीन पर
वो सब 
जिसे
दोनो देख रहे होते हैं
एक ताँडव में
और एक राख में
लिखा सुना देखा
सब एक ही जगह पर
बताने समझने की
जरूरत के बिना
अपने अपने खेल
अपने अपने शौक
अब चुनाव और वोट से
दोनो को क्या मतलब
कोई जीते कोई हारे
क्या करना है
और क्या होना है
ना किसी को कैलाश
पर्वत पर जा कर
कोई कथा करनी है
ना ही शिव और
उसके भूत के पास
इतनी फुरसत
और क्यों बर्बाद करे
ईश अपनी उर्जा
चींंटियों को खदेड़ने में
तू भी
उलूक
भंग की पिनक में जैसे
पता नहीं क्या
उड़ान भर ले जाता है
रहने दे लिखता रह
क्या फर्क पड़ता है
अगर किसी के
समझ में कुछ
भी नहीं आता है ।  

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

जो भूत से डरता है पक्का श्राद्ध करता है


सोलह दिन 
के
पित्र पक्ष 
के शुरु होते ही 
पंडित जी बहुत ही व्यस्त हो जाते हैं 

श्राद्ध सामग्री 
के लिये एक लम्बी सूची भी प्रिंट कराते हैं 

दूध दही घीं शहद 
काजू किशमिश 
बादाम फल मिठाई कपड़े लत्ते 
अच्छी क्वालिटी और अच्छी दुकान से 
लाने का आदेश साथ में दे जाते हैं 

खुद ही खा कर 
पितर लोगों तक खाना पहुंचाते हैं
इसलिये भोजन छप्पन प्रकार का 
होना ही चाहिये समझा जाते हैं 

सुबह सात बजे का 
समय देकर दिन में 
दो बजे से पहले कभी नहीं आ पाते हैं 
देरी का कारण पूछने पर
बताने में भी नहीं हिचकिचाते हैं

लोग बाग जीते जी 
अपने मां बाप के लिये 
कुछ नहीं कर पाते हैं 
इसलिये मरने के बाद उनकी इच्छाओं को पूरा 
जरूर करना चाहते हैं 

अपनी इच्छाओं को 
इसके लिये मारना भी पड़े 
तब भी नहीं हिचकिचाते हैं 
मृतात्मा के जीवन काल के शौक को
पंडित से पूरा कराते हैं 

जजमान
आप इतना भी 
नहीं समझ पाते हैं 

मरने के बाद
मरने वाले 
क्योंकि भूत बन जाते हैं 

उसके डर से
अपने को 
निकालने के लिये लोग 
कुछ भी कर जाते हैं 

कुछ दिन
हमारी भी 
चल निकलती है गाड़ी 
ऐसे लोग वैसे तो कभी हाथ नहीं आते हैं 

कुछ जजमान
पीने के 
शौक रखने वाले 
पितर के नाम से पंडित जी को अंग्रेजी ला कर दे जाते हैं 

उनके यहां
पहले जाना 
बहुत जरूरी होता है इन दिनो 
इसलिये
आपके यहां 
थोड़ा देर से आते हैं । 

चित्र साभार: https://marathi.webdunia.com/

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ज्योतिष हो गया अखबार

जन्म पत्री बाँचते हैं
बहुत ही ज्ञानी हैं
पंडित जी का
नहीं कोई सानी है
हर साल आते हैं
मेरे घर पर दो बार
माँगते हैं जन्म पत्री
सबकी हर बार
बताते हैं कुछ भूत
और कुछ भविष्य
वैसे का वैसा ही
जैसा बता गये थे
पिछली बार
आये कल भी
उसी तरह इस बार
पोथी निकाल कर
बैठे महानुभाव
शुरू किया बाँचना
हमेशा की तरह
नक्षत्रों को
सुनाने लगे
वही पुरानी रामायण
सुनते ही पुरानी कथा
जब नहीं रहा गया
पंडित जी से मैने
तब कह ही दिया
गुरू कुछ नई बात भी
कभी कभी बताया करो
जन्मपत्री से भी अगर
कुछ खोद नहीं
पा रहे हो तो
कम से से कम
अखबार तो पढ़ कर
के आया करो
आजकल तो जो
होना है आगे वो
पहले अखबार में
ही आता है
उसके बाद ही
होना है जो तभी
तो हो पाता है
मजे की बात
इसमें ये है
कि  ग्रह नक्षत्र
को भी पता नहीं
चल पाता है
कि अखबार
वालों को
ये सब कौन जा
के बताता है
इसीलिये तो
जो वाकई में
हो रहा है वो
अखबार में
कम ही
जगह पाता है
अखबार से
बढ़िया जन्मपत्री
पंडित अब तू भी
नहीं बाँच पाता है ।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

खिचड़ी

लोहे की
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी

कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने

अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस

मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा

बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का

ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी

कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था

सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा

इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी

वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये

दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये

बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये

इस तरह

श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी

पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी

हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।