उलूक टाइम्स: रूह
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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं

कुछ रूह होती हैं
सहला देती हैं रूह को बस यूँ ही
कुछ बदल देती हैं समां
यूँ ही आस पास का
लगता है कहीं होती हैं

गोश्त और गोश्त में
कहां कोई फर्क नजर आता है
गोश्त कुछ रूह से महकी हुई
मगर जरुर होती हैं

शुक्रिया कहने की जरुरत
कहां कब रह जाती है
आसपास एक नहीं
जब चाहने वाली कई रूह होती हैं

अब रूह कहें आत्मा कहें
राम और रहीम की भी होती हैं
बहस कुछ गोश्त पर छपी
हमेशा होती हैं और जरुर होती हैं

हजार रूह के बीच
बस एक दो कुछ अजीब होती हैं
गोश्त और रूह से अलहदा
कुछ थोड़ा सा भूत होती हैं

हजारों ख्वाहिशे होती हैं
रूह भी कभी कभी रोती है
उलूक जाना लकड़ियों में है
जलना लकड़ियों में है
खबरें होती हैं
और हमेशा मगर
किसी गोश्त की होती हैं |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/ 




बुधवार, 5 दिसंबर 2018

रोज ही पढ़ने आता है साहिब नापागल लिखा पागल ‘उलूक’ का समझ में नहीं आता है कहता फिरता है किसी से कुछ पूछ क्यों नहीं लेता होगा

कपड़े सोच के उतार देने के बाद 
दौड़ने वाले की सोच में 
केवल और केवल यही होता होगा

अब इसके बाद कौन क्या कर लेगा 
इससे ज्यादा सोच में उसके 
होना भी नहीं होता होगा

कपड़े सोच के उतरे होते हैं कौन देखता है 
ना सोच पाता है ऐसा भी जलवा 
पहने हुऐ कपड़ों का होता होगा

कोशिश जारी रखता है उतारने की 
किसी का भी कुछ भी 
नहीं सोचता है 
खुदा भी ऊपर से कुछ तो देखता होगा

लगा रह खींचने में कपड़े रूह के 
अपने अपनों के भी 
कोई शक नहीं करता होगा कि खींचता होगा

आदत पड़ गयी हो शराब पीने की जिसे 
दिये के तेल की बोतल को देख कर 
उसी पर रीझता होगा 

आईना हो जाता है किसी के घर के हमाम का 
किसी का लिखा लिखाया 
क्या लिख दिया 
शर्मा कर थोड़ा सा तो कभी सोचता होगा

कहने को कहता फिर रहा होता है इस सब के बाद
 इक पढ़ा लिखा 
ये आदमी है या जानवर पता नहीं 

फालतू में क्या ऊल जलूल 
क्यों हर समय
कुछ ना कुछ लिखता दीखता होगा 

पागलों की भीड़ में किसी 
एक पागल के इशारे पर 
कपड़े उतार देने का खेल जमाने से चल रहा होगा 

कपड़े समझ में आना उतारना समझ में आना 
खेल समझ मे आने का खेल समझाने से चल रहा होगा

किसी भी शरीफ को शराफत के अलावा 
किसलिये क्यों देखना सुनना 

अपनी अपनी आँखें सबकी 
अपना अपना सब को अपने हिसाब का दीखता होगा

नंगे ‘उलूक’ के देखने को लिखा देख कर 
कुछ भी कहो 

टाई सूट पहन कर निकलते समय 
आईने के सामने साहिब जरा सा तो चीखता होगा।


चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

आदमी सोचते रहने से आदमी नहीं हुआ जाता है ‘उलूक’

एकदम
अचानक
अनायास
परिपक्व
हो जाते हैं
कुछ मासूम
चेहरे अपने
आस पास के

फूलों के
पौंधों को
गुलाब के
पेड़ में
बदलता
देखना

कुछ देर
के लिये
अचम्भित
जरूर
करता है

जिंदगी
रोज ही
सिखाती
है कुछ
ना कुछ

इतना कुछ
जितना याद
रह ही नहीं
सकता है

फिर कहीं
किसी एक
मोड़ पर
चुभता है
एक और
काँटा

निकाल कर
दूर करना
ही पड़ता है

खून की
एक लाल
बून्द डराती
नहीं है

पीड़ा काँटा
चुभने की
नहीं होती है

आभास
होता है
लगातार
सीखना
जरूरी
होता है

भेदना
शरीर को
हौले हौले
आदत डाल
लेने के लिये

रूह में
कभी करे
कोई घाव
भीतर से
पता चले
कोई रूह
बन कर
बैठ जाये
अन्दर
दीमक
हो जाये

उथले पानी
के शीशों
की
मरीचिकायें
धोखा देती 

ही हैं

आदमी
आदमी
ही है
अपनी
औकात
समझना
जरूरी है
'उलूक'

कल फिर
ठहरेगा
कुछ देर
के लिये
पानी

तालाब में
मिट्टी
बैठ लेगी
दिखने
लगेगें
चाँद तारे
सूरज
सभी
बारिश
होने तक ।

चित्र साभार: Free Clip art