उलूक टाइम्स: मयखाना
मयखाना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मयखाना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

लिखे पर चेहरा और चेहरे पर लिखा हुआ दिखता

कभी किसी दिन
चेहरे लिखता तो कहीं कुछ दिखता 
बिना चेहरे के लिखा भी क्या लिखा 

गर्दन से कटा
बचा कुचा
बाकी शरीर के नीचे का बेकार सा हिस्सा 

चेहरा लिखने का मतलब
चेहरा और बस चेहरा 
आईने में देखी हुई शक्ल नहीं 

छोटे कान नहीं ना ही बहुत लम्बी नाक
ना पतली गर्दन ना काली आँख 
ना वैसा ना वैसे जैसा कुछ 
कुछ नहीं तो पैमाना लिखता 

कहीं
नपता पैमाना सुनता
मदहोश होता 
कुछ कभी
कहीं किसी के लिये 
क्या पता अगर मयखाना लिखता 

लिखना और नहीं लिखना
बारीक सी रेखा
बीच में लिखने वालों और नहीं लिखने वालों
के बीच की

लिखे के बीच में से
झाँकना शुरु होता हुआ चेहरा लिखता 

चेहरे के दिखते 
पीछे का धुँधलाना शुरु होता
लिखा और लिखाया दिखता

अच्छा होता
पहाड़ी नदी से उठता हुआ सुबह सवेरे का कोहरा लिखता 

स्याही से शब्द लिखते लिखते छोड़ देता लकीर 
उसके ऊपर लिख कर देखता चेहरे बस चेहरे
चेहरे पर चेहरे लिखता 

देखता
लिखा हुआ किसे दिखता और किसे नहीं दिखता ।

रविवार, 27 सितंबर 2009

आशिक

वो अब हर बात में पैमाना ढूंढते हैं
मंदिर भी जाते हैं तो मयखाना ढूंढते हैं ।

मुहल्ले के लोगों को अब नहीं होती हैरानी
जब शाम होते ही सड़क पर आशियाना ढूंढते हैं ।

पहले तो उनकी हर बात पे दाद देते थे वो
अब बात बात में नुक्ताचीनी का बहाना ढूंढते हैं ।

जब से खबर हुवी है उनकी बेवफाई की
पोस्टमैन को चाय पिलाने का बहाना ढूंढते हैं ।

तारे तक तोड़ के लाने की दीवानगी थी जिनमें
बदनामी के लिये अब उनकी एक कारनामा ढूंढते हैं ।

उनकी शराफत के चरचे आम थे हर एक गली में
अब गली गली मुंह छुपाने का ठिकाना ढूंढते हैं ।